झारखंड में आदिवासी और ओबीसी वोटबैंक होगा बीजेपी का मददगार? असम के सीएम हेमंत बिस्वा सरमा को मिली बड़ी जिम्‍मेदारी

झारखंड में आदिवासी और ओबीसी वोटबैंक होगा बीजेपी का मददगार? असम के सीएम हेमंत बिस्वा सरमा को मिली बड़ी जिम्‍मेदारी

महाराष्‍ट्र और हरियाणा के साथ ही झारखंड में भी अक्‍टूबर-नवंबर में चुनाव होने हैं. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) अब इन चुनावों में जीत की पूरी कोशिशों में लग गई है. यहां 28 अनुसूचित जनजाति (एसटी)-आरक्षित विधानसभा सीटों में से कम से कम 10 पर जीत सुनिश्चित करने के लिए बीजेपी ने सभी बड़े नेताओं को मैदान में उतारने का मन बन लिया है. साथ ही उन 52 निर्वाचन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने की उसकी अहम रणनीति हैं.

Himanta Biswa Sarma: Arvind Kejriwal and Hemant Soren received benefit of 'Congress washing machine'Himanta Biswa Sarma: Arvind Kejriwal and Hemant Soren received benefit of 'Congress washing machine'
क‍िसान तक
  • New Delhi ,
  • Jul 27, 2024,
  • Updated Jul 27, 2024, 7:49 PM IST

महाराष्‍ट्र और हरियाणा के साथ ही झारखंड में भी अक्‍टूबर-नवंबर में चुनाव होने हैं. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) अब इन चुनावों में जीत की पूरी कोशिशों में लग गई है. यहां 28 अनुसूचित जनजाति (एसटी)-आरक्षित विधानसभा सीटों में से कम से कम 10 पर जीत सुनिश्चित करने के लिए बीजेपी ने सभी बड़े नेताओं को मैदान में उतारने का मन बन लिया है. साथ ही उन 52 निर्वाचन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने की उसकी अहम रणनीति हैं जहां पर पार्टी को हालिया लोकसभा चुनावों में बढ़त मिली थी. साथ ही पार्टी उच्च जातियों पर अपनी पकड़ के अलावा ओबीसी और दलित मतदाताओं को एकजुट करने की कोशिशों में लग गई है. 

पार्टी के बड़े नेताओं को मिला बड़ा काम 

इंडियन एक्‍सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार सूत्रों की तरफ से बताया गया है कि  झारखंड में चार महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने अपने नेताओं के लिए कुछ अहम काम तय कर दिए हैं. असम के मुख्यमंत्री और पार्टी के राज्य प्रभारी हिमंत बिस्वा सरमा पार्टी की रणनीति बनाने में जुट गए हैं. नेताओं की मानें तो राज्य के लिए बीजेपी के दूसरे प्रभारी, केंद्रीय कृषि मंत्री और मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान हैं जो इन चुनावों में 'सलाहकार' की भूमिका  में रहेंगे. 

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अभी कैसा है विधानसभा का गणित 

82 सदस्यों वाली झारखंड विधानसभा (एक मनोनीत सदस्य सहित) में वर्तमान में बीजेपी के 26 विधायक हैं, जबकि उसके सहयोगी ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (AJSU) के तीन विधायक हैं. जबकि  झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएएम) कांग्रेस और राष्‍ट्रीय जनता दल (आरजेडी) समेत सत्तारूढ़ गठबंधन के पास कुल मिलाकर 47 विधायक हैं. लोकसभा चुनावों में बीजेपी झारखंड में सबसे ज्‍यादा सीटें जीतने में कामयाब रही है. 14 में से 8 सीटें पार्टी के खाते में आई हैं. लेकिन वह एसटी-आरक्षित पांच संसदीय क्षेत्रों में से किसी पर भी जीत हासिल नहीं कर सकी. 

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सोरेन का 'विक्टिम कार्ड' रेडी? 

जेएमएम नेता और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन विधानसभा चुनावों में अपने लिए आदिवासी समर्थन जुटाने के लिए बीजेपी की तरफ से उन्‍हें गिरफ्तार किए जाने वाली घटना को कैश कराने में जुट गए हैं. फिलहाल वह जमानत पर बाहर हैं. सूत्रों के हवाले से अखबार ने लिखा है कि सरमा इन चुनावों को लेकर बहुत गंभीर हैं. वह पार्टी से कह रहे हैं कि अगर वह अभी झारखंड जीतने के लिए जरूरी काम नहीं करेगी तो 'वह अगले 15 सालों तक राज्य में सत्ता में नहीं आ पाएगी.' 

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सिर्फ दो एसटी सीटें बीजेपी के पास 

पार्टी की चुनावी रणनीति तय करने के लिए होने वाली कई मीटिंग्‍स में शामिल बीजेपी के एक अंदरूनी सूत्र ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया है कि एक बात जो जोर-शोर से कही जा रही है, वह यह है कि पार्टी के सभी बड़े नेताओं, खास तौर पर आदिवासी चेहरों को चुनाव लड़ना होगा. पार्टी ने लोकसभा चुनावों में भी राज्यों में दिग्गजों को मैदान में उतारा था. झारखंड में अभी बीजेपी के पास सिर्फ दो एसटी-आरक्षित विधानसभा सीटें हैं.  

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किन चेहरों को मिलेगा टिकट 

बीजेपी के इस नेता ने कहा है कि पूर्व केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा, गीता कोड़ा, सुनील सोरेन और सुदर्शन भगत जैसे पूर्व सांसद और शिबू सोरेन की बहू सीता, सभी विधानसभा चुनाव लड़ सकते हैं. रांची की पूर्व मेयर आशा लकड़ा और बीजेपी के राज्य प्रमुख बाबूलाल मरांडी भी चुनाव लड़ सकते हैं. चूंकि आदिवासी सीटों पर बीजेपी विरोधी भावना है, इसलिए माना जा रहा है कि बड़े नामों को टिकट दिया जाए और कम से कम 10 सीटें जीती जाएं. उन्हें टिकट दिए जाने से आस-पास के निर्वाचन क्षेत्रों पर भी असर पड़ सकता है, जिससे बीजेपी को फायदा हो सकता है. 

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आदिवासी वोट बैंक पर है भरोसा!  

केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार आदिवासी वोटों पर भरोसा कर रही है. उसने उनके लिए कई कल्याणकारी योजनाएं शुरू की हैं और आदिवासी नेता बिरसा मुंडा के जन्मदिन को ‘जनजातीय गौरव दिवस’ के रूप में मनाने की शुरुआत की है. सूत्रों की मानें तो  अर्जुन मुंडा विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए इच्छुक नहीं हैं. उन्‍हें उनकी पारंपरिक खूंटी के बजाय कोल्हान क्षेत्र में सीट की पेशकश की गई है. हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों में मुंडा को खूंटी से कांग्रेस उम्मीदवार के हाथों 1.49 लाख मतों से हार का सामना करना पड़ा था. 

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