मॉनसून की बेरुखी और सूखे जैसी स्थिति का सामना करने के कारण, कर्नाटक के किसान सूखी नदी में रेत के नीचे से पानी निकालने की कोशिश में छोटे-छोटे 'कुएं' खोद रहे हैं. इन किसानों पर पशुओं के लिए पानी जुटाने और खरीफ फसलों की बुवाई करने का भारी दबाव है. मालूम हो कि राज्य में मॉनसून 2023 ने जून के दूसरे सप्ताह में ही दस्तक दे दी थी, लेकिन राज्य में जून में लगभग 50 प्रतिशत कम बारिश हुई है. जून महीने के अंतिम सप्ताह तक यह कमी लगभग 66 प्रतिशत थी. जबकि कुछ क्षेत्रों, विशेष रूप से तटीय क्षेत्रों में बारिश ने पूरे औसत को बढ़ा दिया था. हालांकि, राज्य के कई इलाकों, विशेषकर उत्तरी कर्नाटक में, लगभग 90 प्रतिशत बारिश की कमी दर्ज की गई.
वहीं किसान कई लाख रुपये खर्च करके, किसी तरह पानी प्राप्त करने के लिए पिछले महीने कृष्णा नदी के तल पर 100 से अधिक कुएं खोदे हैं. हालांकि, रेत में मौजूद गाद या दूषित पदार्थ, मनुष्यों और पशुधन दोनों पर भारी पड़ रहा है. पिछले हफ्ते जमाखंडी के कड़ाकोल गांव में ऐसे ही एक कुएं का पानी पीने से छह भैंसों की मौत हो गई थी. वहीं जल संरक्षणवादियों का कहना है कि नदी तल पर कुआं खोदना गैरकानूनी है और इससे पानी भी दूषित हो सकता है, जिससे बड़ा खतरा पैदा हो सकता है. यहां पढ़ें पूरी रिपोर्ट-
दरअसल, कर्नाटक के छह जिलों से होकर गुजरने वाली कृष्णा नदी के किनारे के स्थानीय लोगों का कहना है कि उन्हें आमतौर पर जून तक कम से कम 10,000 से 20,000 क्यूसेक पानी मिलता है. हालांकि, कृष्णा नदी के सूखने और कर्नाटक और महाराष्ट्र के जलग्रहण/Catchment क्षेत्रों में भारी बारिश के कोई संकेत नहीं होने के कारण, किसान नदी के तल में खुदाई कर कुआं बना रहे हैं. वहीं विजयपुरा जिले के जमाखंडी में नदी के तल को खोदते हुए बैकहोज हाल ही में एक आम दृश्य बन गए हैं.
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टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक जमाखंडी के एक किसान, राजू मेगालाकेरी ने कहा, “ नदी के तल में कुआं खोदना एक अंतिम उपाय है. नदी के किनारे के सभी जल स्रोत सूख गए हैं, इसलिए नदी के किनारे के लोगों के लिए यह एकमात्र विकल्प है. हम इन कुओं को खोदने के लिए बैकहोज, उपकरण और मजदूरी पर 15,000 रुपये से 25,000 रुपये खर्च कर रहे हैं.”
जमखंडी के एक अन्य किसान बसवराज पाटिल ने कहा कि यदि रेत का लेयर ज्यादा मोटा होता है, तो वे 4-5 फीट खुदाई करते हैं और डीजल पंप का उपयोग करके पानी निकालते हैं. यदि कोई चट्टानी परत है, तो हम 10 फीट तक खुदाई करते हैं. उन्होंने आगे कहा, “निःसंदेह पानी को फिल्टर करना चाहिए, क्योंकि यह गाद और अन्य प्रदूषकों से दूषित हो सकता है. प्रत्येक कुआं से सूखने से पहले पांच से छह दिनों तक पानी की सप्लाई मिलती रहती है. फिर कहीं और कुआं खोदा जाता है.”
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गौरतलब है कि कई लोग ऐसे अस्थायी जल स्रोतों पर चिंता व्यक्त कर रहे हैं. बागलकोट के एक जल संरक्षणवादी ने कहा, “सबसे पहले, नदी के तल को नुकसान पहुंचाना या उसमें बदलाव करना पूरी तरह से अवैध है. दूसरा, पानी की गारंटी नहीं है और गुणवत्ता भी एक प्रश्न है, क्योंकि रेत में मौजूद गाद या दूषित पदार्थों, मानव और पशुधन गतिविधि के कारण मिश्रित हो जाएगा. पिछले हफ्ते जमाखंडी के कड़ाकोल गांव में ऐसे ही एक कुएं का पानी पीने से छह भैंसों की मौत हो गई थी. सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए और किसानों को पीने का पानी उपलब्ध कराना चाहिए.”