यूपी के भूगर्भ जल विभाग ने बीते महीने 'भूजल संसाधन आकलन रिपोर्ट 2022' जारी की थी, जिसमें यूपी के 15 जिलों में गिरते भूजल स्तर को लेकर चिंता जाहिर की थी. रिपोर्ट में कहा गया था कि आगरा, मथुरा समेत 15 जिले भूजल का अतिदोहन होने के कारण गंभीर संकट की स्थिति में पहुंच गए हैं. इस रिपोर्ट के जारी होने के बाद यूपी सरकार ने आगरा, मथुरा समेत वेस्टर्न यूपी के 4 जिलों के भूजल स्तर को ऊपर उठाने की रूपरेखा तैयार कर ली है. जिसके तहत इन जिलों का भूजल स्तर ऊपर उठाने के लिए वर्ष 2027 तक का समय निर्धारित किया गया है. ये पूरी कवायद अप्रत्यक्ष रूप से आगरा-मथुरा, फिरोजाबाद और मैनपुरी को सूखे से बचाने की है. बेशक वेस्टर्न यूपी के ये सभी इलाके जल संसाधनों से भरपूर हैं. लेकिन, गिरता भूजल स्तर सूखे की चेतावनी की तरफ इशारा है.
असल में पिछले महीने विभाग द्वारा नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को सौंपी गई रिपोर्ट में इस संकट का कारण शहरी क्षेत्रों में उद्योग एवं घरेलू उपयोग में जरूरत से ज्यादा पानी के इस्तेमाल तथा ग्रामीण इलाकों में सिंचाई के लिए भूजल पर निर्भरता को बताया गया है. पानी के बेकाबू दोहन ने यूपी के तमाम इलाकों में भूजल स्तर को चिंताजनक स्थिति में पहुंचा दिया है.
यूपी के जल शक्ति विभाग ने भूजल स्तर के लिहाज से सबसे गंभीर स्थिति में पहुंच चुके आगरा मंडल से ही इस खतरे से बाहर आने के उपाय करने की शुरूआत कर दी है. यूपी के जलशक्ति मंत्री स्वतंत्रदेव सिंह ने आगरा मंडल के हालात की समीक्षा कर संकट से निपटने के लिए बनाई गई कार्ययोजना पर तत्काल काम शुरू करने के अधिकारियों को निर्देश दिए हैं. इसके तहत 2027 तक आगरा मंडल का भूजल स्तर सुधारने का लक्ष्य तय करते हुए इस योजना पर काम शुरू किया गया है. सभी संबद्ध विभागों की मंडलीय समीक्षा बैठक में उन्होंने खेती में इस्तेमाल हो रहे भूगर्भीय जल के उपयोग पर निर्भरता कम करने को कहा है.
बैठक में आगरा मंडल की कृषि योग्य भूमि तथा सिंचित भूमि के बारे में जनपदवार जानकारी दी गई. इसमें अधिकारियों ने बताया कि फिरोजाबाद जिले में कुल 1.80 लाख हेक्टेयर खेती की सिंचित भूमि है. इसमें विभाग के 334 राजकीय ट्यूबेल से कुल 17,800 हेक्टेयर जमीन की सिंचाई होती है. बाकी जमीन की सिंचाई 20 हजार निजी नलकूपों तथा नहरों द्वारा की जा रही है. आगरा जिले में कुल 2.08 लाख हजार हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि है. इसमें 281 राजकीय नलकूपों से 10,090 हेक्टेयर तथा शेष जमीन की सिंचाई निजी नलकूपों एवं नहरों से की जाती है.
मथुरा जिले में 1.21 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि में 675 किमी लंबी नहर से सिंचाई की जाती है और शेष भूमि की सिंचाई निजी नलकूप तथा चैक डैम से की जाती है. इसी प्रकार मैनपुरी जिले में कुल 1.84 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि में 1.82 लाख हेक्टेयर सिंचित भूमि है. इसे 539 राजकीय नलकूपों से 27 हजार हेक्टेयर भूमि सिंचित की जाती है. शेष जमीन की सिंचाई निजी नलकूपों से होती है. स्पष्ट है कि मंडल के सभी जिलों में सिंचित जमीन का अधिकांश हिस्सा भूगर्भीय जल पर निर्भर है.
कार्ययोजना के तहत जलशक्ति मंत्री ने ग्रामीण इलाकों में छोटे-छोटे चेक डैम और नहरें बनाकर वर्षाजल को रोकने का काम अगले 1 साल में पूरा करने का लक्ष्य तय किया है. इसी अवधि में शहरी क्षेत्रों में सभी सरकारी एवं निजी इमारतों और स्कूलों को रेनवॉटर हारर्वेस्टिंग सिस्टम से लैस करने काे कहा गया है. इसके अलावा ग्रामीण इलाकों में खेत तालाब योजना के तहत किसानों को तालाब बनवाकर सिंचाई जल की निर्भरता, वर्षाजल पर करने के लिए प्रोत्साहित करने को कहा गया है.
सिंह ने समूचे मंडल में पहले से मौजूद झील, नहर तथा तालबों की सूची बना कर इन्हें अवैध कब्जों से तत्काल मुक्त कराने, बदहाल होने पर इनका पुनरुद्धार करने और बेकार पड़ी जमीनों पर वर्षा जल संग्रह के स्रोत बनाने को कहा है. कार्ययोजना में सिंचाई के लिए भूगर्भीय जल पर निर्भरता को चरणबद्ध तरीके से खत्म करने एवं शहरी क्षेत्रों में एक बार उपयोग में लाया जा चुका पानी संग्रह कर विकासकार्यों के लिए इस्तेमाल करने की बात कही गई है. उन्होंने कहा ने सरकार की प्राथमिकता हर खेत और हर घर तक पानी पहुंचाने की है. इसके लिए 2025 तक वर्षा जल संग्रह के उपाय सुनिश्चित किए जाएंगे. इन सभी उपायों का परिणाम भूजल स्तर बढ़ने के रूप में 2027 तक मिलने लगेगा.
भूगर्भ जल विभाग की रिपोर्ट में उजागर हुई चौंकाने वाली स्थिति के अनुसार यूपी के 75 जिलों के कुल 826 विकासखंडों में से 47 जिलों के 269 विकासखंड में भूजल का जरूरत से ज्यादा दोहन हुआ है. भूगर्भीय जल के दोहन के मानकों के मुताबिक इस सूची में उन विकासखंडों को शामिल किया गया है, जिनमें मानसून की बारिश के बाद मैदानी क्षेत्र में भूजल का स्तर 08 मीटर और पाठारी क्षेत्र में 05 मीटर से नीचे चला गया हो. इन जिलों को तीन श्रेणियों (सेमी क्रिटिकल, क्रिटिकल और ओवर एक्सप्लॉयटेड यानि अतिदोहन) में बांटा गया है.
रिपोर्ट के मुताबिक जिन 15 जिलों के 54 विकास खंडों में जमीन के पानी का अति दोहन हुआ है, उनमें अधिकांश जिले पश्चिमी यूपी के हैं. इनमें सर्वाधिक 09 विकासखंड आगरा जिले (एत्मादपुर, फतेहाबाद, बिचपुरी, खंदौली, सैंया, फतेहपुर सीकरी, बरौली अहीर, अकोला और शमशाबाद) के हैं. इनता नही नहीं आगरा जिले के बाह और जैतपुर कलां विकासखंड को क्रिटिकल एवं 04 विकास खंडों (पिनहट, अछनेरा, खैरागढ़ और जगनेर) को सेमी क्रिटिकल श्रेणी में शामिल किया गया है.
इसके अलावा पानी के अति दोहन के संकट से प्रभावित अन्य जिलों में बुलंदशहर के 06, फिरोजाबाद के 05, सहारनपुर के 04 तथा बागपत, हाथरस, गाजियाबाद और शामली के 03-03 विकासखंड, शामिल हैं. क्रिटिकल श्रेणी के जिलों में भी पश्चिमी उप्र आगे है. इनमें बुलंदशहर और संभल जिले के 04 विकासखंडों के अलावा हापुड़, हाथरस, अमरोहा, मथुरा, मेरठ, मुजफ्फरनगर और बदायूं के 02-02 विकासखंड शामिल हैं. स्पष्ट है कि लगभग पूरा आगरा मंडल भूगर्भीय जल स्तर के मामले में गंभीर संकट से घिरा है.
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