कांग्रेस सांसद दिग्विजय सिंह ने देश में ऑर्गेनिक कॉटन की आड़ में चल रहे एक बड़े घोटाले का दावा किया है. उन्होंने आरोप लगाया कि बीते एक दशक में 'ऑर्गेनिक कॉटन' के नाम पर करीब 2.1 लाख करोड़ रुपये का फर्जीवाड़ा हुआ है. उन्होंने इस घोटाले में कई कंपनियों, सर्टिफिकेशन एजेंसियों और सरकारी व्यवस्थाओं की मिलीभगत का आरोप लगाया गया है. इसके साथ ही उन्होंने इसकी सीबीआई जांच की मांग की है.
दिग्विजय सिंह का आरोप है कि इन ऑर्गेनिक कॉटन को ऑर्गेनिक बताकर बेचा गया और उस पर 'ऑर्गेनिक कॉटन' का फर्जी लेबल चस्पा कर दिया गया. जिन किसानों के नाम पर ऑर्गेनिक कॉटन बेचा गया, उन्होंने असल में ऑर्गेनिक खेती की ही नहीं. 'आंतरिक नियंत्रण प्रणाली' (ICS) के तहत किसानों के समूह बनाए गए, लेकिन अधिकतर किसान इस प्रक्रिया से अनजान रहे. उन्होंने दावा किया कि सर्टिफिकेशन बॉडीज, जो इन किसानों की जांच करती हैं, ने कंपनियों से मिलकर फर्जी सर्टिफिकेट जारी किए. इस घोटाले के चलते अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने भारत पर सख्त कदम उठाए.
2020 में GOTS (Global Organic Textile Standard) ने 11 कंपनियों को बैन किया और एक प्रमुख सर्टिफायर की मान्यता रद्द की. 2021 में अमेरिकी USDA ने भारतीय ऑर्गेनिक सर्टिफिकेशन को मान्यता देना बंद कर दिया. कांग्रेस नेता ने कहा, 'यूरोपियन यूनियन (ईयू) ने भी पांच भारतीय सर्टिफायर्स की मान्यता रद्द कर दी. ऑर्गेनिक कॉटन की कीमत इन ऑर्गेनिक से 2 से 3 गुना ज्यादा होती है. लेकिन असली किसानों को इसका कोई लाभ नहीं मिला.'
दिग्विजय सिंह ने बताया कि दो कंपनियों में की गई जांच में ही 750 करोड़ रुपये की GST चोरी पकड़ी गई है. उनका दावा है कि सैकड़ों कंपनियां इस गोरखधंधे में शामिल हैं और केंद्रीय व राज्य सरकारों को हजारों करोड़ का नुकसान हुआ है. APEDA ने 2017 से ही आधार आधारित वेरिफिकेशन की सिफारिश की थी, लेकिन आज तक उसे लागू नहीं किया गया. उन्होंने दावा किया कि केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने 28 नवंबर 2024 को दिए पत्र में इस फर्जीवाड़े को स्वीकार किया. 8 मार्च 2025 को मिले पत्र में बताया गया कि कुछ जगहों पर अचानक ऑडिट और एफआईआर भी दर्ज की गई है. धार जिले में एक ICS मैनेजर पर मामला भी दर्ज किया गया.
दिग्विजय के अनुसार साल 2001 में, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने नेशनल प्रोग्राम फॉर ऑर्गेनिक प्रोडक्शन (एनपीओपी) शुरू किया था. इसे एपीडा की तरफ से लागू किया गया है. इसका मकसद ऑर्गेनिक एक्सपोर्ट को बढ़ावा देना है. साथ उसे प्रमाणित और रेगुलेट करना भी है. इस कार्यक्रम के अंतर्गत, एनपीओपी उन यूनिट्स को मान्यता प्रदान करता है जो इंटर कंट्रोल सिस्टम (आईसीएस) को वैरीफाई करते हैं. आईसीएस वैरीफिकेशन के बाद समूह को ऑर्गेनिक घोषित किया जाता है और उसे सर्टिफिकेट दिया जाता है.
ये आईसीएस ऑर्गेनिक कपास उगाने वाले 25 से 500 किसानों के समूह हैं. वर्तमान में करीब 6,046 आईसीएस समूह और 35 सर्टिफिकेशन एजेंसियां हैं. दिग्विजय सिंह ने बताया कि ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा देने के लिए इन किसान समूहों को तीन वर्षों तक प्रति हेक्टेयर 5,000 रुपये मिलते हैं. इस प्रक्रिया में प्रमाणन बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे अंतरराष्ट्रीय बाजार में उत्पाद की कीमतों में भी इजाफा होता है.
उनका कहना था कि इन आईसीएस समूहों में रजिस्टर्ड ज्यादातर किसान न तो ऑर्गेनिक कपास उगाते हैं और न ही उन्हें इस सिस्टम में अपने शामिल होने की जानकारी है. इन आईसीएस ग्रुप्स ने लेनदेन प्रमाणपत्र हासिल करने के लिए किसानों के नाम शामिल करके जानबूझकर धोखाधड़ी की है. दिग्विजय सिंह ने दावा किया कि मध्य प्रदेश में भी फर्जी समूह बनाए गए और किसानों को पता ही नहीं चला कि उन्हें सदस्य बनाया गया है.
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