महाराष्ट्र के बीड जिले को सूखाग्रस्त जिले के रूप में जाना जाता है, लेकिन अब इस सूखे जिले के किसानों ने नए प्रयोग कर आधुनिक खेती करना शुरू कर दिया है. जिसमें किसानों को सफलता भी मिली है. महिला किसान तीन एकड़ जमीन पर मिश्रित खेती कर खजूर, ड्रैगन फ्रूट और सेब जैसे तीन फलों की सफलतापूर्वक खेती कर करोड़पति बन गई हैं.
बीड जिले के केलसंगवी की प्रगतिशील महिला किसान विजया गंगाधर घुले ने सूखे की स्थिति से उबरते हुए राज्य में तीन फलों की फसल खजूर, ड्रैगन फ्रूट और सेब को मिश्रित तरीके से उगाने का पहला अनूठा प्रयोग किया है. उनके पास तीन एकड़ जमीन है और उन्हें इन तीनों फलों की फसलों से अच्छी खासी आमदनी होने लगी है. साल 2016 में उन्होंने आधे एकड़ जमीन पर विदेशी फल ड्रैगन फ्रूट लगाया था और बाद में जमीन की कमी के कारण उन्होंने उसी क्षेत्र में खजूर और सेब को मिश्रित तरीके से लगाया.
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उन्होंने शुरुआत में ही ड्रैगन फ्रूट से लाखों रुपए का उत्पादन प्राप्त किया है और इतने ही क्षेत्र में 80 खजूर और 240 सेब के पेड़ लगाए हैं. वर्तमान में खजूर का उत्पादन शुरू हो गया है और पहले वर्ष में प्रत्येक पेड़ पर 70 किलो से 120 किलो फल आए हैं. इसे बाजार में 70 से 100 रुपए के भाव से बेचा गया है. खुदरा बाजारों में खजूर 160 से 200 रुपए तक बिका, 80 खजूर के पेड़ों से पहले वर्ष 2 लाख 50 हजार से 3 लाख रुपए की आय हुई और अगले वर्ष प्रति पेड़ 150 से 200 किलो खजूर की आय होने की उम्मीद है. महिला किसान विजया ने उम्मीद जताई है कि एक एकड़ में ड्रैगन फ्रूट, सेब और खजूर की खेती से कम से कम 10 लाख रुपये की आय होगी.
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पारंपरिक खेती करने के बजाय नए प्रयोग करके अधिक उपज प्राप्त करने के लिए खजूर या ड्रैगन फ्रूट जैसी फल फसलों का चयन करना आवश्यक है, जिससे किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार हो सकता है. विजया ने कहा कि यह ऐसी खेती है जिसमें बहुत कम मेहनत में किसी भी रसायन का छिड़काव नहीं करना पड़ता. महिला किसान विजया घुले के इस अभिनव खेती प्रयोग को मान्यता देते हुए महाराष्ट्र सरकार ने उन्हें 2022-23 के लिए जीजामाता कृषि भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया है.
अपने सफलता की कहानी मैंने अपने खेत में ड्रैगन फ्रूट, सप्रचंद और खजूर की खेती की है. इस खेती में ज़्यादा मेहनत नहीं लगती. मैंने पारंपरिक तकनीक के साथ एक नया प्रयोग किया है. हमें जो कीमत मिलती है, उसके हिसाब से हम फल बेचते हैं. हम उन्हें जलगांव, नगर, मालेगांव, इंदापुर के व्यापारियों को बेचते हैं और कुछ स्थानीय स्तर पर बेचते हैं. पहले हम उड़द, मूंग और गेहूं की खेती करते थे, लेकिन उनसे हमें कुछ नहीं मिलता था, हमें घाटा होता था, इसलिए हमने फलों की खेती शुरू की.