आईआईटी मुंबई से पीएचडी राकेश अग्रवाल ने तैयार क‍िया फ्लेवर्ड गोमूत्र, जानें क्या है खास

आईआईटी मुंबई से पीएचडी राकेश अग्रवाल ने तैयार क‍िया फ्लेवर्ड गोमूत्र, जानें क्या है खास

IIT मुंबई से PHD कर चुके डॉक्टर राकेश चंद्र अग्रवाल ने संजीवनी रस की खोज की है. उन्होंने अपनी लैब में Flavoured Gaumutra तैयार किया है, और इसको संजीवनी रस का नाम दिया है. इसी के साथ वो देश की अन्य गौशालाओं में भी इसको बनाने की विधि को लेकर ट्रेनिंग दे रहे हैं.

डॉक्टर राकेश चंद्र अग्रवाल संजीवनी रस देते हुएडॉक्टर राकेश चंद्र अग्रवाल संजीवनी रस देते हुए
अंकित शर्मा
  • Noida,
  • Apr 23, 2023,
  • Updated Apr 23, 2023, 12:47 PM IST

बीते कई वर्षों से देश में गाय और गोमूत्र चर्चा का विषय बने हुए हैं, इसी क्रम में बीते दिनों IIT मुंबई से PHD कर चुके डॉक्टर राकेश चंद्र अग्रवाल ने संजीवनी रस की खोज की है. उन्होंने अपनी लैब में फ्लेवर्ड गोमूत्र (Flavoured Gomutra) तैयार किया है और इसको संजीवनी रस नाम दिया है. इसी के साथ वो देश की अन्य गौशालाओं में भी इसको बनाने की विधि को लेकर ट्रेनिंग दे रहे हैं. डॉ राकेश लंबे समय से गोमूत्र पर रिसर्च कर रहे हैं, वह दावा करते हैं क‍ि उनकी र‍िसर्च में सामने आया है क‍ि गोमूत्र में कई तरह के लाभकारी एंजाइम्स और न्यूट्रिएंट्स होते हैं. वे कहते हैं क‍ि शुद्ध गौमूत्र का सेवन करने में कई लोगों की परेशानी होती है. इस बात को ध्यान में रखते हुए उन्होंने फ्लेवर गोमूत्र तैयार क‍िया है, ज‍िसमें ना तो स्मेल है और ना ही कोई बैक्टीरिया. साथ ही इसके निरंतर सेवन से मनुष्यों में होने वाली गंभीर बीमारियों से भी निजात मिल रही है और यह सेहत के लिए भी लाभदायक है. 

कैसे बनता है गोमूत्र से संजीवनी रस 

आईआईटी मुंबई से पीएचडी कर चुके डॉ राकेश ने किसान तक से बातचीत में फ्लेवर्ड गोमूत्र को तैयार करने का फार्मूला बताया. उन्होंने बताया क‍ि इसके ल‍िए सबसे पहले गाय का ताजा और सुबह का पहला गोमूत्र लेना होता है फिर उसके बाद अलग अलग तरह के प्राकृतिक केमिकल्स जैसे साइट्रिक एसिड, लैक्टिक एसिड, एस्कोरबिक एसिड और 5 माइक्रोन के वाटर प्यूरीफायर की आवश्यकता होती है. इनस सबके साथ इसे फिर फिल्टर किया जाता है और फिर बाद में प्राकृतिक फ्लेवर और कलर भी डाले जाते हैं और फिर शुरू होता है इसकी पैकेजिंग का काम.

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गंभीर बीमारियों के इलाज में होता है प्रयोग 

आईआईटी मुंबई से पीएचडी कर चुके डॉ राकेश क‍िसान तक को बताते हैं कि गोमूत्र बायो एन्हैंसर है और इसका जिक्र हजारों साल पहले से आयुर्वेद में है, इसके उपयोग से डेंगू, चिकनगुनिया या और कोविड-19 तक ठीक होने के दावे लोगों द्वारा किये गए हैं. साथ ही इसमें बैक्टीरिया या वायरस को खत्म करने की क्षमता होती है, जिससे यह टीबी और कैंसर के मरीजों के लिए भी लाभदायक होता है. 

वह बताते हैं कि फ्लेवर्ड गोमूत्र जिसको उन्होंने संजीवनी रस का नाम दिया है, इसके सेवन से हो रहे लाभ के चलते देश में इसकी मांग तेजी से बढ़ रही है और यह अब देश के 150 शहरों में लोगों के लिए उपलब्ध है.
 

इतनी तरह के फ्लेवर्ड गोमूत्र हैं उपलब्ध

राजस्थान में कोटा शहर की गोशालाओं में बनने वाला फ्लेवर्ड गोमूत्र अब छह से भी ज्यादा फ्लेवर में तैयार किया जा रहा है. जिसमें पाइनएप्पल, स्ट्रॉबेरी, मैंगो, ऑरेंज, पान, मिक्स फ्रूट फ्लेवर भी शामिल है. बढ़ती मांग के चलते इसको और फ्लेवर्ड पर काम जारी है.

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गौशालाओं को समृद्ध बनाना भी उद्देश्य

डॉक्टर राकेश ने बताया कि फ्लेवर्ड गोमूत्र बनाने की शुरूआत तो राजस्थान में कोटा शहर की विभिन्न गौशालाओं में हो चुकी है. अब उनका मकसद इसे देश के विभिन्न शहरों और गांव में स्थित गौशालाओं तक पहुंचाना है. इससे गौसेवक और समृद्ध होंगे व गाय, गोबर,गोमूत्र के महत्व और इसकी महिमा को समझेंगे. इससे वह देश की अर्थव्यवस्था में अपना अहम योगदान दे सकेंगे.

 

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