बिहार में शहद उत्पादन ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के जीवन में मिठास घोल दी है. राज्य की ग्रामीण और शहरी आबादी में मधुमक्खी पालन रोजगार का एक मजबूत विकल्प बन चुका है. पिछले लगभग 20 वर्षों में बिहार ने शहद उत्पादन में अभूतपूर्व तेजी हासिल की है. वर्ष 2023-24 में बिहार का शहद उत्पादन 18,030 मीट्रिक टन से अधिक पहुंच गया है, जिससे यह देश में चौथे स्थान पर है.
राज्य में सरसों, लीची, सहजन, जामुन जैसी फसलों के खेतों में मधुमक्खी पालन को बढ़ावा मिलने से शहद उत्पादन में लगातार वृद्धि हुई है. विशेषज्ञों के अनुसार, सरकारी योजनाओं से मिलने वाले प्रोत्साहन, अनुकूल जलवायु, वनस्पतियों की विविधता और प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता ने इस बढ़ोतरी में अहम भूमिका निभाई है.
बिहार के अलग-अलग जिलों में शहद के अलग-अलग फ्लेवर भी लोकप्रिय हैं. मुजफ्फरपुर, वैशाली और समस्तीपुर के लीची बागानों से तैयार शहद अपने अनोखे स्वाद के लिए मशहूर है. नालंदा और पटना में सरसों के खेतों का शहद, और औरंगाबाद और रोहतास में तिल के शहद की खासी मांग है.
मधुमक्खी पालन को प्रोत्साहित करने के लिए केंद्र और राज्य सरकार ने कई योजनाएं शुरू की हैं. एकीकृत बागवानी विकास मिशन और राज्य योजना के तहत मधुमक्खी पालकों को मधुमक्खी बक्सा, छत्ते और मधु निष्कासन यंत्र पर 75 से 90 प्रतिशत तक अनुदान दिया जाता है. साथ ही, परागण बढ़ावा कार्यक्रम के तहत हर साल 20 हजार से एक लाख मधुमक्खी बक्से वितरित किए जा रहे हैं.
बिहार का शहद न केवल उत्पादन में बढ़ा है, बल्कि इसकी क्वालिटी के कारण पूरे देश में इसकी मांग भी बढ़ी है, जिससे मधुमक्खी पालन से जुड़े किसानों और उद्यमियों की आय में सुधार हुआ है. बिहार में शहद उत्पादन से किसानों की अच्छी-खासी कमाई बढ़ी है. इसे देखते हुए सरकार भी इसे प्रोत्साहित कर रही है.
शहद उत्पादन के लिए मधुमक्खी पालन का काम तेजी से बढ़े, इसके लिए सरकार सब्सिडी स्कीम लेकर आई है. जो किसान शहद उत्पादन करते हैं या करना चाहते हैं, वे सरकारी स्कीम का लाभ ले सकते हैं. इसमें किसानों को शहद बक्सा खरीदने जैसे काम के लिए सब्सिडी दी जाती है.
बिहार में किसान बड़ी संख्या में मधुमक्खी पालन में दिलचस्पी ले रहे हैं क्योंकि उन्हें इससे बेहतर कमाई हो रही है. जिस तरह नकदी फसल से किसान कमाई करते हैं, उसी तरह मधुमक्खी पालन में भी कम ही दिनों में कमाई शुरू हो जाती है.