प्राकृतिक खेती की मिसाल बनीं लीना, 20 महिलाओं को बनाया आत्मनिर्भर

प्राकृतिक खेती की मिसाल बनीं लीना, 20 महिलाओं को बनाया आत्मनिर्भर

मंडी जिला के पंज्याणू गांव की लीना शर्मा ने 20 महिलाओं के साथ मिलकर प्राकृतिक खेती की मिसाल पेश की है. रसायनमुक्त खेती से न केवल ज़मीन को स्वस्थ किया, बल्कि सैकड़ों किसानों को भी इस पद्धति से जोड़ा. पढ़ें उनकी प्रेरणादायक कहानी.

महिलाओं की मेहनत ने बदली गांव की तकदीरमहिलाओं की मेहनत ने बदली गांव की तकदीर
क‍िसान तक
  • Noida,
  • Aug 26, 2025,
  • Updated Aug 26, 2025, 4:05 PM IST

हिमाचल प्रदेश के मंडी ज़िले के करसोग विकास खंड के पंज्याणू गांव की लीना शर्मा ने यह साबित कर दिया है कि यदि नीयत साफ हो और सोच मजबूत, तो बदलाव लाया जा सकता है. लीना ने गांव की 20 महिलाओं को साथ लेकर एक कृषि समूह बनाया है और अब यह समूह पूरे क्षेत्र में प्राकृतिक खेती की मिसाल बन गया है. लीना शर्मा ने अपनी पांच बीघा जमीन पर बिना रसायनों के खेती शुरू की. उन्होंने मटर, आलू, लहसुन, धनिया, मेथी और गेहूं जैसी फसलें उगाईं- वो भी बिलकुल प्राकृतिक तरीके से. इस विधि में खर्च कम आया और फसल की गुणवत्ता भी बेहतरीन रही. यह देखकर आसपास की महिलाएं भी प्रेरित हुईं और अब इस नई राह पर चल पड़ी हैं.

महिलाओं का बना मजबूत समूह

लीना के नेतृत्व में बना यह 20 महिलाओं का समूह न केवल अपनी जमीनों पर खेती करता है, बल्कि मिल-जुलकर एक-दूसरे की मदद भी करता है. सभी महिलाएं मिलकर खेतों में काम करती हैं, एक-दूसरे को सिखाती हैं और साथ ही अपने-अपने घरों में जीवामृत, घनजीवामृत जैसे जैविक आदान तैयार करती हैं.

देसी गाय और गोमूत्र से बनी खेती की नींव

इस समूह की खेती की खास बात यह है कि यह पालेकर प्राकृतिक खेती विधि पर आधारित है. इसके लिए देसी गाय का गोबर और गोमूत्र इस्तेमाल होता है. लेकिन जब गांव में देसी गाय नहीं थी, तो एक अध्यापक ने मदद की. वे बच्चों के घरों से गोमूत्र इकट्ठा कर लाते थे और लीना व समूह की महिलाएं उसी से जैविक खाद तैयार करती थीं.

70 बीघा में उगाई जा रही हैं जैविक फसलें

समूह की सदस्याएं जैसे शांता शर्मा, मीना शर्मा, सत्या देवी, तेजी शर्मा आदि अब लगभग 70 बीघा भूमि पर प्राकृतिक खेती कर रही हैं. गेहूं, गोभी, चना, मटर और लहसुन जैसी फसलें बिना किसी रसायन के उगाई जा रही हैं.

सेब की बागवानी में भी सफलता

तेजी शर्मा नाम की एक समूह सदस्या ने तो अब सेब की बागवानी भी इसी विधि से शुरू कर दी है. उन्होंने सेब के साथ-साथ धनिया, प्याज़, लहसुन और मटर को भी सह-फसलों के रूप में लगाया है. उन्हें उम्मीद है कि पैदावार बेहतरीन होगी.

बढ़ती लोकप्रियता, लगातार आ रहे फोन

कम खर्च, ज्यादा मुनाफा और ज़हरमुक्त फसल- इन खूबियों ने इस खेती को इलाके में तेजी से लोकप्रिय बना दिया है. लोग लीना शर्मा और उनके समूह से लगातार फोन पर संपर्क कर इस विधि को सीखना चाहते हैं. अभी तक ये समूह करीब 100 किसानों को प्राकृतिक खेती से जोड़ चुका है.

नीति आयोग ने भी किया सम्मान

लीना शर्मा और समूह की मेहनत को राष्ट्रीय स्तर पर भी सराहा गया है. जून 2019 में नीति आयोग के उपाध्यक्ष डॉ. राजीव कुमार ने खुद लीना और सत्या देवी से बात की और उनके अनुभव जाने. यह इस समूह के लिए एक गौरव का क्षण था.

एक गांव से शुरू हुई ये क्रांति

लीना शर्मा और उनका समूह आज सिर्फ एक गांव नहीं, बल्कि पूरे क्षेत्र के किसानों के लिए प्रेरणा बन चुका है. उनका सपना है कि पूरा क्षेत्र रसायन मुक्त खेती की ओर बढ़े. उनका यह प्रयास दिखाता है कि अगर नारी ठान ले, तो हर बदलाव संभव है.

एक नई दिशा, एक नई सोच

पंज्याणू गांव की यह कहानी बताती है कि आज भी गांवों में हरियाली की क्रांति संभव है. बस जरूरत है एक पहल की, और बाकी लोग खुद-ब-खुद जुड़ते चले जाते हैं. प्राकृतिक खेती सिर्फ खेती नहीं, एक सोच है- सेहतमंद समाज और टिकाऊ भविष्य की.

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