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Buffalo Farming: मुर्रा भैंस को पीछे छोड़ आगे निकल रही ये नस्ल, दूध और फैट दोनों में है शानदार

Buffalo Farming: मुर्रा भैंस को पीछे छोड़ आगे निकल रही ये नस्ल, दूध और फैट दोनों में है शानदार

दरअसल रावी नस्ल की उत्पत्ति पाकिस्तान के मोंटगोमरी में हुई थी. भारत की बात करें तो इस नस्ल की भैंसें मुख्य रूप से पंजाब और आसपास के इलाकों में पाई जाती हैं. पंजाब और आसपास के क्षेत्रों में इसे पंचकल्याणी के नाम से भी जाना जाता है. नीली रावी भैंस दिखने में काफी भारी होती हैं. यह भैंस की एक दुधारू नस्ल है इसलिए इसकी दूध उत्पादन क्षमता के कारण यह भैंस किसानों को काफी पसंद आती है.

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नीली रावी भैंस नीली रावी भैंस

ग्रामीण क्षेत्रों की बात करें तो आज यहां के युवाओं का ध्यान खेती और पशुपालन की ओर तेजी से बढ़ता दिख रहा है. यहां के युवा खुद को और दूसरों को रोजगार देने के लिए डेयरी व्यवसाय को तेजी से अपनाते नजर आ रहे हैं. जिसके कारण लोग अलग-अलग नस्ल के पशुओं को भी पाल रहे हैं. पहले लोग चुनिंदा नस्ल की गाय या भैंस पालते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है. लोग अपनी जरूरतों को ध्यान में रखते हुए नस्लों का चयन करते हैं और फिर उसी के आधार पर उनका पालन करते हैं. ऐसे में अगर आप भी डेयरी बिजनेस करना चाहते हैं तो रवि नस्ल की भैंस बहुत ही बेहतरीन है. दावा किया जा रहा है कि इस नस्ल ने मुर्रा भैंस को भी पीछे छोड़ दिया है. आखिर क्या है इसके पीछे कि वजह आइए जानते हैं.

कहां हैं नीली रावी का मूलस्थान

दरअसल रावी नस्ल की उत्पत्ति पाकिस्तान के मोंटगोमरी में हुई थी. भारत की बात करें तो इस नस्ल की भैंसें मुख्य रूप से पंजाब और आसपास के इलाकों में पाई जाती हैं. पंजाब और आसपास के क्षेत्रों में इसे पंचकल्याणी के नाम से भी जाना जाता है. नीली रावी भैंस दिखने में काफी भारी होती हैं. यह भैंस की एक दुधारू नस्ल है इसलिए इसकी दूध उत्पादन क्षमता के कारण यह भैंस किसानों को काफी पसंद आती है. यह एक ब्यांत में औसतन 1600-2000 लीटर दूध देती है वहीं दूध में वसा की मात्रा भी 7 प्रतिशत तक होती है. यही कारण है कि लोग भैंस कि इस नस्ल को अधिक पसंद करते हैं.

कैसे करें नीली रावी भैंस की पहचान

  • इस नस्ल की भैंसों का शरीर काला होता है और इनके सींग भी इनकी तरह भारी होते हैं.
  • इन भैंसों के माथे पर एक सफेद धब्बा दिखाई देता है. माथे के अलावा नाक और पैरों पर भी सफेद दाग होते हैं.
  • नीली रावी भैंसों की पूंछ लंबी होती है, जिसका निचला हिस्सा सफेद होता है.
  • नीली रावी भैंस प्रति ब्यांत 1800-2000 लीटर दूध देने की क्षमता रखती है.
  • इनकी आंखें नीली और पलकें सफेद होती हैं. इनके शरीर के पांच हिस्से सफेद रंग के होते हैं.
  • भारत के अलावा ये भैंसें बांग्लादेश, चीन, फिलीपींस, श्रीलंका और ब्राजील में भी पाली जाती हैं.
  • इस नस्ल की भैंस का औसत वजन 450 किलोग्राम होता है. जबकि, एक बैल का औसत वजन 600 किलोग्राम होता है.

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एक दिन में कितने लीटर दूध देती है ये भैंस

नीली रावी भैंस रिकॉर्ड दूध उत्पादन के लिए मशहूर है. यह एक साल में लगभग 2000 लीटर दूध दे सकती है. दुग्ध उत्पादन में इसका रिकार्ड 378 दिनों में 6535 लीटर दूध का है. इसके दूध में वसा की मात्रा 7 प्रतिशत तक पाई जाती है, जिसके कारण पशुपालक इसे बड़े पैमाने पर पाल रहे हैं और डेयरी व्यवसाय कर रहे हैं. दरअसल, कई बार ऐसा होता है कि अगर दुधारू पशु की दूध देने की क्षमता अधिक हो तो उसमें वसा की मात्रा कम हो जाती है. लेकिन भैंस की इस नस्ल के साथ ऐसा नहीं है. इसमें दूध देने की क्षमता के साथ-साथ वसा की मात्रा भी अधिक होती है. नीली रावी भैंस एक दिन में 8 से 10 लीटर दूध दे सकती है और नीली रावी भैंस प्रति स्तनपान 1800-2000 लीटर दूध दे सकती है.

नीली रावी भैंस का आहार

नीली रावी भैंस को पालते समय अधिक दूध उत्पादन के लिए उसे उचित आहार देना जरूरी है. उचित आहार देने से इसकी दूध देने की क्षमता बढ़ जाती है और फिर यह एक दिन में 12 से 15 लीटर तक दूध दे सकती है.

इस नस्ल की भैंसों को आवश्यकतानुसार ही भोजन दें. इस नस्ल की भैंसें मुख्यतः फलीदार चारा खाना पसंद करती हैं. यदि आप चारे में तूड़ी या अन्य चारा मिला दें तो यह उनके लिए बहुत फायदेमंद होगा. इससे भैंसों को अपच की समस्या नहीं होगी. इस नस्ल की भैंसों को ऊर्जा, प्रोटीन, कैल्शियम, फास्फोरस और विटामिन ए युक्त खुराक दें. इसके लिए आप चारे के रूप में मक्का/गेहूं/जौ/जई/बाजरा अनाज, मूंगफली/तिल/सोयाबीन/अलसी/मुख्य/सरसों/सूरजमुखी के बीज, गेहूं की भूसी/चावल पॉलिश/बिना तेल के चावल पॉलिश का उपयोग कर सकते हैं. चारे में नमक का भी प्रयोग करें.