भारत की आजादी से पहले से ही खादी उद्योग ग्रामीण क्षेत्र के लिए रोजगार का एक सशक्त माध्यम रहा है. बिहार के संदर्भ में भी खादी उद्योग का एक समृद्ध इतिहास रहा है. हालांकि, समय के साथ राज्य में इस उद्योग से जुड़े व्यवसाय धीरे-धीरे समाप्त होते गए. ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के सीमित अवसरों के कारण कई खादी बुनकर अपनी आजीविका के लिए संघर्ष कर रहे हैं. इस स्थिति को बदलने के लिए बिहार सरकार ने खादी उद्योग को बढ़ावा देने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया है. इसके तहत चरखा और करघा पर 90% तक अनुदान देने की योजना शुरू की गई है, जिससे लगभग 45 हजार गांवों की खादी संस्थाओं को आर्थिक सहायता मिलने की उम्मीद है.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने कार्यकाल के अंतिम चरण में विभिन्न क्षेत्रों के लिए योजनाओं के माध्यम से सहायता पहुंचाने का प्रयास तेज कर दिया है. खादी उद्योग को पुनर्जनन के लिए उनके मास्टर प्लान के तहत बड़े पैमाने पर प्रयास किए जा रहे हैं. सरकार ने न केवल चरखा और करघा पर 90% तक अनुदान देने की योजना बनाई है, बल्कि प्रति चरखा 40,000 रुपये पर 4% वार्षिक ब्याज दर के साथ सस्ते ऋण की सुविधा भी उपलब्ध करा रही है. इस पहल से न केवल पारंपरिक खादी उद्योग को मजबूती मिलेगी, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसरों में भी वृद्धि होगी.
विशेषज्ञों का मानना है कि बिहार सरकार की इस पहल से खादी उद्योग एक बार फिर गति पकड़ेगा. इससे ग्रामीण स्तर पर रोजगार और आय में वृद्धि होगी, जिससे स्थानीय खरीद-फरोख्त और आर्थिक गतिविधियां बढ़ेंगी. विशेष रूप से महिलाओं और युवाओं के लिए स्वरोजगार के अवसर बढ़ेंगे, जिससे आर्थिक स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा मिलेगा. 4 प्रतिशत ब्याज दर पर उपलब्ध बैंक ऋण ग्रामीण महिलाओं और पुरुषों के लिए स्वरोजगार का एक प्रभावी माध्यम बन सकता है. साथ ही, खादी एक प्राकृतिक और पर्यावरण-मित्र कपड़ा होने के कारण टिकाऊ विकास को बढ़ावा देगा और पर्यावरणीय प्रदूषण को कम करने में योगदान देगा.
नीतीश सरकार की यह योजना चरखा और करघा के माध्यम से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नई दिशा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है. हालांकि, बीते कुछ वर्षों में धन की कमी के कारण कई कारीगरों ने इस व्यवसाय से दूरी बना ली थी. सरकार की यह योजना उनके लिए निराशा के बीच आशा की किरण लेकर आई है. अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि यह योजना जमीनी स्तर पर कितनी प्रभावी सिद्ध होती है. बिहार में बाजार की कमी और बिचौलियों के वर्चस्व के कारण कई ग्रामीण उद्योग फल-फूल नहीं पाए हैं. इसलिए, इस योजना की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि सरकार इन चुनौतियों का समाधान कैसे करती है.