किसान मक्का के छिलके और बाल आमतौर पर फेंक देते हैं, लेकिन बिहार के मुजफ्फरपुर के रहने वाले नाज़ ओजैर इनसे कप-प्लेट, दोने-पत्तरल जैसे प्रोडक्ट बना रहे हैं. नाज इन कप-प्लेट को काफी कम लागत में बना रहे हैं, जिससे 5 लाख रुपये सालाना कमाई हो रही है. उनके उत्पाद मार्केट में मिलने वाली सिंगल यूज प्लास्टिक से बने डिस्पोजेबल उत्पादों को कड़ी टक्कर दे रहे हैं.
नाज़ मुजफ्फरपुर के मुरादपुर के रहने वाले हैं. उनके द्वारा बनाए गए प्रोडक्ट की सप्लाई अभी मंदिरों में प्रसाद वितरण के लिए हो रही है. नाज को रेलवे से भी 30 लाख कप प्लेट का ऑर्डर मिला है. नाज पेशे से मैकेनिकल इंजीनियर हैं, जो पिछले दस सालों से प्लास्टिक के विकल्प पर शोध कर रहे हैं. उन्होंने बांस, केला, पपीता आदि पौधों पर पांच साल शोध किया, फिर अगले पांच साल सिर्फ मक्के पर शोध किया.
नाज ने कहा कि मक्के के छिलके से बना प्रोडक्ट पर्यावरण के लिए लाभकारी है. प्लास्टिक के विकल्प के रूप में इसका इस्तेमाल कर कैंसर जैसे बीमारी से बचा जा सकता है. यह प्रोडक्ट सौ प्रतिशत स्वदेशी है. उन्होंने साल 2019 में इन उत्पादों के पेटेंट के लिए आवेदन फाइल किया. 2024 के फरवरी में उन्हें पेंटेट ग्रांट हो गया.
नाज़ ने बताया कि उनके भांजे की कैंसर के कारण मौत हो गई थी, रिसर्च में पता चला कि हम जो प्लास्टिक के उत्पादों में कुछ खाते हैं तो उससे 32 प्रकार के कैंसर होने की संभावना रहती है. IIT खड़गपुर के प्रोफेसरों की रिसर्च का हवाला देते हुए कहा कि जैसे हम पेपर कप में चाय पीते हैं तो इससे 25000 माइक्रो प्लास्टिक कण हमारे शरीर में चले जाते हैं.
नाज ने कहा कि उनका सपना था कि कुछ ऐसी चीज़ों की मदद से ऐसा किया जाए जिसके जरिये प्लास्टिक के कम से कम दस प्रॉडक्ट्स को रीप्लेस किया जा सके. तभी वह अपनी मेहनत को सफ़ल मानेंगे. नाज का सपना आने वाले 10 वर्षों में प्लास्टिक के 100 प्रोडक्ट्स को रिप्लेस करने का है. नाज ने बताया कि वह एक कप डेढ़ रुपये और प्लेट दो रुपये में बेचते हैं.
नाज ने कहा, '’एक दिन मैं दोस्त की शादी में गए तब वहां देखा कि एक कार मक्के की खेत में मक्के की बाली पर चढ़ाती हुई चली जाती है, उसी बाली पर कई और गाड़ियों ने भी चढ़ाते हुए ओवरटेक कर गई. तब मैं उस मक्के की बाली को हाथ में लिये और गौर से अध्ययन किया तो मैंने पाया की मक्के का दाना तो कुछ निकल गया था पर उसके पत्ते पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा.
वे किसानों से मक्के के छिलका एक रुपये से लेकर दो रुपये प्रति किलो के हिसाब से खरीदते है. कीमत उसकी क्वालिटी पर निर्भर रहती है. वे एक किलो छिलके-बाल से लगभग 200 कप बनाते हैं. एक कप बनाने पर मजदूरी की लागत 45 पैसे आती है. दिनभर में उनकी एक हजार रुपये की आमदनी हो जाती है. वहीं, सालाना कमाई 5 लाख रुपये तक होती है. अभी पांच लोगों में फैक्ट्री में काम कर रहे हैं, जिसमे महिला और पुरुष दोनों शामिल हैं.