बारिश का मौसम भेड़-बकरी ही नहीं, तमाम दुधारू पशुओं के लिए बीमारियां लेकर आता है. संक्रमण वाली बहुत सारी ऐसी बीमारियां होती हैं जिनकी अगर जरा सी अनदेखी की जाए तो पशुओं की जान पर बन आती है. खासतौर पर बकरियों में होने वाली पेट संबंधी बीमारी. इस बीमारी के चलते बकरी के पेट में कीड़े पड़ जाते हैं. इस बीमारी का बड़ा कारण दूषित पानी है.
इस बीमारी में बकरी की ग्रोथ रुक जाती है. कितना भी अच्छा खिला लो लेकिन बकरे-बकरी की ग्रोथ पर कोई असर नहीं होता है. लेकिन थोड़ी सी जागरुकता से इस खतरनाक बीमारी को रोका जा सकता है.
जरूरत है सिर्फ बकरे-बकरियों के हरे चारे में मामूली सा बदलाव कर दिया जाए. क्योंकि हरे चारे में शामिल बहुत सारे पेड़-पौधों की पत्तियां दवाई का काम करती हैं. इन पेड़-पौधों की पत्तियों में ही प्राकृतिक रूप से दवाईयों के गुण मौजूद हैं. केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (सीआईआरजी), मथुरा के साइंटिस्ट का कहना है कि इसी गुण के चलते बकरी बीमार होने पर खुद ही उस पेड़-पौधे की पत्तियों को खा लेती हैं.
सीआईआरजी की सीनियर साइंटिस्ट नीतिका शर्मा ने किसान तक को बताया कि अमरुद, नीम और मोरिंगा में टेनिन कांटेंट और प्रोटीन की मात्रा बहुत होती है. अगर वक्त पर हम तीनों पेड़-पौधे की पत्तियां बकरियों को खिलाते हैं तो उनके पेट में कीड़े नहीं होंगे. पेट में कीड़े होना बकरे और बकरियों में बहुत ही परेशान करने वाली बीमारी है. पेट में अगर कीड़े होंगे तो उसके चलते बकरे और बकरियों की ग्रोथ नहीं हो पाएगी.
पशुपालक जितना भी बकरे और बकरियों को खिलाएगा वो उनके शरीर को नहीं लगेगा. खासतौर पर जो लोग बकरियों को फार्म में पालते हैं और स्टाल फीड कराते हैं उन्हें इस बात का खास ख्याल रखना होगा. अगर आप बकरे-बकरियों को फार्म में पालते हैं. उन्हें खुले मैदान और जंगल में चरने का मौका नहीं मिल पाता है. नीम, अमरुद, मोरिंगा आदि पेड़-पौधे की पत्तियां आपको आसपास नहीं मिल पाती हैं तो इसमे परेशान होने की बात नहीं है. सीआईआरजी ऐसे पत्तों की दवाई बाजार में बेच रहा है.
साइंटिस्ट नीतिका शर्मा ने बताया कि अगर हम खुले मैदान में या फिर किसी जंगल में जाएं तो हमे नीम गिलोय दिख जाएगा. यह नीम के पेड़ पर ही पाया जाता है. शायद इसीलिए इसे नीम गिलोय भी कहा जाता है.
स्वाद में यह कड़वा होता है. अगर हम नीम गिलोय की पत्तियां बकरी के बच्चों को खिलाएं तो उनके शरीर में बीमारियों से लड़ने की ताकत आ जाएगी. यह बच्चे जल्द ही बीमार भी नहीं पड़ेंगे. जिसके चलते पशुपालक बकरियों की मृत्य दर को कम कर सकेंगे. यह हम सभी जानते हैं कि बकरी पालन में सबसे ज्यादा नुकसान बकरी के बच्चों की मृत्य दर से ही होता है.