संयुक्त किसान मोर्चा बिहार का एक प्रतिनिधिमंडल हाल ही में औरंगाबाद जिले के नवीनगर प्रखंड स्थित पांडेय कर्मा और इगनू डीहवार गांव पहुंचा. यहां ग्रामीणों ने बताया कि एसडीएम, अंचलाधिकारी और सैकड़ों पुलिस बल ने किसानों की लहलहाती फसलों को ट्रैक्टर से रौंद डाला. भारतमाला परियोजना के तहत सड़क निर्माण के लिए जमीन अधिग्रहण किया जा रहा है. लेकिन, ग्रामीणों का आरोप है कि बिना मुआवजा दिए जबरन जमीन कब्जा की जा रही है और खेतों में लगी फसल को बर्बाद किया जा रहा है. किसानों का यह भी कहना है कि जिनकी जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया में शामिल ही नहीं है, उनके खेतों को भी नष्ट कर दिया गया.
संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं ने आरोप लगाया कि प्रशासन और निर्माण कंपनी पीएसी मिलकर किसानों की जमीन जबरन ले रही है. अधिकारियों पर यह भी आरोप है कि वे कंपनियों के एजेंट की तरह व्यवहार कर रहे हैं और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवहेलना कर रहे हैं, जिसमें बिना मुआवजा दिए जमीन अधिग्रहण पर रोक है.
प्रतिनिधिमंडल के सामने किसान गुप्तेश्वर यादव ने बताया कि उनके पास केवल चार बीघा जमीन बची है. उनका बेटा विकलांग है और पूरे परिवार का खर्च इसी खेती से चलता था. जब उनकी पत्नी ने फसल रौंदने से रोकने की कोशिश की, तो पुलिस ने उन्हें जबरन खेत से बाहर फेंक दिया. यह घटना गांव में प्रशासनिक अमानवीयता की बड़ी मिसाल बन गई है.
संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं ने साफ कहा है कि यदि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई नहीं करते हैं, तो 25 अगस्त को हजारों किसान पटना पहुंचकर सीएम का घेराव करेंगे. यह आंदोलन आर-पार की लड़ाई होगी. किसानों ने ऐलान किया है कि अब "करो या मरो" के नारे के साथ वे सड़कों पर उतरेंगे.
किसानों ने सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि यह सरकार कॉर्पोरेट कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी जैसा व्यवहार कर रही है. किसानों का कहना है कि डबल इंजन की सरकार अंग्रेजों जैसी नीतियों पर चल रही है, जो किसानों को जबरन उनकी जमीन से बेदखल कर रही है.
प्रतिनिधिमंडल ने कहा कि शाहाबाद और मगध क्षेत्र में सघन अभियान चलाया जाएगा. 25 अगस्त को पटना में ऐतिहासिक किसान मार्च होगा. यदि सरकार ने किसानों की मांगें नहीं मानीं, तो आने वाले चुनावों में इसका जवाब किसानों की वोट की ताकत से दिया जाएगा.
बिहार में भूमि अधिग्रहण को लेकर किसानों का आक्रोश चरम पर है. फसलों की बर्बादी, मुआवजे का अभाव और प्रशासनिक दमन ने किसानों को सड़क पर उतरने के लिए मजबूर कर दिया है. अब देखना यह है कि सरकार इस आंदोलन को कैसे संभालती है, संवाद से या दमन से.