हिमाचल प्रदेश सरकार ने राज्य के दूध उत्पादकों को बड़ी राहत देते हुए पंजीकृत दूध समितियों को दी जाने वाली ट्रांसपोर्ट सब्सिडी को 1.50 रुपये से बढ़ाकर 3 रुपये प्रति लीटर कर दिया है. शनिवार को कामधेनु हितकारी सोसाइटी के प्रतिनिधिमंडल ने फैसले को लेकर शिमला में मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू से मुलाकात के दौरान उनका आभार जताया. प्रतिनिधियों ने कहा कि इस फैसले से उनकी सोसायटी के करीब 6,000 परिवारों को सीधा फायदा होगा.
मुख्यमंत्री से मुलाकात के दौरान सोसाइटी के सदस्यों ने कहा हिमाचल प्रदेश देश का पहला राज्य है, जो दूध उत्पादकों को इस प्रकार की परिवहन सब्सिडी दे रहा है. उन्होंने उम्मीद जताई कि इससे दूध उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को ताकत मिलेगी. वहीं, मुख्यमंत्री सुक्खू ने बातचीत में कहा कि राज्य सरकार किसानों की आमदनी बढ़ाने को लेकर गंभीर है. उन्होंने यह भी बताया कि फिलहाल हिमाचल में गाय का दूध 51 रुपये और भैंस का दूध 61 रुपये प्रति लीटर की दर से खरीदा जा रहा है, जो देश में सबसे ज्यादा है.
इसके अलावा उन्होंने MSP (न्यूनतम समर्थन मूल्य) को लेकर कहा कि राज्य में प्राकृतिक रूप से उगाए गए गेहूं और जौ के लिए 60 रुपये, मक्का के लिए 40 रुपये, और हल्दी के लिए 90 रुपये प्रति किलो की दर तय की गई है. सुक्खू ने कहा कि सरकार की कोशिश सिर्फ अनाज या दूध की कीमत बढ़ाने तक सीमित नहीं है, बल्कि ग्रामीण इलाकों की पूरी आर्थिक संरचना को मजबूत करने की दिशा में है.
उन्होंने प्रतिनिधिमंडल से वादा किया कि वे सितंबर के पहले हफ्ते में कामधेनु समिति द्वारा आयोजित कार्यक्रम में खुद शिरकत करेंगे. इस दौरान विधायक संजय अवस्थी भी मौजूद थे. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ग्रामीण समाज, किसानों और मजदूरों की ज़रूरतों को प्राथमिकता दे रही है और योजनाओं का असर अब ज़मीन पर दिखने लगा है.
वहीं, एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में हिमाचल प्रदेश के राजस्व, बागवानी और जनजातीय विकास मंत्री जगत सिंह नेगी ने शुक्रवार को कहा कि राज्य सरकार उच्च न्यायालय के उस निर्देश के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाएगी जिसके कारण अतिक्रमित वन भूमि पर फलदार और हरे पेड़ों की बड़े पैमाने पर कटाई हुई है.
उन्होंने हरे पेड़ों की कटाई को "पर्यावरण के लिए विनाशकारी" और पारिस्थितिक संरक्षण के सिद्धांतों के विपरीत बताया. नेगी ने एएनआई को बताया, "देश में कहीं भी हरे पेड़ों की कटाई की अनुमति नहीं है. अवैध अतिक्रमणों को हटाने का काम किया जा रहा है, लेकिन दशकों पुराने फलदार पेड़ों को काटना उचित नहीं है."
उन्होंने आगे कहा कि राज्य हरित क्षेत्र के अनावश्यक विनाश को रोकने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर करेगा.हालांकि सरकार अवैध अतिक्रमण हटाने के उच्च न्यायालय के आदेश का पालन कर रही है, नेगी ने चेतावनी दी कि सेब के बागों और अन्य पूर्ण विकसित पेड़ों को बड़े पैमाने पर हटाने से गंभीर पर्यावरणीय परिणाम हो सकते हैं, खासकर भारी मॉनसून, बादल फटने और बाढ़ के खतरे के बीच.