जंगलों की बेतहाशा कटाई को पर्यावरण असंतुलन के लिए शुरुआती तौर पर जिम्मेदार माना गया है. जंगल काटने के बदले जंगल लगाने के बजाय यत्र तत्र पेड़ लगा देने की रस्म अदायगी, प्रकृति के नुकसान की भरपाई नहीं हो सकती है. अब Forest Cutting के साथ नया संकट बेकाबू खनन ने पैदा कर दिया है. पुल और सड़कें बनाने सहित तमाम विकास परियोजनाओं के नाम पर पहाड़ों को नष्ट तो किया जा रहा है, लेकिन इसके बदले नया पहाड़ नहीं बना सकने की सरकारों की मजबूरी प्रकृति को स्थाई नुकसान पहुंचा रही है. इसका खामियाजा समूचे जीव जगत को वायनाड जैसी Natural Disaster के रूप में भुगतना पड़ रहा है. प्रकृति को समझने वाले वैज्ञानिकों का मानना है कि नदी, जंगल और पहाड़ नष्ट करके Uncontrolled Land Use, पहाड़ी क्षेत्रों में भूस्खलन का कारण बन रहा है. वैज्ञानिकों ने चेतावनी भी दी है कि प्राकृतिक असंतुलन के कारण उपजी जलवायु परिवर्तन की चुनौती साल दर साल बढ़ रही है. इस चुनौती के बढ़ने के क्रम में ही केदारनाथ और वायनाड जैसे हादसों के खतरे की Frequency and Intensity भी तेजी से बढ़ेगी.
केरल के वायनाड में गत माह 30 जुलाई को हुए भीषण Landslide में जितने बड़े पैमाने पर जन धन की हानि हुई है, उसकी वजह बिल्कुल साफ है. इसे मौसम विभाग की ताजा रिपोर्टों के हवाले से मौसम की चाल को समझ कर आसानी से जाना जा सकता है.
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गौरतलब बात यह रही कि इन्हीं राज्यों में भूस्खलन की भी घटनाएं हुई हैं. लेकिन इनमें सबसे त्रासदीपूर्ण भूस्खलन का सामना केरल के वायनाड को करना पड़ा. भूलना नहीं होगा कि वायनाड, पर्यावरण की संवेदनशीलता के लिहाज से देश में सर्वाधिक नाजुक इलाके के तौर पर चिन्हित किए गए 'पश्चिमी घाट' में ही स्थित है. इतना ही नहीं, वायनाड, Western Ghat के वन प्रदेशों का एक ऐसा हिस्सा है, जहां विकास के नाम पर पिछले दो दशकों में इस इलाके के पर्यावास (Ecosystem) के साथ सबसे ज्यादा छेड़छाड़ की गई. यह छेड़छाड़ पेड़ों के काटने से लेकर बड़े पैमाने पर खनन करने और गैर जरूरी निर्माण कार्य करके वर्ष जल के नैसर्गिक निकास को अवरुद्ध करके की गई है.
वायनाड में हुई जनहानि से इस प्राकृतिक आपदा की भयावहता का अंदाजा लगाया जा सकता है. आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक जुलाई में केरल के वायनाड सहित 7 अन्य राज्यों में हुई भूस्खलन की घटनाओं में कुल 304 लोगों की मौत हुई. गृह मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक इनमें अकेले वायनाड में 285 लोग मारे गए. यह कुल जनहानि का 94 फीसदी है. शेष 19 मौतें कर्नाटक के अलावा 6 अन्य हिमालयी राज्यों में हुईं.
ज्ञात हो कि इसरो के नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर की रिपोर्ट 'The Landslide Atlas of India 2023' में वायनाड को भूस्खलन के खतरे के लिहाज से भारत के 5वें सर्वाधिक संवेदनशील इलाके के रूप में चिन्हित किया गया था. कुल 14 जिलों वाले राज्य केरल में भूस्खलन के खतरे की जद में आए जिलों में वायनाड के अलावा 4 अन्य जिले (कोझिकोड, त्रिशूर, पलक्कड़ और मलप्पुरम) भी शामिल हैं. इन सभी जिलों में भूस्खलन का खतरा बढ़ाने में आबादी के बोझ और गैरजरूरी निर्माण कार्य अहम भूमिका निभा रहे हैं. यही वजह है कि पश्चिमी घाट क्षेत्र में मौजूद केरल में पिछले 20 सालों के दौरान भूस्खलन में देश में सबसे ज्यादा जनहानि हुई है.
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पर्यावरण के क्षेत्र से जुड़ी शोध संस्था CSE की ताजा रिपोर्ट के अनुसार गत जुलाई में भूस्खलन की घटनाएं 8 राज्यों में हुईं. इनमें सबसे ज्यादा नुकसान केरल में वायनाड के लोगों को उठाना पड़ा. इसके लिए केरल की भौगोलिक स्थिति को भी नजरंदाज नहीं किया जा सकता है.
पश्चिमी घाट क्षेत्र में स्थित केरल के सभी 14 जिलों में से 5 जिले भूस्खलन के खतरे की जद में हैं. हालांकि विकास परियोजनाओं के नाम पर पूरे देश में प्रकृति को भारी नुकसान पहुंचाया जा रहा है, लेकिन पर्यावरण के लिहाज से सर्वाधिक संवेदनशील माने गए पश्चिमी घाट क्षेत्र में भूस्खलन जैसी घटनाएं ज्यादा खतरनाक साबित हो रही है.
पश्चिमी घाट क्षेत्र में सबसे निचला समुद्र तटीय राज्य होने के कारण केरल इन प्राकृतिक आपदाओं की कीमत सबसे ज्यादा चुकानी पड़ रही है. रिपोर्ट में ऑस्ट्रेलिया के सिडनी विश्वविद्यालय में School of Civil Engineering के प्रोफेसर पिएरे रॉगनेन ने कहा कि दुनिया के जिन हिस्सों में भी भूस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाओं का कहर दिख रहा है, इसके शिकार होने वालों में सबसे ज्यादा लोग गरीब और वंचित तबकों से हैं. इससे स्पष्ट हो जाता है कि प्रकृति को नुकसान पहुंचा कर इस तरह की घटनाओं के लिए जिम्मेदार वे लोग हैं, जो विकास परियोजनाओं को पूरा करने की जिद पूरी करने पर आमादा हैं, मगर प्रकृति को हो रहे नुकसान की अनदेखी करने वालों की गलती का खामियाजा निरीह एवं निर्दोष गरीबों को भुगतना पड़ रहा है.