मॉनसून की स्थिति को देखते हुए उत्तर प्रदेश कृषि अनुसंधान परिसद ने किसानों के लिए जरूरी सलाह जारी की है. प्रदेश में मौसम के वर्तमान स्थिति को देखते हुए किसानों को अगले सप्ताह कृषि प्रबन्धन के लिए निम्नलिखित सुझाव दिये गए हैं. आगामी सप्ताह 16 अगस्त, 2023 तक प्रदेश के उत्तरी तराई एवं उससे लगे क्षेत्रों तक सीमित बारिश होने की संभावना है. जबकि पूर्वी उत्तर प्रदेश में कुछ स्थानों व पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कहीं-कहीं वर्षा होने की संभावना जताई गई है. इस अवधि में प्रदेश के तराई जनपदों में मेघ गर्जन और ओलावृष्टि के साथ कहीं कहीं भारी वर्षा होने की संभावना है. राज्य के समस्त जिलों में बादलों की आवाजाही और मेघ गर्जना के साथ ओलावृष्टि होने की भी संभावना है.
उत्तर प्रदेश के सभी जिलों में हल्के से मध्यम बादलों के छाये रहने के कारण औसत तापमान सामान्य के आस-पास ही रहने की संभावना है. वहीं दूसरे सप्ताह (17 से 23 अगस्त, 2023) की बात करें तो मौसम मध्य एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सामान्य से कम वर्षा होने की संभावना है. पूर्वी उत्तर प्रदेश में तापमान सामान्य के आस पास बने रहने जबकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सामान्य से अधिक रहने की संभावना है.
मौसम को लेकर किसानों को दी गई जरूरी सलाह
- उत्तर प्रदेश में मौसम की स्थिति को देखते हुए किसानों को अगले सप्ताह कृषि प्रबन्धन के लिए निम्नलिखित सुझाव दिये जाते हैं. ताकि समय रहते किसान फसलों के लिए सभी उचित व्यवस्था कर होने वाले नुकसान से बचा सकें.
- श्रीअन्न यानी मोटे अनाजों की खेती कर रहे किसानों के लिए सलाह है कि वह इसके महत्व को समझते हुए इसकी अधिक से अधिक खेती करें. ताकि प्राकृतिक एवं जैविक खेती को बढ़ावा दिया जाय.
- किसानों को यह भी सलाह दी गई है कि वो कृषि रसायनों का इस्तेमाल कृषि वैज्ञानिक से सलाह लेकर ही करें. इससे मिट्टी और फसल दोनों को बचाया जा सकेगा.
- धान के खेत में नमी बनाये रखें. जिन क्षेत्रों में वर्षा की संभावनाएं कम हैं, वहां खेत में दरार दिखाई देने से पूर्व ही आवश्यकतानुसार सिंचाई कर लें ताकि फसलों को नुकसान न हो.
- धान वाले क्षेत्रों में जहां पर वर्षा सामान्य से काफी कम हुई हो वहां धान की फसल के स्थान पर सीमित सिंचाई उपलब्धता की दशा में कम समय में तैयार होने वाली बाजरा की खेती तथा उर्द/मूंग/तिल की बुआई प्राथमिकता के आधार पर किया जा सकता है. यदि संभव हो तो बाजरे की फसल में मूंग/उर्द एवं लोबिया की सहफसली खेती की जाय जिससे जोखिम की संभावना कम रहे.
- दलहनी एवं तिलहनी फसलों में जल भराव न होने दें और जल निकास का उचित प्रबन्ध करें.
- कीटों को नियंत्रित करने के लिए पर्यावरण अनुकूल उपायों यथा लाइट ट्रैप, बर्ड पर्चर, फेरोमोन ट्रैप, ट्राइकोग्रामा तथा रोग नियंत्रण हेतु ट्राइकोडर्मा का प्रयोग कृषि रक्षा इकाई और कृषि विज्ञान केन्द्र की सलाह पर करें.
- खेतों मे मेड़बन्दी करके नमी को बनाएं रखें. साथ ही तालाबों, पोखरों और झीलों में जमा बारिश के पानी का इस्तेमाल फसलों की सिंचाई में करें.
- खरीफ प्याज की पौध की रोपाई कृषि विज्ञान केन्द्रों की सलाह से करें.
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धान की खेती कर रहे किसानों के लिए जरूरी सलाह
- धान की ‘‘डबल रोपाई या सण्डा प्लाटिंग’’ के लिए दूसरी रोपाई पुनः पहले रोपे गये धान के 03 सप्ताह बाद 10 ग 10 से.मी. की दूरी पर करें.
- रोपाई के बाद जो पौधे नष्ट गए हों उनके स्थान पर दूसरे पौधों को तुरन्त लगा दें ताकि प्रति इकाई पौधों की संख्या कम न होने पाये.
- धान के खेतों में, वर्षा वाले क्षेत्रों में अजोला का प्रयोग करें जिससे नमी संरक्षण एवं पौधों को पोषण प्राप्त हो.
- धान की फसल में जड़ की सूड़ी से 5 प्रतिशत प्रकोपित पौधे होने की दशा में तथा दीमक का प्रकोप होने पर नियंत्रण हेतु क्लोरपायरीफॉस 20 ई.सी. 2.5 ली./हे. की दर से सिंचाई के पानी के साथ प्रयोग करें.
- धान की रोपाई के 20 से 25 दिन पर खरपतवार नियंत्रण के लिए विस्पाईरी बैक सोडियम रसायन का 250 मि.ली. प्रति हेक्टेयर घोल बनाकर छिड़काव करें.
बाजरा की उन्नत किस्में
कम वर्षा वाले क्षेत्रों में बाजरा की संकुल किस्मों घनशक्ति, डब्लू.सी.सी.-75, आई.सी.एम.बी.-155, आई.सी.टी.पी.-8203, राज-171 तथा न.दे.पफ.बी.-3 तथा संकर किस्मों 86 एम 84, पूसा-322, आई.सी.एम.एच.-451 तथा पूसा-23 की बुवाई जल्द से जल्द समाप्त करें.
मूंग की उन्नत किस्में
आजाद मूंग-1, पूसा-1431, मेहा 99-125, एम.एच.-2.15, टी.एम.-9937, मालवीय, जनकल्याणी, मालवीय, जनचेतना, मालवीय जनप्रिया, मालवीय जागृति, मालवीय ज्योति, पंत मूंग 4, नरेन्द्र मूंग-1, पी.डी.एम.-11, आशा, विराट एवं शिखा की बुवाई करें. बीज का उपचार मूंग के विशिष्ट राइजोबियम कल्चर से अवश्य करें.
उर्द की उन्नत किस्में
शेखर-1, शेखर-2, शेखर-3, आई.पी.यू.-94-1, नरेन्द्र उर्द-1, पंत उर्द-9, पंत उर्द-8, आजाद-3, डब्लू.बी.यू.-108, पंत उर्द-31, आई.पी.यू.-2-43, तथा आई.पी.यू.- 13-1 की बुवाई यथाशीघ्र समाप्त करें. बीज का उपचार उर्द के विशिष्ट राइजोबियम कल्चर से अवश्य करें.