भारत के इस आखिरी गांव में जमकर हुई बर्फबारी, जीरो से भी नीचे लुढ़का पारा

भारत के इस आखिरी गांव में जमकर हुई बर्फबारी, जीरो से भी नीचे लुढ़का पारा

हिमाचल प्रदेश में भारत के आखिरी गांव में लोगों के पास अच्छी-खासी जमीन है और खेत बीघे में हैं. खेती के लिए लोग हाथों के बदले मशीन का सहारा लेते हैं. खासकर पावर टीलर से खेती होती है. आलू और मटर की खेती प्रधान है. खुद के खर्च के लिए लोग दूध उत्पादन भी करते है.

भारत के आखिरी गांव छितकुल में होती है आलू और मटर की खेतीभारत के आखिरी गांव छितकुल में होती है आलू और मटर की खेती
बलवंत सिंह विक्की
  • Chitkul (HP),
  • Apr 29, 2023,
  • Updated Apr 29, 2023, 12:51 PM IST

भारत-चीन बॉर्डर के नजदीक बसे भारत के आखिरी गांव छितकुल में भारी बर्फबारी हुई है. भारत के इस आखिरी गांव का जायजा लेने 'आजतक' की टीम पहुंची. छितकुल के पूरे इलाके में चारों ओर बर्फ ही बर्फ नजर आ रही है. पहाड़ों में लगे पेड़ पूरी तरह से सफेद हो चुके हैं. अभी हालत ये है कि छितकुल का नजारा किसी स्वर्ग से कम नहीं लग रहा है. छितकुल हिमाचल प्रदेश में भारत का आखिरी गांव है जो कि सबसे ज्यादा ऊंचाई पर बसा है. इस गांव की ऊंचाई 11000 फीट से ज्यादा है. इस गांव में पूरे साल तापमान 0 से कम या फिर दो से पांच डिग्री के बीच रहता है. इस गांव के लोगों की जनसंख्या एक हजार के करीब है, लेकिन अभी यहां पर टूरिस्ट जाने लगे हैं.

छितकुल गांव हिमालय की बर्फ से ढकी सफेद पहाड़ियों से घिरा हुआ है. इस गांव से तीन किलोमीटर आगे के एरिया में गांव के लोगों को जाने की इजाजत नहीं है. ऐसा इसलिए है क्योंकि उसके आगे चीन का बॉर्डर शुरू हो जाता है. यहां का पूरा इलाका भारतीय सेना के अधिकारी क्षेत्र में आता है. 'आजतक' की टीम ने गांव के लोगों के साथ बातचीत की और जानना चाहा कि आखिरकार भारत के आखिरी गांव में लोग कैसे इतने कम तापमान में अपनी जिंदगी गुजारते हैं. 

आलू और मटर की खेती से गुजारा

छितकुल गांव की रहने वाली राजकुमारी ने बताया कि यहां का तापमान बहुत कम रहता है. लोगों को पूरे साल के लिए अपना सामान स्टोर करके रखना पड़ता है. लोग अपने घरों के ऊपर आने वाले समय के लिए चारा रखते हैं. घर में अपने खर्च का पूरा अनाज स्टोर करके रखा जाता है. अच्छी बात ये है कि यहां कई साल तक अनाज खराब नहीं होता. लकड़ियां संभाल कर रखनी पड़ती हैं क्योंकि सर्दी से बचने के लिए आग का ही सहारा होता है. लोगों के पास अच्छी-खासी जमीन है और खेत बीघे में हैं. खेती के लिए लोग हाथों के बदले मशीन का सहारा लेते हैं. खासकर पावर टीलर से खेती होती है. आलू और मटर की खेती प्रधान है. खुद के खर्च के लिए लोग दूध उत्पादन भी करते है. 

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छितकुल गांव में रहने वाली राजकुमारी बताती हैं कि उनके गांव में एक हजार से कुछ अधिक ही लोग हैं. लेकिन सभी पढ़े लिखे हैं. गांव के बच्चे चंडीगढ़, दिल्ली, शिमला की यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करने के लिए जाते हैं क्योंकि गांव में 12वीं तक का ही स्कूल है. उन्होंने कहा कि छितकुल गांव के लोगों का मुख्य काम खेती-बाड़ी है. यहां के लोग मटर और आलू की खेती करते हैं जिससे किसान परिवारों का अच्छा गुजारा हो जाता है. अभी तो टूरिस्ट भी आने लगे हैं जिससे कमाई होने लगी है.

टूरिस्ट के आने से बढ़ी कमाई

इसी गांव में रहने वाले श्याम ने कहा कि पहले यहां कोई टूरिस्ट नहीं आता था. अब बहुत अच्छा लग रहा है मगर उन्होंने सरकार से एक शिकायत भी बताई. उनका कहना था कि सांगला तक तो रोड बहुत अच्छा है, लेकिन उसके आगे सही सड़क नहीं है. इसके चलते टूरिस्ट यहां पर बहुत कम आते हैं. यहां के लोग खेती-बड़ी करते हैं और उससे गुजर-बसर करते हैं. इसके साथ-साथ टूरिस्ट आने से काम बढ़ गया है. छितकुल गांव में सभी प्रकार के होटल और होमस्टे मौजूद हैं. होटल और होमस्टे कम दाम में भी और ज्यादा में भी उपलब्ध हैं. नदी के किनारे टेंट सिटी भी है जहां पर बर्फबारी खूब होती है.

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छितकुल हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले का और पूरे भारत का आखिरी गांव जरूर है, लेकिन यह किसी जन्नत से कम नहीं है. यहां आकर स्वर्ग का एहसास होता है. देश के अलग-अलग हिस्सों से यहां जाने के लिए रास्ता थोड़ा कठिन जरूर है मगर मुश्किल नहीं है. छितकुल जाने के लिए शिमला के नारकंडा से होते हुए नेशनल हाईवे नंबर 22 से होकर जाना पड़ता है. इस गांव से करीब तीन किलोमीटर के बाद भारतीय सेना का एरिया शुरू हो जाता है क्योंकि इसके आगे भारत और चीन का बॉर्डर है. गांव के लोगों ने बताया कि वहां से आगे जाने के लिए आम लोगों को इजाजत नहीं है.

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