भारत एक कृषि प्रधान देश है. 75 फीसदी से अधिक आबादी की आजीविका कृषि पर ही निर्भर है. खास बात यह है कि पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश में किसान बड़े स्तर पर गेहूं की खेती करते हैं. लेकिन कई बार किसानों को गेहूं की खेती में लागत के मुकाबले बहुत कम मुनाफा होता है. क्योंकि गेहूं की बालियों में पुष्ट दाने नहीं आते हैं. कई बार तो बालियां काफी लंबी होती हैं, लेकिन उसके नीचे या ऊपर के हिस्से खाली रहते हैं. यानी उन जगहों पर गेहूं के दाने नहीं होते हैं. इससे गेहूं का उत्पादन बहुत अधिक प्रभावित होता है.
एक्सपर्ट का कहना है कि यदि गेहूं की बालियों में दाने नहीं भरते हैं, तो उत्पादन कम हो जाता है. कई बार तो किसानों को लागत निकालना मुश्किल हो जाता है. इसलिए किसानों को फसल में बाली बनने की प्रक्रिया शुरू होने से पहले ही खास ध्यान देना होगा. दरअसल, कोई भी फसल फूल से फल बनने की प्रक्रिया से गुजरती है. गेहूं में भी फूलों से फल बनने की प्रक्रिया होती है. ऐसे गेहूं की फसल आमतौर पर अक्टूबर, नवंबर में बोई जाती है और मार्च- अप्रैल में कटाई होती है.
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लेकिन जनवरी के बाद जैसे-जैसे मौसम गर्म होना शुरू होता है, वैसे-वैसे गेहूं की फसल में बीमारियां भी लगनी शुरू हो जाती हैं, जिसका असर गेहूं की बालियों पर भी पड़ता है. यदि गेहूं की फसल में किसी तरह की बीमारी लग जाती है, तो बालियों में दाने उतने अधिक नहीं बनते हैं. हालांकि, कृषि जानकारों का कहना है कि पोषण की कमी की वजह से गेहूं की बालियों में नीचे या ऊपर के दाने खाली रह जाते हैं.
कई बार देखा गया है कि पौधों में फूल बहुत आते हैं, पर उन्हें मिट्टी से प्रचूर मात्रा में पोषक तत्व नहीं मिल पाते हैं. इससे फूलों में गेहूं की दाने बनने की प्रक्रिया धीनी हो जाती है. साथ ही पोषक तत्वों की कमी से पौधों से अधिकांश फूल झड़ जाते हैं. इससे भी बालियों में गेहूं के कम दाने बनते हैं.
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अगर आप गेहूं का बंबर उत्पादन लेना चाहते हैं, तो फूल आने के समय ही उपचार शुरू कर देना चाहिए. आप अपने गेहूं की खेत में NPK-00-52-34 का छिड़काव कर सकते हैं. इससे बालियों में अच्छी तरह से दाने आएंगे. लेकिन इसके लिए मिट्टी में पर्याप्त मात्रा में जैविक कार्बन भी होना चाहिए. क्योंकि जैविक कार्बन की मदद से ही पौधों जमीन से पोषक तत्व को लकेर कानों तक पहुंचाते हैं. ऐसे भी भारत की अधिकांश मिट्टी में कार्बनिक कार्बन की कमी है. इसलिए हमें खेतों में एक या दो साल में खाद या वर्मी कम्पोस्ट का उपयोग करते रहना चाहिए.
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