देश सहित बिहार में बांस की खेती करने वालों के लिए भागलपुर से एक अच्छी खबर आई है. भागलपुर में बिहार सरकार के वन विभाग द्वारा स्थापित प्लांट टिश्यू कल्चर लैब में मीठे बांस सहित अन्य बांस के पौधे व्यावसायिक दृष्टि बड़े पैमाने पर तैयार किए जा रहे हैं. यहां मीठे बांस के पौधे तैयार करने वाले बंबू मैन ऑफ बिहार के नाम से मशहूर प्रोफेसर ए.के चौधरी यानी अजय कुमार चौधरी के दिशा निर्देश में मीठा बांस सहित अन्य बांस के पौधे तैयार किए जा रहे हैं.
किसान तक से बातचीत के दौरान प्रोफेसर चौधरी कहते हैं कि देश के सरकारी विश्वविद्यालय में स्थापित बंबू टिश्यू कल्चर लैब में से उनका पहला लैब है, जहां व्यवसाय के नजरिये से सबसे अधिक बांस तैयार किया जा रहा है. बांस की खेती बिहार की अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से बदल सकती है क्योंकि इसकी काफी मांग है. मीठे बांस की खेती को लेकर प्रोफेसर चौधरी कहते हैं कि आज विश्व के कई देशों में अचार, चिप्स, कटलेट सहित अन्य खाद्य पदार्थ बनाए जाते हैं. इसके साथ ही इस बांस का उपयोग कैंसर की दवाइयां बनाने में किया जा रहा है. आने वाले समय में बांस प्लास्टिक के सबसे बड़े विकल्प के रूप में माना जा रहा है.
बता दें कि तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय के अंतर्गत आने वाले टीएनबी कॉलेज में प्लांट टिश्यू कल्चर लैब स्थापित है. यहां बड़े पैमाने पर मीठे बांस सहित अन्य बांस के पौधे तैयार किए जा रहे हैं ताकि किसान इसके व्यवसाय से जुड़कर अपनी आमदनी को डबल कर सकें. यहां एक बार में करीब दो से तीन लाख तक बांस के पौधे तैयार किए जा रहे हैं.
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प्लांट टिश्यू कल्चर लैब के परियोजना निदेशक प्रोफेसर अजय कुमार चौधरी कहते हैं कि मीठा बांस तैयार करने में वन विभाग अहम भूमिका निभा रहा है. यहां के लैब में तैयार मीठे बांस के पौधे को छपरा, सीवान, पूर्णिया सहित कई जगहों पर भेजा गया है. पहले मीठे बांस के पौधे जंगलों में देखने को मिलते थे. लेकिन अब इसकी खेती की तरफ किसान आकर्षित हो रहे हैं. इसको देखते हुए व्यवसाय के दृष्टि से लैब में बांस तैयार किया जा रहा है. इस बांस की खेती किसी भी मौसम और मिट्टी में की जा सकती है.
चीन, ताइवान, सिंगापुर सहित अन्य देशों में मीठे बांस से अचार, चिप्स, कटलेट तैयार किए जा रहें है. इसके साथ ही इससे एंटीऑक्सीडेंट दवा बनाई जा रही है. वहीं इसका उपयोग कैंसर की दवाइयां बनाने में किया जा रहा है. आने वाले समय में बांस प्लास्टिक के सबसे बड़े विकल्प के रूप में देखा जा रहा है. अगर किसान मीठे बांस की खेती करते हैं तो उन्हें दोगुना मुनाफा होगा. वहीं इसे एक बार लगाने के बाद करीब 100 साल से ज्यादा समय तक मुनाफा कमाया जा सकता है.
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बंबू मैन ऑफ बिहार के नाम से मशहूर ए.के चौधरी कहते हैं कि राष्ट्रीय बांस मिशन और राज्य बांस मिशन के अंतर्गत वन विभाग मीठे बांस के पौधे बड़े पैमाने पर लगवाएगा. वहीं वन विभाग किसानों को 10 रुपये के हिसाब से पौधा देगा. तीन साल के बाद अगर किसान पचास प्रतिशत तक पौधे को बचा लेते हैं तो उन्हें वन विभाग के द्वारा पौधे की देखभाल के लिए 60 रुपये प्रति पौधे की मदद दी जाएगी. साथ ही बांस के पौधे की कीमत 10 रुपये वापस कर दी जाएगी.
प्रोफेसर डॉ. अजय कुमार चौधरी कहते हैं कि बांस की खेती से राज्य में उद्योग को काफी बढ़ावा मिलेगा क्योंकि इससे पेपर इंडस्ट्री, फर्नीचर सहित अन्य समान तैयार किए जा सकते हैं. इसके साथ ही एथेनॉल भी तैयार किया जा सकता है. आज जिस तरह से जलवायु परिवर्तन का असर देखा जा रहा है, उसे देखते हुए मीठे बांस की खेती राज्य के किसानों के साथ सूबे की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में प्रमुख कड़ी बन सकती है. वहीं इसके अलावा अन्य बांस की खेती भी किसानों को कम खर्च में अधिक मुनाफा दिला सकती है.