राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार 10 फरवरी यानी शुक्रवार को अपना बजट 2023 पेश करेगी. जोकि गहलोत सरकार के इस कार्यकाल का आखिरी बजट होगा. वही राजस्थान सरकार ने पिछले साल कृषि का अलग से बजट पेश किया था. ऐसे में प्रदेश के किसानों और विभिन्न किसान संगठनों की सरकार से इस बार के कृषि बजट को लेकर कुछ उम्मीदें और अपेक्षाएं हैं. कृषि बजट को ध्यान में रखकर ही किसान तक ने खेती किसानी से जुड़े कई संगठनों और नेताओं से बात की और उनसे जाना कि आखिर वे कृषि क्षेत्र के लिए बजट 2023 से क्या उम्मीद लगाए बैठे हैं-
किसान तक ने इसके लिए सबसे पहले हनुमानगढ़ जिले के भादरा से सीपीआई (एम) विधायक बलवान पुनिया से बात की. उन्होंने किसान तक से कहा, “ इस बार के बजट में मैंने सीएम को पत्र लिखकर कुछ समस्याओं की ओर ध्यान आकर्षित किया है. इस बजट में हमारी सबसे बड़ी मांग है कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की तर्ज पर राज्य की अलग से फसल बीमा योजना बनाई जाए. इस मांग का कारण यह है कि भारत सरकार ने फसल बीमा के जो नियम बनाए हैं वो पूरे देश को देखकर बनाए हैं. जिनमें काफी एकरूपता है."
वे कहते हैं, "राजस्थान भौगोलिक रूप से काफी विविधता लिए हुए है. ऐसे में यहां के किसानों को पीएम फसल बीमा योजना में क्लेम नहीं मिलता. अगर मिलता भी है तो वह राशि काफी कम होती है. दूसरी बात, किसानों को फसल खराब होने पर क्लेम के लिए कई चक्कर काटने पड़ते हैं. राज्य सरकार अनुदान के तौर 50 प्रतिशत राशि PMFBY में देती ही है. इसीलिए राजस्थान की भौगोलिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए बजट में मुख्यमंत्री फसल बीमा योजना शुरू की जानी चाहिए.”
पुनिया ने आगे कहा, “खेती-किसानी से जुड़ी दूसरी मांग के लिए मैंने बीते दिनों सीएम गहलोत को पत्र भी लिखा. इसमें सिंचित क्षेत्र यानी गंगानगर, हनुमानगढ़ और बीकानेर जिले के टूटे हुए खालों (वाटरकोर्स) की मरम्मत किए जाने की मांग की है. मेरी विधानसभा क्षेत्र भादरा में अमर सिंह ब्रांच, सिद्धमुख नहर और नोहर फीडर प्रणाली में टूटे हुए खालों के निर्माण की मांग की है.”
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किसान तक ने राजस्थान में काम कर रहे किसान संगठन राष्ट्रीय किसान महापंचायत के अध्यक्ष रामपाल जाट से बात की. रामपाल ने कहा, “हमने इस बजट में खेत को पानी-फसल को दाम की मांग की है. खेत को पानी देने के लिए पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना की बची हुई पूरी राशि (27,327 करोड़ रुपए) दिए जाएं, ताकि ईआरसीपी का काम समय से पहले पूरा हो सके. साथ ही यमुना के पानी को भी लाने के प्रयास किए जाएं और इसमें सीकर, झुंझुनू, जयपुर और नागौर जिले शामिल किए जाएं. इसके अलावा ईआरसीपी सहित बारां जिले की परवन बहुउद्देशीय सिंचाई परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना घोषित किया जाए.”
रामपाल आगे जोड़ते हैं, “फसल को दाम के लिए दलहन-तिलहन की उपजों की खरीद पर लगाए प्रतिबंधों को खत्म किए जाए और इनकी खरीद की अवधि छह महीने रखी जाए. इसके अलावा न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद का कानून बनाने की मांग राज्य सरकार इस बजट में करे. ताकि किसानों को अपनी फसलें एमएसपी से नीचे नहीं बेचनी पड़े. इसके लिए कृषि उपज मंडी अधिनियम 1961 की धारा 9 (2) (XII) में MAY शब्द को संशोधित कर SHELL किया जाए.”
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रामपाल जाट ने कहा, “राष्ट्रीय बैंकों से लिए किसानों को लोन को माफ करवाने की दिशा में कुछ बड़ा कदम उठाया जाना चाहिए. वहीं, किसानों की फसल को एमएसपी पर खरीद के लिए केंद्र स्थापित करने के समझौते की गंभीरता से पालन की जाए.”
किसान तक ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की किसान इकाई भारतीय किसान संघ के राजस्थान पदाधिकारियों से भी बात की. भारतीय किसान संघ ने राज्य सरकार पर पिछली बजट घोषणाओं को पूरा नहीं करने का आरोप लगाया है. उन्होंने कहा, "राज्य की गहलोत सरकार ने किसानों को दिन में बिजली देने, किसानों को तकनीकी उपयोग बढ़ाने के लिए ड्रोन पर अनुदान देने, कृषि विद्युत कनेक्शन देने, किसानों को सोलर कनेक्शन देने, माइक्रो इरिगेशन सेंटर ऑफ एक्सीलेंस स्थापित करने, मेगा और मिनी फूड पार्क खोलने, पंचायत स्तर पर नंदीशाला खोलने और कृषि विद्युत कंपनी बनाने की घोषणाओं को अधूरा छोड़ दिया है."
उन्होंने आगे कहा कि राज्य सरकार केंद्र से समन्वय स्थापित कर ईआरसीपी जैसी महत्वपूर्ण सिंचाई परियोजना को धरातल पर लाने का काम करे और पिछले बजट की अधूरी पड़ी घोषणाओं को पूरा करे.
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