बिहार में पिछले कुछ सालों में खेती को लेकर युवाओं की सोच काफी बदली है. कई युवा अच्छी सैलरी वाली नौकरी छोड़ अपने राज्य और जिले में आधुनिक खेती के साथ जुड़कर अच्छी कमाई कर रहे हैं. साथ ही परंपरागत खेती की पुरानी धारणा को बदलने में लगे हुए हैं. वहीं कुछ युवा खेती से हटकर कृषि से जुड़ी अन्य फसलों से अलग-अलग तरह के प्रोडक्ट बनाकर अपना ख़ुद का स्टार्टअप शुरू कर रहें हैं. बिहार के ऐसे ही दो युवा ऋषभ कुमार और विश्वजीत कुमार हैं जो बांस और केले से जुड़े कई तरह के प्रोडक्ट बनाकर खुद आत्मनिर्भर हो रहे हैं. साथ ही अन्य लोगों को भी रोजगार दे रहे हैं. ऋषभ अर्थशास्त्र से स्नातकोत्तर की पढ़ाई किए हैं. वहीं विश्वजीत ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद बांस और केले से बनने वाले उत्पादों को लेकर स्टार्टअप शुरू किया है.
ऋषभ कहते हैं कि वह बांस और केले से जुड़े कई तरह के लाइफ़ स्टाइल और कॉरपोरेट से जुड़े गिफ्ट बनाने का काम कर रहे हैं. पढ़ाई के दौरान ही कुछ अलग करने की चाह रखने वाले ऋषभ ने सालाना 11 लाख की नौकरी छोड़कर खुद का स्टार्टअप शुरू किया है. आज इको फ्रेंडली प्रोडक्ट बनाकर वातावरण को शुद्ध करने के साथ लोगों को एक अच्छी खासी सैलरी वाली नौकरी भी देने का काम कर रहे हैं.
किसान तक से बातचीत के दौरान ऋषभ कुमार कहते हैं कि उन्होंने परिवार के लोगों से कहा कि उन्हें ख़ुद का स्टार्टअप शुरू करना है, तो परिवार के लोगों ने विरोध किया. उनका साफ कहना था कि बांस और केले से जुड़े अलग-अलग तरह के प्रोडक्ट बनाकर कितनी कमाई कर सकते हो. इसमें कोई भविष्य नहीं है. प्राइवेट नौकरी छोड़ दिए कोई बात नहीं. अब सरकारी नौकरी के जरिये अपने भविष्य को सुरक्षित करो. लेकिन शुरू से ही कुछ अलग करने की चाह रखने वाले ऋषभ खुद का स्टार्टअप शुरू करने से नहीं रोक पाए. आगे वह कहते हैं कि किसी के यहां नौकरी करने से बढ़िया है कि आप अपने आइडिया और सपनों को लेकर काम करें. नौकरी के दौरान आप एक ही क्षेत्र में काम करेंगे जबकि खुद का शुरू किया गया स्टार्टअप सोच के साथ हर रोज कुछ नया सिखाएगा.
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ऋषभ और उनके दोस्त 2022 से ही अपने सपनों को हकीकत रूप देने में लग गए हुए हैं. ऋषभ कहते हैं कि शुरू से ही इको फ्रेंडली उत्पाद बनाने की इच्छा थी. इसी को देखते हुए बांस के बने टूथब्रश, पानी की बोतल, डायरी, पेंसिल सहित केले के बने कई तरह के उत्पाद बनाना शुरू किया. वहीं पिछले मई महीने तक करीब पंद्रह लाख से अधिक रुपये का प्रॉडक्ट बेच चुके हैं जो आगे भी निरंतर चल रहा है. वे कहते हैं कि वह ग्रामीण क्षेत्र के लोगों की मदद से बांस और केले से जुड़े उत्पाद बनाते हैं. वहीं वह अपने पेंसिल के ऊपर विभिन्न तरह के बीज रखते हैं ताकि जब पेंसिल खत्म हो जाए तो पेंसिल के ऊपर रखे बीज को मिट्टी में गाड़ दें ताकि उसके फल का लाभ भी लोगों को मिल सके.