बेहतर बीज और अधिक उत्पादन के नारे को बुलंद करने वाले मथुरा जिला के गांव भूरेका निवासी किसान सुधीर अग्रवाल को कौन नहीं जानता? उन्होंने खेती में सही तकनीक, लगन और परिश्रम के गठजोड़ से खुद को सफल किसान साबित किया है. उन्होंने पढ़ाई तो कानून की है, लेकिन खेती में एक से एक सफलता हासिल की है. वे किसानों को सही बीज और तकनीक से खेती के लिए मार्गदर्शन कर रहे हैं. वे केवल प्रगतिशील किसान नहीं हैं, बल्कि बीज उत्पादक भी हैं. लगभग पिछले 24-25 वर्षों से वे नए बीज और उन्नत तकनीको के साथ खेती कर रहे हैं. खेती में नए-नए प्रयोग करते रहते हैं. इस साल आईआरआई पूसा की नई किस्म HD 3386 से अपने खेतों में अन्य किसानों की तुलना में बहुत अधिक उत्पादन लिया है. इसके साथ एक नई सफलता प्राप्त की है.
सुधीर अग्रवाल गेहूं, धान, सरसों और आलू जैसी कई तरह की फसलों की अलग-अलग किस्मों की खेती करते हैं. साथ ही स्वयं बीज उत्पादन भी करते हैं. इस साल, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान पूसा, दिल्ली ने गेहूं की नई किस्म HD 3386 विकसित की है. सुधीर अग्रवाल ने इस किस्म की बुवाई 7 नवंबर 2023 को की थी और कटाई 5 अप्रैल को गई थी. इस किस्म ने इस साल 34.4 क्विंटल प्रति एकड़ का उत्पादन दिया है. इससे वे अपने क्षेत्र के किसानों के लिए प्रेरणा स्रोत बन गए हैं. उन्होंने बताया कि अगर इसकी बुवाई थोड़ी पहले की होती तो प्रति एकड़ 40 क्विंटल तक का उत्पादन हो सकता था.
प्रगतिशील किसान सुधीर ने किसान तक को बताया कि गेहूं की नई किस्म HD 3386 की बुवाई 7 नवंबर 2023 को की गई थी और इसकी खेती के लिए बुवाई के समय 40 किलो नीम की खाद, 40 किलो सरसों की खाद और 60 किलो डीएपी का उपयोग किया गया था. इस गेहूं के बीज को नैनो यूरिया से उपचारित किया गया था. गेहूं के खेत की अच्छी तरह जुताई के बाद, खेत में पाटा लगाकर डिबलर से गेहूं बुवाई की थी.
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गेहूं की खड़ी फसल में यूरिया की जगह नैनो यूरिया स्प्रे किया था. जब गेहूं की फसल 70 दिन की थी, तो 53:35:0 एनपीके का प्रयोग किया गया था. सुधीर अग्रवाल ने बताया कि गेहूं के बेहतर कल्ले और भरपूर दाने वाली बालियां बनी थीं, जिसकी कटाई 5 अप्रैल को की गई. उन्होंने बताया कि इस गेहूं की फसल से 34.4 क्विंटल का उत्पादन हुआ है, जो दूसरे साधारण किस्मों से 10 क्विंटल तक अधिक है .सुधीर अग्रवाल ने बताया कि खेत की जुताई ,सिंचाई से लेकर कटाई तक, प्रति एकड़ पर कुल खर्च 7200 रुपये आया है. इस तरह दूसरे किसानों से लागत भी कम आई है.
सुधीर करीब 36 एकड़ जमीन के मालिक हैं. सुधीर ने दर्शनशास्त्र में एमए किया और बाद में एलएलबी की पढ़ाई की. लेकिन सरकारी नौकरी या वकालत के बजाय खेती को ही अपना रोजगार बनाने का निर्णय लिया. पहले उन्होंने सरसों, गेहूं और धान की खेती की. लेकिन जेब में कुछ नहीं बचता था. इलाके के कृषि विशषज्ञो से उन्नत बीज पर चर्चा की और 2001 में बीज का उत्पादन करने का निश्चय किया. उस समय तक इस दिशा में किसी ने भी सोचा नहीं था. बीज उत्पादन की शुरुआत में सुधीर अग्रवाल ने दिल्ली और कानपुर के कृषि अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिकों से परामर्श लिया. 2001 में उन्होंने जबलपुर के कृषि वैज्ञानिकों के मार्गदर्शन में बीज उत्पादन शुरू किया. पहले साल 40 हेक्टेयर में बीज उत्पादन किया. सुधीर ने अपनी वकालत की डिग्री के बाद खुद पहल करके चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कानपुर से खेती की नवीनतम तकनीकों का प्रशिक्षण लिया. उन्होंने पंतनगर से संकर धान बीज उत्पादन (पंत संकर धान-1) की विधि पर प्रशिक्षण भी प्राप्त किया.
सूधीर अग्रवाल ने किसान तक को बताया कि शुरूआती दौर में 2001 के आसपास जब मैंने और मेरे कुछ साथियों ने 'बीज गाँव' के रूप में आधारबीज का काम शुरू किया, तो हमें विश्वास नहीं था कि हम इतनी जल्दी सफल हो जाएंगे. जब हमने बीज तैयार किए, उस समय खरीफ, रबी और ज्यातर फसलों के बीज किसानों को आसानी से और सस्ती दरों पर उपलब्ध नहीं होते थे. पहली बार में दो हजार क्विंटल बीज तैयार हुआ. बीज प्रमाणीकरण संस्थान से प्रमाणीकरण करा मथुरा में पहले बीज बैंक की स्थापना की. सुधीर ने कहा कि बीज प्रोसेंसिंग करने के लिए कर्ज लेकर दो लाख रुपये की मशीन गुरुग्राम से ले आए. पहले जो सरसों डेढ़ लाख रुपये में बिकती थी, बीज के रूप में बेचने पर 3.50 लाख रुपये मिले. अब 150 एकड़ में बीज का उत्पादन शुरू कर दिया.
सुधीर से प्रेरणा लेकर मथुरा, आगरा, फिरोजाबाद, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा के करीब 800 सौ लोग ऐसे हैं, जो पहले उनसे फाउंडेशन बीज लेते थे. अब खुद का काम कर रहे हैं. वे 2001 से लगातार खेतों में प्रत्येक वर्ष 400 क्विंटल केंचुआ खाद का भी उत्पादन करते हैं. सुधीर वर्तमान समय में हर वर्ष 48 वैरायटी के गेहूं के करीब 30 हजार क्विंटल, बासमती चावल के 10 हजार क्विंटल, पांच सौ क्विंटल सरसों, पांच सौ क्विंटल अरहर, मूंग, उर्द के अलावा चार हजार बैग आलू के बीज तैयार करते हैं.
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खेती के क्षेत्र में उल्लेखनीय काम करने और बीज उत्पादन के क्षेत्र में उन्नत काम करने के लिए उन्हें अब तक राज्य सरकार और केंद्र सरकार के कृषि संस्थानों से कई सम्मान मिल चुके हैं. अब कई किसान भी उनसे बीज तैयार करने की ट्रेनिंग लेने आते हैं. उनके एरिया के किसान उनकी तकनीक और बेहतर बीज से काफी लाभान्वित हुए हैं.