झारखंड में मछली पालन की आधुनिक तकनीक से रुबरू हुए त्रिपुरा के किसान, कहा-अपने यहां करेंगे लागू

झारखंड में मछली पालन की आधुनिक तकनीक से रुबरू हुए त्रिपुरा के किसान, कहा-अपने यहां करेंगे लागू

त्रिपुरा के किसान रांची के खलारी में कोलपिट में स्थित केज कल्चर को देखने गए साथ ही नगड़ी और रातू में बॉयोफ्लॉक और आरएएस तकनीक के माध्यम से हो रहे मछली पालन को देखा. आधुनिक तकनीकों से मछलीपालन होता देख किसान काफी प्रभावित दिखे. खास कर बॉयोफ्लॉक एक ऐसी तकनीक है जहां पर कम पानी में अधिक से अधिक मछली पालन हासिल किया जा सकता है.

Advertisement
झारखंड में मछली पालन की आधुनिक तकनीक से रुबरू हुए त्रिपुरा के किसान, कहा-अपने यहां करेंगे लागूमछली पालने देखने पहुंचे त्रिपुरा के किसान फोटोः किसान तक

मत्स्य पालन और उत्पादन के क्षेत्र में आगे बढ़ रहा है. राज्य में मछली पालन एक मिसाल बन रहा है. साथ यही यहां पर मछली पालन में आधुनिक तकनीकों का सफलतापूर्वक इस्तेमाल हो रहा है और किसान बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं. चारों तरफ से जमीन से घिरा राज्य होने के बाद भी झारखंड मछली पालन और उत्पादन के क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन कर रहा है. झारखंड की इस उपलब्धि और तकनीक को देखने के लिए दूसरे राज्यों के किसान भी यहां आ रहे हैं. इसी क्रम में त्रिपरा के मत्स्य पालक किसानों ने झारखंड का दौरा किया. इस दौरान त्रिपुरा से आए किसानों ने झारखंड के हजारीबाग स्थित तिलैया डैम, पतरातु डैम और सरायकेला के चांडिल डैम में जाकर केज कल्चर के जरिए हो रहे मछली पालन को देखा. 

इसके अलावा त्रिपुरा के किसान रांची के खलारी में कोलपिट में स्थित केज कल्चर को देखने गए साथ ही नगड़ी और रातू में बॉयोफ्लॉक और आरएएस तकनीक के माध्यम से हो रहे मछली पालन को देखा. आधुनिक तकनीकों से मछलीपालन होता देख किसान काफी प्रभावित दिखे. खास कर बॉयोफ्लॉक एक ऐसी तकनीक है जहां पर कम पानी में अधिक से अधिक मछली पालन हासिल किया जा सकता है. इसके अलावा किसानों ने शालीमार स्थित मत्स्य किसान प्रशिक्षण केंद्र में रंगीन मछली पालन औऱ मोती पालन देखा. 

ये भी पढ़ेंः पराली के बेहतर प्रबंधन से 16 लाख रुपये की कमाई कर रहा पंजाब का किसान, इस साल एक करोड़ कमाने की उम्मीद

उत्तर पूर्वी राज्यों तक पहुंचे मछली पालन की आधुनिक तकनीक

त्रिपुरा से आए किसान वहां के गंडाद्वीशा और कारबोक जिले से आए  थे. सभी किसान ढलाई और गोमती प्रखंड के डुमबुरु जलाशय के पास रहते हैं. उन किसानों को संबोधित करते हुए झारखंड राज्य कृषि निदेशक एचएन द्विवेदी ने कहा कि झारखंड में मछली पालन की जो आधुनिक तकनीक अपनाई जा रही है, खास कर केज कल्चर और बायोफ्लॉक तकनीक को त्रिपुरा जैसे उत्तर पूर्वी राज्यों तक पहुचाने की कोशिश होनी चाहिए. ताकि देश में मछली उत्पादन बढ़ सके और अधिक से अधिक किसान इससे जुड़ें और उन्हें रोजगार का एक बेहतर माध्यम मिल सकें. साथ ही मछली पालन त्रिपुरा के विकास में अपनी भागीदारी निभा सकें. 

ये भी पढ़ेंः ओडिशा के खनन प्रभावित इलाकों में किसानों के लिए स्थायी आजीविका का स्त्रोत बन रहा वाडी मॉडल

झारखंड के किसान भी जाएंगे त्रिपुरा

इस दौरान त्रिपुरा से आए मत्स्य किसानों ने झारखंड में हो रहे मछली पालन को देखने के बाद अपनी बात रखी और इसकी सराहना की. त्रिपुरा से आए मत्स्य अधीक्षक अघोर देव बर्मन ने कहा कि झारखंड में केज कल्चर के लिए विभाग और मत्स्य किसानों के बीच समन्वय को देखने औऱ सीखने की जरूरत है. वहीं मत्स्य निदेशक ने कहा कि झारखंड के  किसानों को भी त्रिपुरा भेजा जाएगा, जहां पर वो जाकर प्रॉउन, मांगुर, सिंघी, और पबदा मछलियों के प्रजनन के लिए हैचरी देखेंगे और सीखेंगे.  


 

POST A COMMENT