अयोध्या में प्रभु श्रीराम की मूर्ति 22 जनवरी को विराजित हो गई है. इससे पूरे देश में हर्ष का माहौल बन गया है, लेकिन महाराष्ट्र के यवतमाल जिले के रावेरी में भगवान श्री राम की धर्मपत्नी सीता माता का मंदिर उपेक्षित है. वहां का विकास रुक गया है. रावेरी के सीता माता मंदिर का उल्लेख रामायण में मिलता है. दरअसल माता सीता को वनवास में छोड़ दिया गया था. तब वह वाल्मीक ऋषि के आश्रम में रहीं, जिस स्थान पर उन्होंने लव कुश को जन्म दिया उसे आज का रावेरी कहा जाता है. यहां सीता माता को बहुत ही मशहूर मंदिर है जहां दूर-दूर से श्रद्धालु पूजा करने आते हैं.
इस मंदिर की मरम्मत के लिए किसान नेता स्व. शरद जोशी ने 11 लाख रुपये का भुगतान किया था. लेकिन उसके बाद इस मंदिर के विकास पर किसी ने उचित ध्यान नहीं दिया. माता सीता एक महिला थीं. इसलिए शरद जोशी ने यहां महिलाओं के विकास का संकल्प लिया. दरअसल इस क्षेत्र के लोगों का व्यवसाय कृषि है. वहीं यहां के लोगों की माता सीता के प्रति गहरी आस्था है. यहां के किसानों के लिए इस मंदिर से बड़ा धर्मक्षेत्र कोई नहीं है. किसान हर बात के लिए इस मंदिर में मन्नतें मांगते हैं और उनकी मांग पूरी भी होती है.
इस क्षेत्र के नागरिकों की सीता माता के चरणों में गहरी आस्था है. इस स्थान पर लोग माता का आशीर्वाद लेने आते हैं, लेकिन इस मंदिर का विकास नहीं हो सका है. इसी को लेकर यहां की महिलाओं ने मांग की है कि जिस प्रकार से अयोध्या में भगवान श्री राम मंदिर का विकास किया गया, उस तरह इस मंदिर का भी विकास होना चाहिए.
अयोध्या में भगवान राम की मूर्ति विराजमान की गई, जिसे 22 जनवरी को पूरे देश में भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा के रूप में मनाया गया. लेकिन रावेरी स्थित सीता माता का मंदिर, जो भगवान श्री राम की धर्म पत्नी हैं, वो उपेक्षित है. वहीं ऐसी किंवदंती है कि ऋषि वाल्मीकि ऋषि का आश्रम तापसी नदी के तट पर इस स्थान पर ही स्थित था, जहां सीता माता रहती थीं और उन्होंने लव कुश को जन्म दिया था.
शरद जोशी ने विधवाओं, परित्यक्ता महिलाओं, एकल महिलाओं को उद्योग के लिए प्रोत्साहित करने का प्रयास किया, लेकिन अब ये सपना ही रह गया है. वहीं यदि इस मंदिर का विकास किया जाए तो कई लोगों को रोजगार मिलेगा और कई परिवारों की आर्थिक स्थिति में सुधार होगा. (भास्कर मेहरे की रिपोर्ट)