धान खरीफ सीजन की प्रमुख फसल है. इसकी खेती देश के लगभग सभी भागों में होती है. देश में इसका रकबा लगभग 400 लाख हेक्टेयर होता है, जो किसी भी और फसल से अधिक है. इस समय अधिकांश राज्यों में इसकी रोपाई के लिए खेत तैयार कर लिए गए हैं. नर्सरी लगभग तैयार है. धान की खेती किसानों को अच्छा मुनाफा देती है, लेकिन अगर इसमें लगने वाले रोगों और कीटों का सही तरीके से मैनेजमेंट करें तब. हम धान की फसल में लगने वाले कीटों के बारे में जानकारी दे चुके हैं. आज इसमें लगने वाले रोगों के बारे में विस्तार से बताएंगे, जिससे कि किसानों को पता हो कि कौन-कौन से रोग किस वजह से लगते हैं और प्रमुख रोगों का निदान क्या है.
सफेदा रोग
यह रोग लौह तत्व यानी आयरन की कमी के कारण नर्सरी में अधिक लगता है. इसमें नई पत्तियां कागज के समान सफेद रंग की निकलती हैं.
खैरा रोग
यह रोग जिंक की कमी के कारण होता है. इस रोग में पत्तियां पीली पड़ जाती हैं, जिन पर बाद में कत्थई रंग के धब्बे बन जाते हैं.
शीथ ब्लाइट
इस रोग में पत्र केंचुल (शीथ) पर अनियमित आकार के धब्बे बनते हैं, जिनका किनारा गहरा भूरा तथा मध्य भाग हल्के रंग का हो जाता है.
झोंका रोग
इस रोग में पत्तियों पर आंख की आकृति के धब्बे बनते हैं, जो मध्य में राख के रंग के तथा किनारे गहरे कत्थई रंग के होते हैं. पत्तियों के अतिरिक्त बालियों, डंठलों, पुष्प शाखाओं एवं गांठों पर काले भूरे धब्बे बनते हैं.
भूरा धब्बा
इस रोग में पत्तियों पर गहरे कत्थई रंग के गोल अथवा अंडाकार धब्बे बन जाते हैं. इन धब्बों के चारों तरफ पीला घेरा बन जाता है तथा मध्य भाग पीलापन लिए हुए कत्थई रंग का होता है.
मिथ्या कण्डुआ
इस रोग में बालियों के कुछ दाने पीले रंग के पाउडर में बदल जाते हैं, जो बाद में काले हो जाते हैं.