भारत त्योहारों का देश है. यहां हर त्योहार को बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. ऐसा ही एक त्योहार अहोई अष्टमी है. अहोई अष्टमी का व्रत करवा चौथ के 04 दिनों के बाद कार्तिक मास की कृष्ण अष्टमी को मनाया जाता है. महिलाएं अपनी संतान की लंबी उम्र के लिए इस दिन निर्जला व्रत रखती हैं और रात में तारों को अर्घ्य देने के बाद अन्न-जल ग्रहण करती हैं. इस व्रत के दौरान महिलाएं भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा करती हैं और अपने बच्चों की सलामती के लिए प्रार्थना करती हैं. इस खास मौके पर एक खास फल के बिना इस त्योहार को अधूरा माना जाता है. जानें वो कौन सा है फल और उस फल का क्या है महत्व.
अहोई अष्टमी में सिंघाड़े के फल का काफी महत्व होता है. इस दिन महिलाएं अहोई माता के प्रसाद के रूप में सिंघाड़े का फल चढ़ाती हैं. इस फल का महत्व इसलिए है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस फल को चढ़ाने से सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. अहोई माता की पूजा में सिंघाड़े के अलावा मूली का भी महत्व है.
अहोई अष्टमी का व्रत करवा चौथ के 04 दिन बाद मनाया जाता है. इसलिए माताएं इस साल अहोई अष्टमी का व्रत 05 नवंबर को रखेंगी और तारों के उगने के बाद उन्हें अर्घ्य देकर व्रत खोलेंगी. इस व्रत को ज्यादातर उत्तर भारत की महिलाएं करती हैं. इस दिन माताएं अपने बच्चों के अच्छे स्वास्थ्य, सुंदर भविष्य और लंबी उम्र के लिए निर्जला व्रत रखती हैं.
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हिंदू पंचांग के अनुसार, इस बार 05 नवंबर को अहोई अष्टमी का व्रत मनाया जा रहा है. इस दिन पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 05 बजकर 33 मिनट से लेकर शाम 06 बजकर 52 मिनट तक है. इस दिन तारे देखने का समय शाम 05 बजकर 58 मिनट है. वहीं कुछ लोग चांद देख कर भी व्रत का पारण करते हैं. चंद्रोदय का समय रात 11 बजकर 45 मिनट है.
मान्यताओं के मुताबिक इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर पूजा करना शुभ माना जाता है. इस दिन पुत्र की लंबी उम्र और सुखी जीवन की प्रार्थना की जाती है. इसके बाद अहोई अष्टमी व्रत का संकल्प लिया जाता है. माता पार्वती की पूजा करें. अहोई माता की पूजा करने के लिए दीवार पर गेरू से उसके चित्र के साथ साही और उसके सात पुत्रों का चित्र बनाएं. अहोई माता के सामने चावल, मूली, सिंघाड़ा आदि का कटोरा रखें और अष्टोई अष्टमी की व्रत कथा सुनें या सुनाएं.