Shrimp Export झींगा को लेकर क्रि सिल रेटिंग्स की रिपोर्ट आ चुकी है. रिपोर्ट में दावा किया गया है कि इस वित्त वर्ष में भी झींगा एक्सपोर्ट का आंकड़ा स्थिर रह सकता है. रिपोर्ट के बाद से झींगा उत्पादक और एक्सपोर्टर में खलबली मच गई है. ऐसे में पूरी तरह एक्सपोर्ट पर निर्भर झींगा बाजार को फिर से घरेलू बाजार की याद आने लगी है. एक्सपर्ट की मानें तो झींगा के कुल उत्पादन का 70 से 75 फीसद झींगा एक्सपोर्ट होता है. झींगा उत्पादक किसान और एक्सपर्ट डॉ. मनोज शर्मा बीते कई साल से घरेलू बाजार की पैरोकारी कर रहे हैं.
झींगा को बढ़ावा देने के लिए झींगा फूड फेस्टिरवल आयोजित किए जा रहे हैं. लगातार देश में झींगा के घरेलू बाजार को तैयार करने और जो है उसे मजबूत करने के लिए मांग उठाई जा रही है. बीते साल इसी तरह की मांग के संबंध में विदेश मंत्री एस. जयशंकर लोकल फॉर वोकल और वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट का हवाला देते हुए किसानों की मांगों से सहमति जताई थी.
देश में हर साल करीब 10 लाख टन झींगा का उत्पादन होता है. इसमे से सात लाख टन के करीब झींगा कई देशों को एक्सपोर्ट हो जाता है. ऐसे में बचता है तीन लाख टन झींगा. इसी बचे हुए झींगा को लेकर बीते कुछ साल से चर्चाएं हो रही हैं. इसी झींगा का असर एक्सपोर्ट पड़ रहा है. तीन लाख टन झींगा की वजह से ही इंटरनेशनल बाजार में रेट और डिमांड पर असर पड़ रहा है. देश के झींगा उत्पादक किसानों को घाटा उठाना पड़ रहा है. आंध्रा प्रदेश में तो कई किसानों ने घाटे से उबरने के लिए झींगा के तालाब तक बेच दिए हैं.
झींगा किसान और एक्सपर्ट मनोज शर्मा का कहना है कि हमारे देश में करीब 160 लाख टन मछली खाई जाती है. दो हजार रुपये किलों तक की मछली भी खूब बिकती है. लेकिन झींगा को हमारे 140 करोड़ की आबादी वाले देश में ग्राहक नहीं मिल पाते हैं. जबकि झींगा तो सिर्फ 350 रुपये किलो है. दो सौ से ढाई सौ रुपये किलो का रेड मीट खाया जा रहा है. जिसमे करीब 15 फीसद प्रोटीन है, जबकि झींगा में 24 फीसद प्रोटीन होता है. जरूरत बस इतनी भर है कि अगर देश के दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई, चंडीगढ़, बेंग्लोर आदि शहरों में भी झींगा का प्रचार किया जाए तो इसकी खपत बढ़ सकती है. यूपी और राजस्थान तो विदेशी पर्यटको के मामले में बहुत अमीर हैं. वहां तो और भी ज्यादा संभावनाएं हैं.
हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के झींगा किसान लगातार मुद्दों को उठा रहे हैं. ये वो मुद्दे हैं जो झींगा पालन की राह में रोढ़ा बन रहे हैं. किसानों का कहना है कि ज्यादा स्थापना लागत, कम सब्सिडी कवरेज और खारे पानी में जलीय कृषि के लिए 2-हेक्टेयर सीमा क्षेत्र के प्रतिबंध जैसे मुद्दों पर पहले काम होना जरूरी है. इसके साथ ही खारेपन के स्तर में उतार-चढ़ाव, भूमि पट्टे की महंगी दरें, सब्सिडी में कमी और उच्च गुणवत्ता वाले बीज की कमी भी परेशानी है.
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