जापान की घटती आबादी का असर हर चीज में दिख रहा है. जापानी आबादी का 20 परसेंट से अधिक हिस्सा 65 वर्ष से अधिक पुराना है. दुनिया में सबसे ज्यादा बुजुर्ग आबादी जापान में ही है. जापान की सिकुड़ती आबादी का असर ये हुआ है कि देश में श्रमिकों की कमी हो गई है. देश अब अधिक विदेशी श्रमिकों और मजदूरों की तलाश में है. जापानी श्रमिक अब भारत से खेतिहर मजदूरों की तलाश कर रहे हैं.
'स्पेसिफाइड स्किल्ड वर्कर्स' कैटेगरी के तहत फरवरी 2023 तक जापान में 36 से ज्यादा भारतीय पहुंचे हैं और करीब 631 भारतीय टेक्निकल इंटर्न ट्रेनिंग प्रोग्राम के तहत जापान आए हैं. टोक्यो में भारतीय दूतावास में सूचना अधिकारी माधुरी गद्दाम कहती हैं, "ये दोनों कार्यक्रम भारतीय कुशल श्रमिकों के लिए जापान आने और लाभकारी रूप से नियोजित होने के बड़े अवसर हैं."
भारत के उत्तराखंड में चंपावत से निर्मल सिंह रंसवाल, जो अगस्त 2022 में जापान चले गए थे, अब जापान में चिबा प्रांत में गोभी के खेत इचिहारा में काम करते हैं. निर्मल अपने दोस्त शिवा के साथ टेक्निकल इंटर्न ट्रेनिंग प्रोग्राम के तहत जापान आए थे. दूसरी ओर, मोनिट डोले (31 साल) जापान के नागानो प्रांत में मिनामिसाकु में खेत में सलाद और चीनी गोभी किसान के रूप में काम करते हैं.
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ये सभी मजदूर जापान में अलग-अलग खेतों में काम करते हैं. कई अभी भी यहां आने का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं. हालांकि मांग और आपूर्ति में अंतर, भाषा के मुद्दे, सांस्कृतिक बदलाव, वीजा देने में देरी जैसे मुद्दे इन मजदूरों और जापान के बीच बाधा बने हुए हैं.
ऑल जापान एसोसिएशन ऑफ इंडियंस के अध्यक्ष योगेंद्र पुराणिक ने कहा, 'टीआईटीपी कार्यक्रम विफल रहा, इस पर जापान में भी खूब हो-हल्ला हुआ. यह कार्यक्रम ठीक से नहीं चलाया गया. हमारे मजदूरों की सुरक्षा या सुरक्षा या उन्हें सही वेतन देने के लिए कोई नियम नहीं थे. भारत के दृष्टिकोण से भी इसे अच्छी तरह से प्रबंधित नहीं किया गया था. TITP कार्यक्रम के तहत जापान आने वाले लोगों को भेजने वाले संगठनों को और जापान में प्रबंधन करने वाले संगठनों को लगभग 8-10 लाख रुपये का भुगतान करना पड़ता था. साथ ही, इन मजदूरों को जापान आने और काम करने के लिए अच्छी तरह से प्रशिक्षित नहीं किया गया था.
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योगेंद्र पुराणिक कहते हैं, इसलिए जब वे (श्रमिक) जापान आए तो उन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ा. साथ ही यहां जिन संस्थाओं में मजदूर रुके, उनके पास इन मजदूरों का प्रतिनिधित्व करने के लिए कोई चेहरा नहीं था. यहां तक कि 2019 में शुरू किए गए कुशल श्रमिक कार्यक्रम को भी भारतीय पक्ष द्वारा अब तक अच्छी तरह से प्रबंधित नहीं किया गया है और इसलिए हम वियतनाम, ताइवान जैसे अन्य देशों के लिए बाजार खो रहे हैं. भारत में बेरोजगारी एक बड़ा मुद्दा है और हमारे पास वहां मजदूर बैठे हैं जिन्हें जापान भेजा जा सकता है. भारत सरकार, राज्य सरकारों, टोक्यो में भारतीय दूतावास, भेजने वाले संगठनों और जापान में भारतीय प्रवासी को इसे सफल बनाने के लिए मिलकर काम करना होगा.
(जापान से पाॅलोमी बर्मन की रिपोर्ट)