रेगिस्तानी इलाकों में जहां फसल उगाना सबसे बड़ी चुनौती है, पशुओं के लिए चारा उगाना उससे भी बड़ी चुनौती नजर आ रही है. ऐसे में इस समस्या से निपटने के लिए कैक्टस का उपयोग पशुओं के चारे के रूप में किया जा रहा है. आपको बता दें कि राजस्थान के सीमावर्ती रेगिस्तानी इलाके में पशुओं के लिए कैक्टस का चारा काफी कारगर साबित हो रहा है. सबसे खास बात यह है कि इसका चारा बकरियों के लिए काफी फायदेमंद है. रेगिस्तान में इस चारे से पशुओं को साल भर हरा चारा मिलता है. पशुओं में सबसे पौष्टिक आहार बकरियों का होता है. कैक्टस का एक पत्ता एक दिन में बकरी के वजन में करीब 70 ग्राम की बढ़ोतरी करता है.
गर्मियों में पशुओं को कैक्टस खिलाने से उन्हें गर्मी और डिहायड्रेशन से बचाया जा सकता है. दरअसल कैक्टस एक बारहमासी पौधा है जो फसल पैदा होने और उसके तने को काटने के बाद दोबारा उग आता है. इसका उपयोग न सिर्फ जैव ईंधन, जैव उर्वरक बनाने में बल्कि पशुओं के चारे के रूप में भी किया जाता है. रेगिस्तानी इलाकों में वर्ष 2015-16 में प्रायोगिक तौर पर कांटारहित कैक्टस के पौधे लगाए गए थे. इससे किसानों को काफी फायदा हुआ है. कांटारहित कैक्टस को भेड़, बकरी, गाय, भैंस खाती हैं. जिन किसानों के खेतों में तारबंदी है, उनके यहां बीवाईएफ यानी भारत एग्रो-इंडस्ट्री फाउंडेशन महज 1000 रुपये में 100 कैक्टस के पौधे लगा रहा है.
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कैक्टस सूखे के समय पशुओं को चारा उपलब्ध कराता है. हरे चारे यानी कैक्टस की पैदावार रेगिस्तानी इलाकों में 7.8 टन/हेक्टेयर है. कैक्टस में कच्चा प्रोटीन (4-11%), कच्चा फाइबर (12-19%), उच्च नमी (85-90%), घुलनशील कार्बोहाइड्रेट और कैल्शियम पाया जाता है. आपको बता दें, अगर कोई भी पशु 40 किलोग्राम/दिन कैक्टस का चारा खाता है तो उसे एक दिन में 35 लीटर पानी मिलता है.
नागफनी कैक्टस जुगाली करने वाले पशुओं के लिए बहुत अच्छा चारा हो सकता है. यह स्वादिष्ट होने के साथ-साथ पोषक तत्वों से भरपूर होता है. प्रोटीन और फाइबर के अलावा इसमें कई तरह के मिनरल, फॉस्फोरस, पोटैशियम, मैग्नीशियम, सोडियम, जिंक, कॉपर और आयरन पाए जाते हैं. इसकी पाचन क्षमता बेहतर होती है, इसलिए जुगाली करने वाले जानवर इसे खाना बहुत पसंद करते हैं. यह चारा जानवरों के लिए पानी का भी अच्छा स्रोत है, क्योंकि इसमें 90 प्रतिशत तक पानी होता है.
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