एमपी में बहुचर्चित पटवारी भर्ती परीक्षा में फर्जी दिव्यांग सर्टिफिकेट बनवाकर नौकरी पाने के आरोपों पर मचे बवाल के बीच हाईकोर्ट की ग्वालियर पीठ ने सरकार को एक कमेटी बनाकर न केवल पटवारी परीक्षा बल्कि पिछले 20 साल में दिव्यांग कोटे से तमाम भर्तियों में नौकरी पाने के मामलों की जांच कराने का आदेश दिया है. इस बीच राज्य सरकार की ओर से बताया गया कि हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज, जस्टिस राजेंद्र कुमार वर्मा पटवारी भर्ती परीक्षा की जांच करेंगे. यह जांच रिपोर्ट 31 अगस्त तक सरकार को मिल जाएगी.
राज्य में इस मामले ने तब तूल पकड़ लिया, जब पुलिस एवं वन रक्षक भर्ती परीक्षाओं में कुछ छात्रों द्वारा खुद को फिट बताते हुए परीक्षा दी गई और इसके बाद पटवारी भर्ती में उन्हीं छात्रों द्वारा दिव्यांग कोटे से अभ्यर्थी बनने का मामला सामने आया. इस मामले को एमपी हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच में वरिष्ठ वकील उमेश बोहरे ने जनहित याचिका दायर कर उठाया था. बोहरे ने बताया कि इस याचिका पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को हर जिले में पिछले 20 साल के दौरान विभिन्न विभागों में भर्ती के दौरान दिव्यांग कोटे से नौकरी पाने वालों के प्रमाणपत्रों का भौतिक सत्यापन कराने को कहा.
इस दौरान सरकार की ओर से बताया गया कि पटवारी भर्ती परीक्षा में हुई कथित अनियमितताओं की शिकायतों की जांच हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज, जस्टिस राजेंद्र कुमार वर्मा की अगुवाई में की जाएगी. बोहरे ने कहा कि उनकी याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने भी सरकार को एक कमेटी बनाकर जांच कराने को कहा है. हालांकि सरकार की ओर से अदालत को अवगत कराया गया कि इस मामले की जांच के लिए कमेटी बना दी गई है. कमेटी ने जांच शुरू भी कर दी है. इस पर याचिकाकर्ता वकील बोहरे ने कहा कि इस तरह के फर्जीवाड़े का गढ़ मुरैना जिला है. इसके मद्देनजर उन्होंने अदालत से इसकी अलग से जांच कराने की मांग की. इस पर अदालत ने मुरैना के कलेक्टर को याचिकाकर्ता वकील की मौजूदगी वाली समिति बनाकर इस तरह के सभी मामलों की जांच कर यथाशीघ्र रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया है.
याचिकाकर्ता वकील बोहरे ने बताया कि उन्होंने याचिका के माध्यम से अदालत को बताया कि मुरैना सीएमएचओ कार्यालय से फर्जी विकलांगता सर्टिफिकेट जारी किये जाने के सबसे ज्यादा आरोप लगे हैं. उन्होंने कहा कि वर्ष 2003 से लेकर 2023 तक राज्य सरकार की तमाम भर्ती परीक्षाओं में दिव्यांग कोटे से जितने आवेदकों का चयन हुआ है, उनके सर्टिफिकेट की जांच सीबीआई से कराई जाए. उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लिया है. सरकारी वकील ने अदालत से कहा कि मुरैना, ग्वालियर और भिंड जिलों में दिव्यांग कोटे से नौकरी पाने की शिकायतों की जांच के लिए जिला कलेक्टर की समिति जांच कर रही है. इस पर बोहरे ने अदालत से कहा कि यह मामला तीन जिलों तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे प्रदेश में इस तरह का फर्जीवाड़ा बड़े पैमाने पर किया जा रहा है. अदालत ने सरकार को इस मामले की जांच के लिए गठित समिति में याचिकाकर्ता वकील को भी शामिल करने का आदेश देते हुए जल्द जांच रिपोर्ट अदालत में पेश करने को कहा.
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बोहरे ने बताया कि अदालत के आदेश पर स्वयं उनकी मौजूदगी वाली पांच सदस्यीय समिति पूरे प्रदेश में पिछले 20 सालों में हुई भर्तियों में दिव्यांग कोटे से नौकरी पाने वालों के सर्टिफिकेट का भौतिक सत्यापन कराएगी. उन्होंने कहा कि अदालत ने कमेटी को जांच के बाद इसकी डिटेल रिपोर्ट पेश करने के आदेश दिए हैं. उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा गठित मौजूदा समिति द्वारा की जा रही जांच संतुष्ट नहीं होने पर वह हाई कोर्ट में रिव्यू पिटीशन दायर कर अदालत से सरकार को इस मामले की व्यापक जांच कराने के लिए निर्देश देने की मांग करेंगे. उन्होंने कहा कि इस मामले में गंभीर अनियमितताएं सामने आने पर यह याचिका अदालत में दायर की गई. अदालत ने इसे गंभीरता से लेते हुए सरकार काे समिति बनाकर पूरे प्रदेश में जांच कराने का आदेश दिया है.
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हाल ही में पटवारी भर्ती परीक्षा का परिणाम घोषित होने के बाद मुरैना जिले के एक ही गांव से एक ही समुदाय के दो दर्जन से अधिक छात्रों का चयन विकलांग कोटे से होने का मामला प्रकाश आने पर इस मामले ने तूल पकड़ लिया. आरोप है कि इनमें से पाए गए हैं, जो पुलिस एवं वन रक्षक परीक्षाओं में सामान्य श्रेणी में पेश हुए थे, लेकिन वही छात्र पटवारी परीक्षा में दिव्यांग कोटे से अभ्यर्थी बन गए. बोहरे ने कहा कि निश्चित तौर पर परीक्षा के बाद भर्ती के समय दिव्यांग सर्टिफिकेट का भौतिक सत्यापन होता है, लेकिन इस बात की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि दिव्यांग सर्टिफिकेट हासिल करने के बाद ही दिव्यांग कोटे से परीक्षा देने के लिए छात्र आवेदन करते हैं. उन्होंने स्पष्ट किया कि सवाल ऐसे ही छात्रों पर उठ रहे हैं, जो पहले घूस देकर दिव्यांग सर्टिफिकेट बनवाते हैं, फिर परीक्षा पास कर नियुक्ति पाने के लिए भी घूस देकर भौतिक सत्यापन भी करा लेते हैं.
इस बीच एमपी के पूर्व मुख्यमंत्री एवं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने पटवारी भर्ती परीक्षा को तत्काल प्रभाव से निरस्त करने की मांग की है. उन्होंने कहा कि पटवारी भर्ती परीक्षा में व्यापक पैमाने पर गड़बड़ियां सामने आ चुकी हैं, इस आधार पर सरकार को तत्काल यह परीक्षा निरस्त करना चाहिए. सिंह ने मौजूदा परीक्षा प्रणाली पर भी सवाल उठाते हुए सुझाव दिया कि सरकार को एक ही प्रश्न पत्र से एक दिन में ऑफ लाइन परीक्षा करना चाहिए. साथ ही मौके पर ही परीक्षा परिणाम भी घोषित कर देना चाहिए, इससे गड़बड़ी करने का किसी को कोई मौका नहीं मिल सकेगा.