कांगड़ा के इस किसान ने सेब की खेती को बनाया कमाई का जरिया, 20 लाख तक पहुंचा मुनाफा

कांगड़ा के इस किसान ने सेब की खेती को बनाया कमाई का जरिया, 20 लाख तक पहुंचा मुनाफा

दो साल पहले कोविड महामारी और उसकी वजह से हुए लॉकडाउन ने देश की अर्थव्यवस्था को पंगु बना दिया था. उस समय कांगड़ा के पूरन चंद जैसे कई और लोगों को भी अपना भविष्य अंधकारमय लग रहा था. महामारी की वजह से उनका ट्रांसपोर्ट का बिजनेस बंद हो गया था. लेकिन इसकी वजह से पूरन चंद ने पूरी तरह से खेती-किसानी में उतरने का फैसला किया.  

कांगड़ा के किसान को सेब की खेती से हो रहा फायदा  कांगड़ा के किसान को सेब की खेती से हो रहा फायदा
क‍िसान तक
  • New Delhi ,
  • Jun 11, 2024,
  • Updated Jun 11, 2024, 7:33 PM IST

दो साल पहले कोविड महामारी और उसकी वजह से हुए लॉकडाउन ने देश की अर्थव्यवस्था को पंगु बना दिया था. उस समय कांगड़ा के पूरन चंद जैसे कई और लोगों को भी अपना भविष्य अंधकारमय लग रहा था. महामारी की वजह से उनका ट्रांसपोर्ट का बिजनेस बंद हो गया था. लेकिन फिर उन्‍होंने एक ऐसा प्रयोग किया जिसने उनके परिवार का भरण-पोषण करने में मदद मिली. दरअसल यह महामारी उनके लिए वाकई आपदा में अवसर साबित हुई. इसकी वजह से पूरन चंद ने पूरी तरह से खेती-किसानी में उतरने का फैसला किया.  आज वह अपनी कड़ी मेहनत के दम पर सेब की खेती कर रहे हैं और अच्छी फसल काट रहे हैं. जिस वैरायटी के सेबों की वह खेती करते हैं वह कम ठंडक वाली किस्मों में एक खास जगह रखते हैं. 

राज्‍य सरकार की मदद का फायदा 

अंग्रेजी अखबार हिन्‍दुस्‍तान टाइम्‍स की रिपोर्ट के अनुसार पूरन चंद ने अपनी इस सफलता पर कहा, 'मुझे सेब की कम ठंडक वाली किस्मों के बारे में पता चला. मैंने बहुत रिसर्च की और किसानों से सलाह-मशविरा करने के बाद, मैंने अपने खेत में 40 पौधे लगाए.'  उन्‍होंने बताया कि साल 2019 में सैंपल फसल अच्छी थी लेकिन तब तक ट्रांसपोर्ट ही उनका मुख्य व्यवसाय था. उनके पास तीन कैब थीं, जो निजी स्कूलों से जुड़ी थीं.  उन्होंने बताया कि कहा कि हिमाचल सरकार की तरफ से पानी की टंकी के निर्माण और कृषि भूमि के विकास के लिए सब्सिडी देने की योजना से उन्हें काफी मदद मिली है. जबकि बागवानी विभाग के अधिकारियों ने सेब की खेती के बारे में तकनीकी जानकारी दी है.  इसके अलावा, एंटी-हेल नेट पर राज्‍य सरकार की तरफ से 80 फीसदी तक सब्सिडी दी जा रही है. 

यह भी पढ़ें-आंधी-बारिश में भी जमीन पर नहीं गिरती है बासमती की ये किस्म, बेहद कम सिंचाई में देती है अच्छी उपज, जानें

जैविक खाद का किया प्रयोग  

चंद ने कहा, '2020 में मैंने 80000 रुपये के सेब बेचे थे और साल 2021 में बिक्री बढ़कर 1.5 लाख रुपये हो गई.'  उन्होंने दावा किया कि वह अपने बगीचे में रासायनिक खाद या स्प्रे का इस्तेमाल नहीं करते हैं, बल्कि दालों, रसोई के कचरे, तिलहन, गोमूत्र और गोबर से बनी जैविक खाद का ही प्रयोग करते हैं. उनकी फसल बाजार में जल्दी आ गई थी इसलिए उन्हें 100 से 150 रुपये प्रति किलोग्राम के बीच कीमत मिली. शिमला, मंडी और कुल्लू के पारंपरिक सेब उगाने वाले क्षेत्रों से फसल जुलाई के मध्य में बाजार में आनी शुरू हो जाती है. वहीं चंद की तरफ से जो फसल लगाई गई है और जो कम ठंड वाली किस्म है, वह जून की शुरुआत में आती है. 

यह भी पढ़ें-MSP से भी महंगा बिक रहा कपास, दक्षिणी राज्यों में बुवाई में तेजी आई, उत्तर भारत में रकबा घटने की आशंका  

दक्षिण तक में होती है सप्‍लाई 

कारोबार को बढ़ाने के लिए चंद ने लाइसेंस लिया और पट्टे पर जमीन लेकर 28000 सेब के पौधों की नर्सरी स्थापित की. पिछली सर्दियों में उन्होंने स्थानीय किसानों और दूसरे इलाकों में 15,000-20,000 पौधे सप्लाई किए और 20 लाख रुपये तक का मुनाफा कमाया. आज चंद देश के कुछ प्रगतिशील किसानों को भी सेब के पौधे सप्लाई करते हैं. चंद कहते हैं कि उनके ग्राहक कर्नाटक, गुजरात, महाराष्‍ट्र, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और पूर्वोत्तर समेत देशभर से हैं. 

यह भी पढ़ें-Cow Breed: डेयरी बिजनेस के लिए बेहद फायदेमंद है गाय की ये नस्ल, 3000 लीटर तक देती है दूध

बाकी किसानों के लिए प्रेरणा 

कांगड़ा के बागवानी उपनिदेशक कमलशील नेगी ने कहा कि हिमाचल की जमीन कृषि फसलों की तुलना में बागवानी फसलों के लिए अधिक उपयुक्त है  उन्होंने बताया कि निचले पहाड़ी इलाकों के लोगों को चंद से प्रेरणा लेनी चाहिए और बागवानी की ओर रुख करना चाहिए क्योंकि इससे उनकी आय आठ से दस गुना बढ़ सकती है नेगी ने कहा कि कांगड़ा में कुछ साल पहले ही सेब के बाग लगाए गए थे, जिनमें से ज्यादातर बैजनाथ, शाहपुर और धर्मशाला विकास खंडों में थे और यह क्षेत्र लगातार बढ़ रहा है.  

यह भी पढ़ें-कभी दो-चार रुपयों के लिए मोहताज थीं दीपाली महतो, आज सजावटी मछलियों ने बनाया लखपति

सेब सबसे बड़ी अर्थव्‍यवस्‍था 

हिमाचल प्रदेश की 6000 करोड़ रुपये की सेब अर्थव्यवस्था 1.75 लाख परिवारों का मुख्य आधार है. शिमला में कुल सेब का 70 फीसदी उत्पादन करता है. उसके बाद कुल्लू और किन्नौर का स्थान आता है. राज्य में 1.25 लाख हेक्टेयर में सेब का उत्पादन होता है जिसकी उत्पादकता 3-4 टन प्रति हेक्टेयर से भी कम है. भारत में उत्पादित कुल सेब में राज्य का योगदान आम तौर पर 30 से 40 फीसदी होता है. जबकि कश्मीर 50 प्रतिशत उत्पादन के साथ शीर्ष पर है. 

MORE NEWS

Read more!