हरियाणा में चालू धान खरीद सीजन में एक चौंकाने वाली गड़बड़ी सामने आई है, जहां किसानों को कच्ची पर्ची के माध्यम से कथित तौर पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से कम भुगतान किया जा रहा है, जबकि आधिकारिक रिकॉर्ड में एमएसपी के अनुसार भुगतान दिखाया जा रहा है. किसानों के अनुसार, आढ़ती और चावल मिल मालिक धान में नमी की मात्रा ज्यादा होने का हवाला देकर एमएसपी से 100 से 700 रुपये प्रति क्विंटल कम दाम पर कच्ची पर्चियां जारी कर रहे हैं. हालांकि, किसानों के बैंक खातों में सरकार द्वारा जाने वाला दाम एमएसपी के बराबर है.
करनाल अनाज मंडी में एक किसान का धान 2,000 रुपये प्रति क्विंटल के भाव से खरीदा गया, जबकि इस सीज़न के लिए ए-ग्रेड धान का आधिकारिक एमएसपी 2,389 रुपये है. उसके 46 क्विंटल धान का कुल मूल्य कच्ची पर्ची पर 91,635 रुपये दर्ज था, लेकिन उसके बैंक खाते में 1,09,296 रुपये जमा कर दिए गए. अब उससे अंतर की राशि वापस करने को कहा गया है.
भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के नेताओं ने किसानों से आढ़तियों और मिल मालिकों को पैसा न लौटाने का आग्रह किया है. किसान यूनियनों ने इसे "दिनदहाड़े सुनियोजित लूट" करार देते हुए इसकी निंदा की है और अधिकारियों, आढ़तियों और मिल मालिकों पर मिलीभगत का आरोप लगाया है.
भारतीय किसान संघ (सर छोटू राम) के प्रवक्ता बहादुर सिंह मेहला ने कहा कि यह नमी कटौती के नाम पर खुली धोखाधड़ी है. यह खरीद एजेंसियों, हरियाणा राज्य कृषि विपणन बोर्ड (HSAMB), चावल मिल मालिकों और आढ़तियों के अधिकारियों का एक संगठित गठजोड़ है. ये सभी मिलकर नमी की मात्रा के बहाने किसानों को ठगने का काम कर रहे हैं. मैं किसानों से आग्रह करता हूं कि वे "कच्ची पर्ची" में दिखाई गई राशि और उनके खातों में भेजी गई राशि के बीच के अंतर को वापस न करें.
उन्होंने आगे बताया कि शुक्रवार को उन्हें बलदी गांव के अमन मेहला नाम के एक किसान की धान खरीद करवाने के लिए प्रदर्शन करना पड़ा, जिसकी फसल में 17.4 प्रतिशत नमी थी. मिल मालिक ने शुरुआत में ज़्यादा नमी का हवाला देकर धान खरीदने से इनकार कर दिया और सिर्फ़ 2,200 रुपये प्रति क्विंटल की दर से ख़रीदार को चेतावनी दी कि शाम तक कोई खरीदार नहीं आएगा.
अमन मेहला ने बताया कि मैंने अपनी फसल एमएसपी से कम पर बेचने से इनकार कर दिया और नमी की मात्रा की आधिकारिक जांच करवाने के लिए मार्केट कमेटी के दफ्तर गया. मैं यह देखकर हैरान रह गया कि वास्तव में नमी 17.4 प्रतिशत थी, फिर भी उन्होंने मुझे 2,200 रुपये प्रति क्विंटल की पेशकश की. जब बीकेयू सदस्यों ने विरोध किया तब जाकर मेरी फसल एमएसपी पर खरीदी गई.
बीकेयू (चढूनी) के इंद्री ब्लॉक अध्यक्ष मंजीत चौगामा ने कहा कि किसानों को एमएसपी से वंचित करने के लिए धान में नमी की मात्रा जानबूझकर गलत बताई जा रही है. उन्होंने आरोप लगाया कि अनाज मंडियां “लूट के अड्डे” बन गई हैं, जहां व्यापारी और खरीद एजेंसियां सरकार द्वारा घोषित दरों से कहीं कम मनमाने दाम दे रही हैं.
उन्होंने कहा कि कई किसानों ने शिकायत की है कि उन्हें निजी मिल मालिकों और खरीद एजेंसियों द्वारा तय की गई दरों पर अपनी उपज बेचने के लिए मजबूर किया जा रहा है. उन्हें "कच्ची पर्ची" दी जाती है, जिसमें किसानों को एमएसपी से कम धान की कीमत दिखाई जाती है, जबकि उन्हें दी जाने वाली वास्तविक राशि एमएसपी पर ही होती है. ज्यादातर किसानों के साथ ऐसा हुआ है, लेकिन वे आढ़तियों से टकराव के डर से खुलकर बताना नहीं चाहते. हमारी मांग है कि सरकार एमएसपी पर ही धान की खरीद करे.
एक अन्य किसान नेता अमृतपाल बुग्गा ने आरोप लगाया कि नमी के कारण की गई कटौती अनुचित है, क्योंकि किसान पहले से ही भारी बारिश, बौने रोग और कम पैदावार के कारण तनाव में हैं. उन्होंने कहा कि मैं मानता हूं कि नमी है और चावल मिल मालिकों को खरीद एजेंसियों से कटौती का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन किसानों पर लगाई गई कटौती मिल मालिकों को मिलने वाली कटौती से कहीं ज़्यादा है. वास्तव में कोई धान एमएसपी पर नहीं खरीदा जा रहा है. हालांकि, भुगतान रिकॉर्ड में ऐसा ही दिखाई देता है. अब, आढ़तियों द्वारा किसानों से अतिरिक्त राशि वापस करने के लिए कहा जा रहा है, जो ठीक नहीं है.
जवाब में उपायुक्त उत्तम सिंह ने कहा कि एमएसपी भुगतान में हेराफेरी करने वाले किसी भी व्यक्ति के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी. किसानों के भरोसे से कभी समझौता नहीं किया जाना चाहिए. खरीद में पारदर्शिता और निष्पक्षता हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता है. उन्होंने ऐसे किसानों से अपील की कि वे अपनी फसल के लिए एमएसपी से कम भुगतान की सूचना देने के लिए आगे आएं.