प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने असम के जोरहाट में शनिवार को लाचित बोरफुकन की सबसे बड़ी प्रतिमा का अनावरण किया. 125 फीट की यह प्रतिमा कोई साधारण मूर्ति नहीं है बल्कि यह उस वीरगाथा का इतिहास समेटे है, जिसके बारे में लोग बहुत कम जानते हैं. कांसे की बनी इस प्रतिमा को 'स्टैच्यू ऑफ वेलोर' के नाम से जाना जाता है. पीएम मोदी ने इसका अनावरण टेओक के पास होल्लोंगापार में लाचित बरफुकन मैदाम विकास परियोजना के तहत किया. इससे पहले पीएम मोदी ने दिल्ली में असम की वीरता और साहस के प्रतीक लाचित बोरफुकन को श्रद्धांजलि दी थी. बोरफुकन, असम के गौरव और यहां के लोगों के सम्मान के प्रतीक के तौर पर जाने जाते हैं.
लाचित बोरफुकन एक अहोम जनरल थे जिन्हें सरायघाट के युद्ध के लिए जाना जाता है. लाचित बोरफुन की 84 फीट ऊंची मूर्ति को 41 फीट के पेडस्टल पर स्थापित किया गया है. टेओक के पास होल्लोंगापार में जहां यह प्रतिमा स्थित है, वह 16.5 एकड़ में फैला है. इस जगह को एक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा रहा है और इसका इतिहास भी कम गौरवशाली नहीं है. प्रतिमा की नींव फरवरी 2022 में तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने रखी थी. इस प्रतिमा को पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित अनुभवी मूर्तिकार राम वनजी सुतार ने बनाया है. उन्होंने इसे उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में अपने स्टूडियो में गढ़ा था.
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लाचित बोरफुकन अहोम साम्राज्य के एक वीर आर्मी कमांडर थे. अहोम साम्राज्य सन् 1228 से 1826 तक था. सन् 1671 में हुई सरायघाट की लड़ाई में लाचित को उनके नेतृत्व के लिए जाना जाता है. इस लड़ाई ने राजा रामसिंह-प्रथम के नेतृत्व में शक्तिशाली मुगल सेना को असम से खदेड़ दिया था. मुगल इस युद्ध के बाद असम पर दोबारा कब्जा करने में असफल रहे थे. इस लड़ाई के एक साल बाद 49 साल की उम्र में बीमारी के कारण लाचित बोरफुकन की मृत्यु हो गई. इसके बाद उन्हें होल्लोंगापार में 'मैदाम' में दफनाया गया और यहीं पर अब उनका स्मारक बनेगा. मैदाम अहोम राजघरानों और रईसों के लिए एक कब्रिस्तान है.
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लाचित बोरफुन की मृत्यु के बाद सन् 1679 में गुवाहाटी पर मुगलों ने कब्जा कर लिया. सन् 1682 में इताखुली की लड़ाई में अहोम राजवंश ने फिर जीत हासिल की और गुवाहाटी को हासिल कर लिया. इसके साथ ही असम में मुगलों की मौजूदगी खत्म हो गई. मुगलों ने इसके बाद फिर कभी अहोम साम्राज्य की वजह से असम पर कब्जा करने के लिए कोई और कदम नहीं उठाया. असम में लाचित बोरफुकन को भारत के सैन्य इतिहास की समृद्ध विरासत के तौर पर देखा जाता है जिन्होंने अपनी मातृभूमि की रक्षा को सर्वोपरी रखा.