Independence Day 2024 : स्वतंत्रता दिवस के 77 साल बाद भी खेती-किसानी में कई चुनौतियां, कैसे होगा सुधार ?

Independence Day 2024 : स्वतंत्रता दिवस के 77 साल बाद भी खेती-किसानी में कई चुनौतियां, कैसे होगा सुधार ?

भारत ने खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त कर ली है. विभिन्न तकनीकों और विधियों ने इस सफलता में अहम भूमिका निभाई है. लेकिन, स्वतंत्रता के 77 वर्षों के बाद भी किसानों को अपनी उपज का सही मूल्य न मिलना, उपज की गुणवत्ता खराब होने से उपभोक्ताओं पर विपरीत प्रभाव, जलवायु परिवर्तन पर खेती पर बुरा असर समेत कई चुनौतियां सामने खड़ी हैं. इन समस्याओं का समाधान अभी बाकी है.

देश की खेती-किसानी कई चुनौतियां  बरकरारदेश की खेती-किसानी कई चुनौतियां बरकरार
जेपी स‍िंह
  • नई दिल्ली,
  • Aug 15, 2024,
  • Updated Aug 15, 2024, 9:58 AM IST

हमारी धरती, जो हरियाली से ढकी और शस्य श्यामला है, ने आज़ादी के बाद कई महत्वपूर्ण बदलाव देखे हैं. खेतों और किसानों से जुड़ी क्रांतियों ने बंजर भूमि को उपजाऊ खेतों में बदलने का काम कियाऔर अधिक उत्पादन के लिए केमिकल्स का उपयोग बढ़ा दिया. इस दौरान लोगों का जीवनस्तर ऊंचा हुआ है, लेकिन इसके साथ ही कई आर्थिक तकनीकी और सामाजिक समस्याएं भी उभरी हैं.स्वतंत्रता की 78वीं वर्षगांठ पर, यह समय है कि हम अपनी उपलब्धियों की समीक्षा करें और नाकामियों से सबक लेते हुए भविष्य की दिशा निर्धारित करें. स्वतंत्रता के बाद भारत ने कृषि क्षेत्र में अभूतपूर्व परिवर्तन देखे. एक समय था जब हमें अन्न आयात करना पड़ता था, लेकिन अब हम अन्न का निर्यात करने की स्थिति में हैं. स्वतंत्रता के बाद, हमारे नीति निर्धारकों ने कृषि और उद्योग की तरक्की के लिए कई कदम उठाए और हमारे किसानों ने इसे जमीन पर उतार कर सफलता हासिल की आज़ादी के 77 साल पूरे होने पर हम अपने अस्तित्व और दिशा की पुनरावृत्ति के मोड़ पर खड़े हैं.स्वतंत्र भारत का किसान याद दिला रहा कि कृषि और किसानों का वर्तमान क्या है .जिस  पर ध्यान देना चाहिए.किसानों की आय  बढ़ाने का लक्ष्य हो या केमिकल खेती को छोड़कर प्राकृतिक खेती को अपनाने की बात हो अब,इस दिशा में गंभीरता से चर्चा होने लगी है.

आज़ादी के बाद खेती-किसानी में बदलाव

स्वतंत्रता के बाद कई प्रयासों के फलस्वरूप देश में कई कृषि क्रांतियां हुईं, जैसे हरित क्रांति, श्वेत क्रांति, नीली क्रांति, गोल्डन क्रांति, ग्रे रिवॉल्यूशन, राउंड रिवॉल्यूशन, सिल्वर रिवॉल्यूशन, और मीठी क्रांति. इन क्रांतियों ने देश की समृद्धि और लोगों के जीवनस्तर को ऊंचा किया. यह सब संभव हुआ किसानों के अथक प्रयासों और सरकारी नीतियों के सफल कार्यान्वयन से. स्वतंत्रता के 77 वर्षों के बाद, भारत ने खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त की है. विभिन्न तकनीकों और विधियों ने इस सफलता में अहम भूमिका निभाई है. हरित क्रांति ने उन्नत फसल किस्मों, सिंचाई सुविधाओं, और उर्वरकों के उपयोग से खाद्यान्न उत्पादन को बढ़ाया. सूचना प्रौद्योगिकी का उपयोग डेटा विश्लेषण और मौसम पूर्वानुमान में वृद्धि के साथ हुआ, जिससे उत्पादकता में सुधार हुआ है. ड्रिप सिंचाई और स्प्रिंकलर सिस्टम जैसी तकनीकों ने जल संसाधनों का प्रभावी उपयोग सुनिश्चित किया है. अनुसंधान और विकास ने नई फसल किस्में और खेती की विधियां विकसित की हैं. लेकिन, इसके साथ ही  खेती की घटती उर्बरता  उपज की क्वालिटी में गिरावट ने किसान और उपभोक्ताओं पर इसके विपरीत प्रभाव और जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न नई चुनौतियां भी सामने आई हैं.

देश की कृषि में चुनौतियां और समस्याएं

इन सभी क्रांतियों के बावजूद किसानों की स्थिति में कई गंभीर सवाल उठते हैं. क्या किसानों को उनकी मेहनत का सही मूल्य मिला? क्या देश की समृद्धि में अपना सब कुछ न्योछावर करने वाले किसानों को सही मान्यता और लाभ मिला? गांवों और शहरों के बीच की दूरी कम होने से किसानों के सामने नई समस्याएं आई हैं. बढ़ती तकनीकी तरक्की और रिसर्च ने कई अवसर प्रदान किए, लेकिन आर्थिक स्थिति में सुधार नहीं हुआ और इसके नकारात्मक प्रभाव पड़े हैं. किसानों की आर्थिक स्थिति और समाज के अन्य लोगों के जीवनस्तर के बीच असंतुलन बढ़ गया है, जिसके परिणामस्वरूप कर्ज के बोझ तले दबे किसानों की आत्महत्याएं एक गंभीर चिंता का विषय बनी हैं.

देश में कृषि उपज की गुणवत्ता पर सवाल

खाद्य सुरक्षा की प्राथमिकता के कारण खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता पर ध्यान नहीं दिया गया, जिससे उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है. उच्च मात्रा में रसायनों और उर्वरकों के उपयोग ने खाद्य पदार्थों में विषैले तत्वों की उपस्थिति बढ़ा दी है, जो स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकती है. कृषि भूमि के अत्यधिक उपयोग और विस्तार ने पर्यावरणीय असंतुलन को जन्म दिया है, जिससे भूमि की गुणवत्ता में गिरावट आई है. जलवायु परिवर्तन ने कृषि क्षेत्र में कई नई चुनौतियां उत्पन्न की हैं, जैसे बदलते मौसम और असामान्य मौसमी पैटर्न, जो फसल उत्पादन को प्रभावित कर रहे हैं. अधिक गर्मी और अनियमित वर्षा फसलों की वृद्धि में बाधा डाल रही है. सूखा और जलवायु परिवर्तन के कारण पानी की उपलब्धता में कमी आई है, जिससे सिंचाई और फसल उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है. नए कीट और रोग फसलों को प्रभावित कर रहे हैं, जो खाद्य सुरक्षा के लिए खतरा उत्पन्न कर रहे हैं. जलवायु परिवर्तन के कारण भूमि की उर्वरता में कमी आ रही है, जिससे फसल की उपज पर प्रभाव पड़ रहा है.

देश कृषि चुनौतियों का समाधान और भविष्य 

हमारे उपनिषदों के ज्ञान के अनुसार, अन्न की प्रचुरता से ही खुशहाली आती है. फिर भी भुखमरी और कुपोषण की समस्याएं और किसानों की आत्महत्याएं हमारी नीति और दिशा पर सवाल खड़े करती हैं. जैविक खेती, प्राकृतिक खेती, और नई तकनीकों के माध्यम से रसायनों की मात्रा कम करने पर जोर दिया जा रहा है, लेकिन यह केवल एक पहलू है. हमारे देश में लगभग 86 प्रतिशत छोटे और मझोले किसान हैं. बड़े जोत वाले किसानों के साथ इन छोटे और मझोले किसानों को भी तकनीकी जानकारी, कम लागत में बेहतर उपज, नई तकनीकों से परिचित कराना, मौसम और कीट-रोगों से बचाव के उपाय सुझाना और एकीकृत खेती के मॉडल को अपनाने में मदद करना जरूरी  है.आज कई चुनौतियाँ सामने हैं, जैसे मिलावटी खाद्यान्न, खतरनाक रसायन, और पर्यावरणीय समस्याएं. कृषि की विधियों को पर्यावरण के अनुकूल और सतत बनाने की जरूरत है. नई तकनीकों और अनुसंधान पर जोर देना चाहिए जो जलवायु परिवर्तन के प्रति प्रतिरोधक हों, और खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता और पोषण पर ध्यान देना चाहिए ताकि उपभोक्ताओं का स्वास्थ्य सुरक्षित रहे.

जमीन पर उतरें, तभी योजनाओं से लाभ

केंद्र सरकार ने किसानों के कल्याण के लिए कई योजनाएं बनाई हैं, लेकिन किसानों को उनके अधिकारों और सरकारी योजनाओं के लाभ के बारे में जागरूक करना जरूरी है, जैसे कि फसल बीमा योजना, सिंचाई योजना, कृषि मशीनरी पर सब्सिडी योजना, और राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड से सब्सिडी. इन योजनाओं का वास्तविक प्रभाव तभी महसूस होगा जब ये ज़मीन पर ठोस रूप से लागू हों. केवल घोषणाएं और योजनाएं पर्याप्त नहीं हैं ठोस कार्यान्वयन की जरूरत है.  किसानों की आय  बढ़ाने का लक्ष्य हो या केमिकल खेती को छोड़कर प्राकृतिक खेती को अपनाने की बात हो अब,इस दिशा में गंभीरता से चर्चा होने लगी है. स्वतंत्रता के 77 वर्षों में भारत ने खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त की है, लेकिन इसके साथ ही उपभोक्ताओं पर विपरीत प्रभाव और जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न चुनौतियों को भी ध्यान में रखना जरूरी है. इन समस्याओं का समाधान करने के लिए सतत और समावेशी दृष्टिकोण अपनाना होगा. स्वतंत्रता दिवस के इस मौके पर, हम अपने अतीत से सबक लेकर एक नई सुबह की आशा कर सकते हैं, जिसमें किसान और खेती के मुद्दे सही दिशा में प्रगति कर सकें.

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