`रसायन नहीं समाधान` सिद्दीपेट के नागार्जुन का बायो-मैजिक, मिर्च-टमाटर की फसल में कीटों की 'नो एंट्री`

`रसायन नहीं समाधान` सिद्दीपेट के नागार्जुन का बायो-मैजिक, मिर्च-टमाटर की फसल में कीटों की 'नो एंट्री`

खेत पर प्रदर्शन के दौरान, टमाटर, मिर्च और बैंगन की फसलों पर जैव नियंत्रण तकनीकें लागू की गईं. रासायनिक उर्वरकों को एजोटोबैक्टर (नाइट्रोजन के लिए), फॉस्फोरस और पोटाश-घुलनशील बैक्टीरिया और जिंक-घुलनशील बैक्टीरिया सहित जैव उर्वरकों से बदल दिया गया. सूक्ष्मजीव जो स्वाभाविक तौर पर मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाते हैं और सिंथेटिक इनपुट पर निर्भरता को कम करते हैं. 

प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर
क‍िसान तक
  • Noida,
  • Apr 23, 2025,
  • Updated Apr 23, 2025, 7:17 PM IST

तेलंगाना के सिद्दीपेट जिले में एग्रीकल्‍चर एक्‍सटेंशन ऑफिसर (एईओ) टी. नागार्जुन इन दिनों खबरों में बने हुए हैं. उन्‍होंने पर्यावरण के अनुकूल कीट और पोषक तत्व प्रबंधन विधियों को बढ़ावा देने के मकसद से बायो-कंट्रोल एजेंट्स और जैव उर्वरक पेश किए हैं. एईओ ने हाल ही में रायथु वेधिका और थोगुटा मंडल के पेड्डा मसनपल्ली गांव में किसान इलापुरम अनिल रेड्डी के खेत पर इसका सफल प्रदर्शन किया है. दावा किया जा रहा है कि इन एजेंट्स और उर्वरकों के प्रयोग के बाद फसलों पर कीट लगने की संभावना जीरो हो जाती है. 

पौधों पर क्‍यों खतरनाक है केमिकल 

अखबार द हिंदू ने नागार्जुन के हवाले से लिखा है कि सभी कीट समस्याओं के लिए रासायनिक समाधान की जरूरत नहीं होती है. उनका कहना है कि कीटनाशकों के बहुत ज्‍यादा प्रयोग से न सिर्फ बायो-डायवर्सिटी को खत्‍म किया जा रहा है बल्कि मोनोकल्चर परंपराओं की वजह से कीटों का प्रकोप अक्‍सर ही देखा जाने लगा है. उन्‍होंने कहा कि फेरोमोन, स्टिकी ट्रैप और लाइट ट्रैप जैसे निगरानी उपकरण फसल के नुकसान से पहले कीटों की सीमा और फसल तक उनकी पहुंच का पता लगाने में मदद करते हैं. 

खेत पर प्रदर्शन के दौरान, टमाटर, मिर्च और बैंगन की फसलों पर जैव नियंत्रण तकनीकें लागू की गईं. रासायनिक उर्वरकों को एजोटोबैक्टर (नाइट्रोजन के लिए), फॉस्फोरस और पोटाश-घुलनशील बैक्टीरिया और जिंक-घुलनशील बैक्टीरिया सहित जैव उर्वरकों से बदल दिया गया. सूक्ष्मजीव जो स्वाभाविक तौर पर मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाते हैं और सिंथेटिक इनपुट पर निर्भरता को कम करते हैं. 

जैव कीटनाशकों का प्रयोग 

पौधों की बीमारियों को नियंत्रित करने के लिए, ट्राइकोडर्मा विराइड, स्यूडोमोनास और बैसिलस सबटिलिस जैसे सूक्ष्मजीवी एजेंटों का प्रयोग किया गया. ये सूक्ष्मजीव एंजाइम और एंटीबायोटिक दवाओं के जरिये से पौधों के रोगजनकों को रोककर विरोधी गतिविधि प्रदर्शित करते हैं. थ्रिप्स, व्हाइटफ्लाइज और जैसिड जैसे चूसने वाले कीटों के प्रबंधन के लिए, किसानों ने ब्यूवेरिया बेसियाना, वर्टिसिलियम लेकानी और इसारिया सहित जैव कीटनाशकों को प्रयोग किया. कैटरपिलर, बोरर और लीफ माइनर जैसे कीटों से मेटारिजियम और बैसिलस थुरिंजिएंसिस का प्रयोग करके उनसे निपटा गया. 

पौधों की रोग- प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए नोमुरिया और बैसिलस सबटिलिस जैसे बाकी फायदेमंद सूक्ष्मजीवों को भी शामिल किया गया.नागार्जुन के मुताबिक ये पर्यावरण-अनुकूल तरीके प्रदूषण को कम करते हैं, मिट्टी की जैव विविधता को संरक्षित करते हैं और लंबे समय तक मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार करते हैं. किसान अनिल रेड्डी को इस पहल से काफी फायदा हुआ है. 

किसान को अच्‍छी उपज की उम्‍मीद 

किसान रेड्डी ने कहा कि टमाटर और मिर्च की फसलों में कीटों का सफाया हो गया है. हालांकि बैंगन में अभी भी कुछ कीट देखे गए हैं. कृषि विज्ञान केंद्र (KVK), मेडक से उन्‍हें जो ऑर्गेनिक इनपुट मिले, उससे उर्वरकों और कीटनाशकों पर करीब 5,000 रुपये की बचत भी हुई. रेड्डी आधे एकड़ या 20 गुंटा जमीन पर फसल उगाते हैं. साथ ही वह खेत में खरपतवार को रोकने के लिए मल्चिंग शीट के प्रयोग जैसी मॉर्डन तरीकों का भी प्रयोग कर रहे हैं. अब उन्‍हें अच्छी उपज की उम्मीद है. 

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