केंचुआ बेचकर 3 लाख रुपये की कमाई करते हैं रोहतास के विजय बहादुर, खेती में अपनाई ये देसी तकनीक

केंचुआ बेचकर 3 लाख रुपये की कमाई करते हैं रोहतास के विजय बहादुर, खेती में अपनाई ये देसी तकनीक

रोहतास जिले के राजपुर सब डिविजन के सबिया गांव के रहने वाले विजय बहादुर सिंह ने इंटीग्रेटेड लैंड एंड वॉटर मैनेजमेंट मैथेड्स की मदद से करीब 2 हेक्टेयर जमीन को उपजाऊ बना डाला. उन्होंने केवीके, रोहतास के वैज्ञानिकों से इस रेतीली बंजर भूमि के मैनेजमेंट के लिए तकनीकी ज्ञान हासिल किया. वैज्ञानिकों के गाइडेंस से इस क्षेत्र में बागवानी फसलें उगाने की योजना बनाई.

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  • Aug 27, 2024,
  • Updated Aug 27, 2024, 9:36 PM IST

हमेशा से कहा जाता रहा है केंचुएं खेती और किसान के सच्‍चे साथी हैं. बिहार के एक ऐसे किसान की कहानी बताने जा रहे हैं जिसके लिए वाकई केंचुआ सच्‍चा साथी साबित हुआ है. बिहार के रोहतास जिले में रहने वाले किसान यूं तो हमेशा से प्रोग्रेसिव सोच वाले रहे लेकिन उन्‍होंने एक ऐसी देसी तकनीक अपनाई जिसने उनकी पूरी जिंदगी ही बदलकर रख दी. आज वह केंचुआ बेचकर ही तीन लाख रुपये की कमाई कर डाली है. बिहार के रोहतास में रहने वाले विजय बहादुर की सफलता बाकी किसानों के लिए भी प्रेरणा हैं. उनकी सफलता की कहानी को रोहतास के कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) की तरफ से भी शेयर किया गया है. 

मिला वैज्ञानिकों का साथ 

रोहतास जिले के राजपुर सब डिविजन के सबिया गांव के रहने वाले विजय बहादुर सिंह ने इंटीग्रेटेड लैंड एंड वॉटर मैनेजमेंट मैथेड्स की मदद से करीब 2 हेक्टेयर जमीन को उपजाऊ बना डाला. उन्होंने केवीके, रोहतास के वैज्ञानिकों से इस रेतीली बंजर भूमि के मैनेजमेंट के लिए तकनीकी ज्ञान हासिल किया. वैज्ञानिकों के गाइडेंस से इस क्षेत्र में बागवानी फसलें उगाने की योजना बनाई. वर्मी-कम्पोस्ट का उत्पादन और प्रयोग, ऑर्गेनिक और अकार्बनिक मल्च का प्रयोग, वॉटर एप्‍लीकेशन (जल अनुप्रयोग) की लेटेस्‍ट विधियों को अपनाना और फसल चक्र को सही से चुनने के उनके तरीकों ने 3 साल के कम समय में ही मिट्टी की गुणवत्ता और भूमि की उत्पादकता में कई गुना सुधार किया है.  

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बंजर भूमि पर उगाईं कई फसलें  

बंजर भूमि में फसल उगाना उनका मुख्य उद्देश्य था. वैज्ञानिकों की सिफारिश पर ऑर्गेनिक इनपुट मांग को पूरा करने के लिए उन्होंने 2010 से वर्मी-कम्पोस्ट का उत्पादन शुरू किया. शुरुआत में उन्होंने बरसात के मौसम में सब्जी की फसल उगाना शुरू किया और वर्मी-कम्पोस्ट और ऑर्गेनिक मल्च के सही प्रयोग से उन्‍हें फायदा भी मिला. उन्हें अपने पहले ही प्रयास से फायदा हासिल होने लगा था. इस मौसम में चावल-गेहूं फसल सिस्‍टम वाले जिले में सब्जी की उपलब्धता बहुत कम है. इस मौसम में सब्जी की ज्‍यादा लागत ने उन्हें उसी जमीन पर पूरे मौसम में फसल उगाने के लिए प्रोत्साहित किया.  

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केंचुआ बेचने का आइडिया फेवरिट 

जमीन ऊंची और रेतीली थी, इसलिए सिंचाई की पारंपरिक विधि इसके लिए ठीक नहीं थी. ऐसे में उन्‍होंने सिंचाई के एडवांस्‍ड तरीकों को अपनाया. कई फसलों के लिए ड्रिप इरीगेशन, माइक्रो स्प्रिंकलर, स्प्रिंकलर और रेन-गन इरीगेशन मैथेड का प्रयोग करना शुरू कर दिया. प्रमुख फसलों के अलावा उन्होंने अपने खेत में भिंडी, खीरा, बैगन, पालक, मेथी, चना, प्याज, लहसुन, सरसों, स्ट्रॉबेरी, चुकंदर, मूली, गाजर, गोभी, फूलगोभी की खेती भी सफलतापूर्वक की. इसके साथ ही वे केंचुआ बेचकर करीब 2-5 से 3 लाख रुपये कमा रहे हैं. उनका यह इनोवेटिव आइडिया स्थानीय किसानों के बीच तेजी से फैल रहा था. लेकिन नीलगाय के हमले ने उन्हें फिर से सोचने पर मजबूर कर दिया.   

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