रिटायरमेंट जीवन का एक अहम पड़ाव है, जब व्यक्ति अपनी जीवनभर की मेहनत को समेटकर आराम और नई संभावनाओं की ओर देखता है. लेकिन कुछ लोग इसे नए अध्याय की शुरुआत मानते हैं. उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले के नुआंव गांव के निवासी रामजी दुबे ने अपनी सेवानिवृत्ति को न केवल अपने लिए बल्कि अन्य किसानों के लिए भी प्रेरणा बना दिया. दूरदर्शन में वरिष्ठ इंजीनियर के पद से सेवानिवृत्त रामजी दुबे ने परंपरागत खेती को आधुनिक तकनीकों के साथ जोड़ा और खेती को एक लाभकारी व्यवसाय के रूप में विकसित किया. आज वे लाखों की कमाई के साथ अपनी नई पहचान बना चुके हैं.
रिटायरमेंट के बाद रामजी दुबे ने अपने पुश्तैनी खेत में पारंपरिक फसलों जैसे गेहूं, धान, चना, मटर और सरसों की खेती शुरू की. हालांकि, पारंपरिक खेती में सीमित मुनाफे को देखते हुए उन्होंने खेती के नए तरीकों को अपनाने का निर्णय लिया. उनके इस बदलाव का उद्देश्य न केवल आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाना था, बल्कि किसानों को यह दिखाना भी था कि खेती एक लाभकारी और सम्मानजनक व्यवसाय बन सकती है.
2018 में, रामजी दुबे ने उद्यान विभाग के अधिकारियों से परामर्श लिया और पॉली हाउस तकनीक का इस्तेमाल करने का निर्णय लिया. 2000 वर्ग मीटर क्षेत्र में पॉली हाउस का निर्माण कर उन्होंने खीरा, तरबूज, पालक और स्ट्रॉबेरी जैसी फसलों की खेती शुरू की. पॉली हाउस की मदद से पहली ही साल में उन्होंने लगभग 10 लाख रुपये का शुद्ध मुनाफा कमाया. रामजी दुबे कहते हैं, “पॉली हाउस तकनीक से फसलें मौसम के दुष्प्रभावों से बचती हैं और उनकी गुणवत्ता भी बेहतर होती है, जिससे बाजार में उनका मूल्य बढ़ जाता है. यह तकनीक खेती को एक सुरक्षित और लाभकारी व्यवसाय बनाती है."
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पॉली हाउस की सफलता के बाद रामजी दुबे ने हाई-वैल्यू फसलों पर ध्यान केंद्रित किया. उन्होंने अपने 2.5 एकड़ खेत में ड्रैगन फ्रूट की खेती शुरू की. मिर्जापुर में उस समय ड्रैगन फ्रूट की खेती एक नई पहल थी.
ड्रैगन फ्रूट की खेती के लिए उन्होंने मल्चिंग, ड्रिप सिंचाई और बांस-बल्ली जैसी आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल किया. वर्तमान में, प्रति एकड़ ड्रैगन फ्रूट की खेती से उन्हें 8-10 लाख रुपये का मुनाफा होता है. प्रति एकड़ 50-60 क्विंटल ड्रैगन फ्रूट का उत्पादन होता है, जिसका बाजार मूल्य 150-200 रुपये प्रति किलो है. इस फसल की इतनी अधिक मांग है कि व्यापारी इसे खेत से ही खरीद लेते हैं.
रामजी दुबे ने समेकित खेती को अपनाते हुए पॉली हाउस और ड्रैगन फ्रूट के साथ पपीता, शिमला मिर्च, खरबूजा और स्ट्रॉबेरी जैसी फसलों की खेती भी शुरू की. पपीता की खेती के बारे में वह बताते हैं, “पपीता को जून-जुलाई में लगाया जाता है और इसकी हार्वेस्टिंग मार्च-अप्रैल में होती है. त्योहारों के दौरान इसकी मांग अधिक रहती है, जिससे प्रति एकड़ 5-6 लाख रुपये का मुनाफा होता है."
रामजी दुबे की समेकित खेती ने उनकी आर्थिक स्थिति में जबरदस्त सुधार किया. पहले जहां परंपरागत खेती से उन्हें केवल 5-6 लाख रुपये की आमदनी होती थी, वहीं अब आधुनिक तकनीकों और हाई-वैल्यू फसलों की मदद से उनकी सालाना कमाई 25-30 लाख रुपये हो गई है.
63 साल की उम्र में रामजी दुबे ने जो उपलब्धियां हासिल की हैं, वे क्षेत्र के किसानों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन चुकी हैं. आसपास के जिलों के किसान और सरकारी अधिकारी उनकी खेती को देखने और सीखने के लिए आते हैं. रामजी दुबे का मानना है, “खेती एक ऐसा क्षेत्र है जो आपको कभी रिटायर नहीं करता. यहां हमेशा कुछ नया सीखने और करने का अवसर मिलता है.
रामजी दुबे का कहना है कि खेती में नई तकनीकों और आधुनिक विचारों को अपनाने से न केवल मुनाफा बढ़ता है, बल्कि यह कृषि के भविष्य को भी मजबूत करता है. उनका संदेश है, “अगर मेहनत और सही तकनीक का इस्तेमाल किया जाए तो खेती से बेहतर कोई व्यवसाय नहीं हो सकता. यह न केवल आपके जीवन को बदल सकता है, रामजी दुबे की की तरह सही सोच, तकनीक और मेहनत से खेती को एक लाभकारी और सम्मानजनक व्यवसाय बनाया जा सकता है. उनकी यात्रा हर किसान के लिए एक प्रेरणा है, जो खेती को एक नई दिशा में ले जाना चाहता है.