विश्व मौसम विज्ञान संगठन (World Meteorological Organization) ने शुक्रवार को चेतावनी दी कि वैश्विक स्तर पर समुद्र का जलस्तर 1993-2002 के मुकाबले दोगुनी गति से बढ़ रहा है. यह ‘हजारों वर्षों’ तक जारी रह सकता है. डब्लूएमओ ने अपनी "स्टेट ऑफ ग्लोबल क्लाइमेट 2022" रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि 2013-22 के बीच ग्लेशियरों के अत्यधिक पिघलने और रिकॉर्ड महासागरीय गर्मी के स्तर ने जलस्तर में 4.62 मिमी प्रति वर्ष की औसत वृद्धि में योगदान दिया है. यह 1993-2002 के दशक में रिकॉर्ड गति से लगभग दोगुनी है, जिससे 1990 के दशक की शुरुआत से 10 सेमी से अधिक की कुल वृद्धि हुई है.
बढ़ते जलस्तर से प्रशांत महासागर में स्थित द्वीप राष्ट्र तुवालु और कुछ समुद्र तटीय शहरों के अस्तित्व को खतरा पैदा हो गया है.
वहीं, अंटार्कटिका में समुद्री बर्फ पिछले जून और जुलाई में पिघलकर रिकॉर्ड स्तर पर पीछे खिसकी है. रिपोर्ट में कहा गया है कि महासागर सबसे गर्म दर्ज किए गए, उनकी लगभग 58 प्रतिशत सतहों पर समुद्री हीटवेव का अनुभव हुआ. रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले साल यूरोप में लू के दौरान करीब 15,000 लोगों की मौत हुई थी. चिंता की बात है कि चरम मौसम के पैटर्न 2060 तक जारी रहेंगे, चाहे हम ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन कम करने के लिए कोई भी कदम उठाएं.
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रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में पिछले वर्ष अत्यधिक गर्मी से अनाज की पैदावार कम हो गई और उत्तराखंड में कई जंगलों में आग लग गई. जून में उत्तर पूर्व में बाढ़ की खबर आई.
‘स्टेट ऑफ द ग्लोबल क्लाइमेट 2022’ रिपोर्ट के अनुसार, देश में बाढ़ और भूस्खलन से करीब 700 लोगों की मौत हो गई, वहीं 900 अन्य लोग आसमानी बिजली गिरने से मारे गए. बाढ़ के कारण असम में 6.63 लाख लोग विस्थापित हो गए. रिपोर्ट के अनुसार, यूक्रेन में संघर्ष की शुरुआत के बाद भारत में गेहूं और चावल के निर्यात पर पाबंदियां लगीं. इससे अनाज की कमी से प्रभावित देशों के लिए भारी जोखिम पैदा हो गया.
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विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने कहा कि भारतीय मानसून की शुरुआत सामान्य से पहले हुई थी और 2022 में सामान्य से बाद में वापसी हुई थी. भारतीय उपमहाद्वीप का अधिकांश हिस्सा औसत से अधिक गीला था और मानसून पाकिस्तान की ओर सामान्य से अधिक पश्चिम की ओर बढ़ा था.