Extinction of Vultures : गिद्धों के विलुप्त होने से भारत में बैक्टीरिया जनित रोग दे रहे हर साल 1 लाख मौतें

Extinction of Vultures : गिद्धों के विलुप्त होने से भारत में बैक्टीरिया जनित रोग दे रहे हर साल 1 लाख मौतें

''ये जब्र भी देखा है तारीख़ की नज़रों ने, लम्हों ने ख़ता की थी सदियों ने सज़ा पाई''. मशहूर शायर मुजफ्फर रिज्मी की ये बात गिद्धों का वजूद खत्म होने की दास्तान पर सटीक बैठती है. बीते कुछ दशकों में इंसान की गैरइरादतन एक भूल के कारण हुए extinction of vultures की कीमत अब खुद इंसानों को ही चुकानी पड़ रही है.

गिद्ध विलुप्ति के कगार पर, फोटो सौजन्य से VCBCगिद्ध विलुप्ति के कगार पर, फोटो सौजन्य से VCBC
न‍िर्मल यादव
  • New Delhi,
  • Jul 30, 2024,
  • Updated Jul 30, 2024, 8:23 PM IST

वैज्ञानिक तरीकों से हो रही तरक्की के नाम पर ऐसी भूल हो जाती है, जिसकी कीमत कई पीढ़ियों को अपनी जान देकर चुकानी पड़ती है. मसलन, 20वीं सदी में यूरोप में Industrial Revolution के कारण कुदरत को हुए नुकसान की कीमत नार्वे को Acid Rain के रूप में चुकानी पड़ी थी. इसी प्रकार 21वीं सदी में कुछ दवाओं के गलत इस्तेमाल की कीमत भारत में गिद्धों ने अपना वजूद गंवा कर चुकाई है. कुदरत के सबसे कारगर 'Sanitation Worker' के रूप में तैनात रहे गिद्ध के विलुप्त होने की कीमत अब भारत अपने Human Resource को बीमारियों की भेंट चढ़ने के रूप में चुका रहा है. University of Chicago के एक शोध में सबक सीखने वाली बात उजागर हुई है कि पिछली पीढ़ी ने दवाओं के गलत इस्तेमाल की जो भूल की थी, उसके कारण गिद्धों के खत्म होने से फैल रही बीमारियों का खामियाजा उनकी भावी पीढ़ियों को अपनी जान गंवा कर भुगतना पड़ रहा है.

गिद्ध के खत्म होने का दिखने लगा असर

मृत पशुओं के मांस को मिनटों में साफ करके गिद्ध, समूचे भारतीय उपमहाद्वीप में प्रकृति के अवैतनिक सफाई कर्मी की भूमिका निभाते रहे हैं. पिछले दो दशक में भारत से गिद्ध के खत्म होने का सिलसिला पालतू पशुओं को दी जाने वाली कुछ दवाओं के कारण शुरू हुआ. इन दवाओं का पशुओं के शरीर पर इतना घातक असर हुआ कि इन पशुओं के मरने पर गिद्धों को इनके मांस का सेवन करने की कीमत अपना वजूद खो कर चुकानी पड़ी.

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विश्वविद्यालय के शोधकर्ता आइल फ्रांक और अनंत सुदर्शन ने रिपोर्ट में बताया कि भारत में लंबे समय से दुधारू पशुओं के इलाज में Anti-inflammatory दवाओं का इस्तेमाल हो रहा था. इन पशुओं के मरने पर उसका मांस खाने के कारण भारत में गिद्ध 1990 के दशक में ही विलुप्त होने लगे थे. इन दवाओं का प्रयोग समय के साथ बढ़ता गया और 21वीं सदी के पहले दशक में गिद्ध भारत में विलुप्त प्रजाति की श्रेणी में शामिल हो गए. इनका वजूद लगभग समाप्त होने के साथ ही भारत में तमाम संक्रामक रोगों का प्रकोप बढ़ने लगा.

गिद्ध न होने से हो रही 1 लाख मौत सालाना

रिपोर्ट के अनुसार गिद्धों के प्रकृति प्रदत्त सफाई अभियान पर लगभग पूरी तरह से रोक लगने के बाद भारत में गंदगी जनित बीमारियों का प्रकोप लगातार बढ़ रहा है. नतीजतन संक्रामक रोगों से इंसानी मौत का आंकड़ा भी साल दर साल बढ़ रहा है. अध्ययन में पाया गया कि गिद्धों के न होने से मृत पशुओं के शव Decompose होने में अधिक समय लगने लगा.

मृत पशुओं के सड़ने गलने से तमाम तरह के घातक बैक्टीरिया वातावरण में अपनी पहुंच बना सके. फलस्वरूप बैक्टीरिया जनित रोगों के लिए  Soft Target बन गए. इन रोगों के प्रकोप का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि भारत में इन रोगों के कारण पिछले 5 साल में मरने वालों की संख्या सालाना 1 लाख तक पहुंच गई है.

रिपोर्ट के अनुसार गिद्ध के वजूद को मिटाने वाली दवाओं का प्रयोग बंद नहीं करने के पीछे हालात का समय से सटीक अनुमान न लगा पाना सबसे बड़ी वजह रही. अध्ययन में पाया गया कि भारत में गिद्धों के लिए सबसे मुफीद माने गए इलाकों में उक्त दवाओं की बिक्री बढ़ने के साथ ही गिद्धों की संख्या तेजी से कम हुई. बाद में इन्हीं इलाकों में संक्रामक रोगों से मरने वालों की संख्या उन इलाकों की तुलना में 4 गुना ज्यादा पाई गई, जहां गिद्धों की संख्या कम या नगण्य थी.

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गिद्ध मरे और रैबीज का प्रकोप बढ़ा

शोध रिपोर्ट में एक और चौंकाने वाली बात, गिद्धों के न रहने से रेबीज का प्रकोप बढ़ने के रूप में सामने आई. अध्ययन में पाया गया कि गिद्धों के खत्म होने के बाद मृत पशुओं काे खाने का काम कुत्तों ने किया. लेकिन मृत पशुओं के मांस से उपजने वाले घातक बैक्टीरिया को कुत्ते, गिद्ध की तरह पचा पाने में सक्षम साबित नहीं हुए. इसके उलट कुत्तों में इसका घातक असर रैबीज का खतरा बढ़ने के रूप में देखने को मिला.

रिपोर्ट के अनुसार गिद्धों की प्रचुरता वाले इलाकों में पिछले कुछ सालों में रेबीज के संक्रमण के मामले भी बढ़ने की बात सामने आई है. इसका एक अन्य असर कुत्तों के आक्रामक होने के कारण इंसानों पर इसके प्रकोप के रूप में देखने को मिला है.

गौरतलब है कि भारत के शहरी और ग्रामीण इलाकों में बेहद आक्रामक हो चुके शिकारी कुत्तों के द्वारा इंसानों और भेड़ बकरी जैसे छोटे दुधारू जानवरों पर जानलेवा हमला करने के मामले लगातार सामने आ रहे हैं. इस तरह की घटनाओं में मासूम बच्चों की जान जाने के मामले अक्सर मीडिया रिपोर्टों में छाए रहते हैं. एक जीव के खत्म होने से समूचे जीव जगत पर पड़ रहे असर का हवाला देते हुए शोध रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में गिद्धों का पुनर्वास समय की मांग है. इस दिशा में किए जा रहे उपायों को युद्ध स्तर पर अंजाम तक पहुंचाने की जरूरत है.

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