कॉटन के कम दाम को लेकर पहले से ही बेहद परेशान चल रहे किसानों पर सरकार ने एक और वज्रपात कर दिया है. टेक्सटाइल इंडस्ट्री के फायदे के लिए जो इंपोर्ट ड्यूटी सिर्फ एक महीने के लिए खत्म की गई थी उसे अब तीन महीने के लिए और बढ़ा दिया गया है. यानी अब 31 दिसंबर 2025 तक टेक्सटाइल इंडस्ट्री को कॉटन इंपोर्ट के लिए कोई भी आयात शुल्क नहीं देना होगा. इससे भारतीय किसानों को बड़ा नुकसान होगा. कॉटन की जो नई फसल आएगी उसको भी सही दाम नहीं मिलेगा. टेक्सटाइल इंडस्ट्री को जब विदेशों से सस्ता कॉटन मिलेगा तब कौन भारत के किसानों से महंगा कॉटन खरीदेगा. सरकार के इस फैसले की वजह से कॉटन की खेती और सिमट सकती है.
केंद्र सरकार ने भारतीय कपड़ा क्षेत्र को राहत देने के मकसद से एक महत्वपूर्ण घोषणा की है. सरकार ने पहले 19 अगस्त 2025 से 30 सितंबर 2025 तक कॉटन (HS 5201) पर आयात शुल्क में अस्थायी छूट दी थी. लेकिन अब सरकार ने इसमें बड़ा बदलाव करते हुए इसे 31 दिसंबर 2025 तक बढ़ा दिया है. यह इस साल सरकार की ओर से कॉटन किसानों को दिया गया सबसे बड़ा झटका है.
पहले ही किसानों को कॉटन का एमएसपी तक नसीब नहीं हो रहा है. टेक्सटाइल इंडस्ट्री के दबाव में अब उनका और नुकसान होगा. माना जा रहा है कि अमेरिका की ओर से जो 50 फीसदी टैरिफ लगाया गया है उससे टेक्सटाइल इंडस्ट्री के मुनाफे पर चोट लग रही है. इंडस्ट्री के मुनाफे को बरकरार रखने के लिए सरकार ने उन्हें इंपोर्ट ड्यूटी में दी गई एक महीने की राहत को तीन महीने और बढ़ा दिया है. हालांकि, इससे किसानों को बहुत बड़ा नुकसान होने वाला है. किसान कॉटन की खेती छोड़कर दूसरी किसी फसल पर शिफ्ट हो जाएंगे.
अब सरकार ने इस छूट को और आगे बढ़ाने का फैसला किया है. कपड़ा निर्यातकों और उद्योग से जुड़े अन्य लोगों को राहत देते हुए, कपास पर आयात शुल्क छूट को 30 सितंबर 2025 से बढ़ाकर 31 दिसंबर 2025 तक कर दिया गया है. इसका मतलब यह है कि अब 31 दिसंबर 2025 तक कपास का आयात बिना किसी आयात शुल्क के किया जा सकेगा.
कुछ दिन पहले ही केंद्र सरकार ने नई फसल के बाज़ार में आने से एक महीना पहले कपास पर आयात शुल्क समाप्त कर दिया था. 18 अगस्त की देर शाम वित्त मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार, 19 अगस्त से बिना आयात शुल्क के कपास का आयात किया जा सकेगा. कपास पर 10 प्रतिशत सीमा शुल्क है और इस पर 1 प्रतिशत कृषि अवसंरचना उपकर जोड़ने के बाद प्रभावी शुल्क 11 प्रतिशत होता है, जिसे समाप्त कर दिया गया था. जिसके बाद जहां उद्योगपतियों को बड़ा फायदा होगा, वहीं किसानों को नुकसान झेलना पड़ेगा. सरकार ने किसानों को आश्वासन दिया था कि उनकी नई फसल के बाज़ार में आने से पहले इंपोर्ट ड्यूटी फिर से लगा दी जाएगी. लेकिन हुआ इसके उल्टा.
सरकार के इस फैसले से लंबे समय तक टेक्सटाइल इंडस्ट्री दूसरे देशों से सस्ता कॉटन आयात कर पाएगी. इसीलिए अमेरिका द्वारा लगाए गए 50 फीसदी टैरिफ के बाद परेशान कंफेडरेशन ऑफ इंडियन टेक्सटाइल इंडस्ट्री (CITI) ने कच्चे माल की आसान उपलब्धता के लिए सरकार से हस्तक्षेप की मांग की थी. CITI ने कहा कि भारत के लिए अमेरिकी शुल्क दर 50 प्रतिशत तय की गई है और नई अमेरिकी दर बांग्लादेश जैसे प्रतिस्पर्धी देशों के लिए 20 प्रतिशत, इंडोनेशिया और कंबोडिया में 19-19 प्रतिशत और वियतनाम में 20 प्रतिशत है. ऐसे में सरकार भारतीय टेक्सटाइल इंडस्ट्री को राहत दे. सरकार ने उनकी बात फौरन सुन ली लेकिन बड़ा सवाल यह है कि किसानों की आवाज कौन सुनेगा?