अगर गन्ने की खेती करनी है, तो लाल सड़न रोग (Red Rot) से बचाव के उपाय पहले से कर लेना जरूरी है, क्योंकि यह घातक रोग गन्ने की फसल को पूरी तरह नष्ट कर सकता है. देश भर में कई अधिक उत्पादन देने वाली गन्ने की किस्में इस रोग की चपेट में आ चुकी हैं.
CO-0238, जो दशकों से सबसे अधिक उत्पादन और अधिक चीनी प्रतिशत देने वाली किस्म रही है, अब इस रोग से बुरी तरह प्रभावित हो रही है. कृषि वैज्ञानिकों ने सलाह दी है कि किसान CO-0238 किस्म की खेती से बचें क्योंकि इसमें लाल सड़न रोग का प्रमुख स्ट्रेन सी.एफ. 13 पाया गया है, जो इस किस्म को प्रभावित कर रहा है.
लाल सड़न रोग रोग लगातार एक ही खेत में एक ही किस्म की खेती करने से बढ़ता है. अगर खेत की मिट्टी का pH 5-6 हो तो रोगजनक तेजी से फैलते हैं. खेत में जलजमाव होने से कवक का विकास तेज होता है. लाल सड़न रोग बुवाई के बाद लंबे समय तक खेत सूखा रहने से भी तेजी से फैलता है.
लाल सड़न रोग से प्रभावित खेतों के बीजों का उपयोग करने से रोग फैलता है. रोग-संवेदनशील गन्ना किस्मों की उपस्थिति से संक्रमण बढ़ता है. ऐसे अगर किसान लाल सड़न रोग के प्रति जागरूक रहकर जैविक और वैज्ञानिक उपाय अपनाते हैं, तो वे गन्ने की खेती को नुकसान से बचा सकते हैं और अच्छी उपज प्राप्त कर सकते हैं.
किसान इस रोग से बचने के लिए रोग-मुक्त नर्सरी और स्वस्थ बीज का उपयोग करें. गन्ने के बीज केवल प्रमाणित और स्वस्थ नर्सरी से ही लें. गन्ने की बुवाई से पहले बीज की जांच करें. यदि बीज के दोनों ओर लाल रंग की लाली (Red Rot) दिखे, तो उसे बिल्कुल न बोएं.
गन्ने के बीजों को 1 ग्राम कार्बेन्डाजिम या मैंकोजेब प्रति लीटर पानी में घोलकर उपचारित करें. इसके अलावा लाल सड़न रोग का नियंत्रण करने के लिए गन्ने की बुवाई के पहले खेत की तैयारी के समय ही 2 किलोग्राम ट्राइकोडर्मा हार्जियानम को गोबर की खाद या वर्मी कम्पोस्ट में मिलाएं.
इसे 7 दिन पहले आखिरी जुताई के दौरान खेत में अच्छी तरह से मिला दें. जब खेत मिट्टी में ट्राइकोडर्मा का पर्याप्त फैलाव हो जाए, तब गन्ने की बुवाई करें. इससे मिट्टी में लाभकारी जैविक कारक सक्रिय रहेंगे और हानिकारक कवकों के प्रसार को रोकेंगे.