धान की कटाई के बाद हर साल अखबारों और टेलीविजन की की सुर्खियों में दिल्ली के प्रदूषण की खबरें चलती हैं. बताते हैं कि उन दिनों दिल्ली में प्रदूषण बढ़ने का कारण पराली है. खासतौर पर पंजाब-हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों के द्वारा फसलों के अलशेष जलाए जाते हैं जिसका धुआं दिल्ली तक पहुंचता है और हवा में प्रदूषण बढ़ता है. सरकार की ओर से पराली जलाने पर रोक लगाने के लिए लगातार प्रयास किए गए हैं. बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पराली जलाने वाले किसानों की गिरफ्तारी की जाए ताकि इस पर रोक लगाया जा सके. कोर्ट की इस टिप्पणी के बाद कई किसान नेताओं के बयान सामने आए हैं जिस पर उन्होंने कोर्ट से कई बातों को लेकर आग्रह किया है.
कोर्ट की टिप्पणी के बाद किसान जगजीत सिंह डल्लेवाल, सरवन सिंह पंढेर और अभिमन्यु कोहाड सहित कई लोगों ने अपनी अपनी प्रतिक्रियाएं दी हैं. किसानों का कहना है कि पराली जलाने से अधिक प्रदूषण फैक्ट्री, कारखानों, ट्रांसपोर्ट और कंट्रक्शन की वजह से होता है. इसके बाद किसानों ने कहा कि कोर्ट ने 2019 में पराली प्रबंधन के लिए राज्य सरकारों की ओर से किसानों को मुआवजा देने की बात कही थी लेकिन आज तक सहायता नहीं मिली.
किसानों ने बताया कि NGT ने कहा था पराली के मैनेजमेंट के लिए जो मशीनें हैं उनपर भी राज्य सरकारों को सब्सिडी देनी चाहिए. उन्होंने कहा कि 2 एकड़ जोत तक के किसानों को पराली प्रबंधन की मशीनें फ्री में उपलब्ध कराई जाएं, 2-5 एकड़ वाले किसानों के लिए 5 हजार रुपये और 5 एकड़ से अधिक जोत वाले किसानों को 15 हजार रुपये की मदद दी जाए. इसके बाद भी यदि कोई किसान पराली जलाता है तो उस पर मुकदमा होना चाहिए.
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किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल ने कहा कि दिल्ली में हुए एक पब्लिक प्रोग्राम में NGT के जज ने कहा था कि हरियाणा-पंजाब के किसानों की ओर से जलाई गई पराली का धुआं दिल्ली तक नहीं पहुंचता है. इसके अलावा उन्होंने कहा कि चलो मान भी लेते हैं कि किसान नवंबर में पराली जलाता है तो फिर जनवरी-अप्रैल के महीनों तक प्रदूषण कहां से आ जाता हैं? इन तमाम बातों के साथ डल्लेवाल ने कोर्ट से गुजारिश की कि वे राज्य सरकारों को पराली प्रबंधन के लिए जरूरी निर्देश दें और किसानों को 100 रुपये प्रति हेक्टेयर इंसेंटिव देने की बात की जाये.