Maize farming: मोमी मक्का के खास गुणों के कारण दुनिया में बढ़ी इसकी मांग, आप भी कर सकते हैं खेती

Maize farming: मोमी मक्का के खास गुणों के कारण दुनिया में बढ़ी इसकी मांग, आप भी कर सकते हैं खेती

मोमी मक्का, जिसे वैक्सी कॉर्न भी कहा जाता है, एक बहुउपयोगी और अहम फसल है, जिसकी वैश्विक मांग में लगातार वृद्धि हो रही है. इसके खास गुण और औद्योगिक उपयोग के कारण यह खास फसल बनती जा रही है .भारत में मोमी मक्का की खेती की अपार संभावनाएं हैं और इसके लिए अनुसंधान, विकास और किसानों के प्रशिक्षण पर जोर देने की जरूरत है. अगर सही दिशा में प्रयास किए जाएं, तो यह फसल भारतीय कृषि और खाद्य उद्योग के लिए अहम योगदान दे सकती है.

मोमी मक्का की बढ़ती वैश्विक मांगमोमी मक्का की बढ़ती वैश्विक मांग
जेपी स‍िंह
  • New Delhi,
  • Jul 22, 2024,
  • Updated Jul 22, 2024, 2:00 PM IST

मक्का (मकई) एक अहम  खाद्य और आर्थिक फसल है, जिसके कई प्रकार हैं. जैसे डेंट कॉर्न, फ्लिंट कॉर्न, स्वीट कॉर्न, बेबी कॉर्न आदि. इन सबके बीच एक वैक्सी कॉर्न है, जिसे मोमी मक्का भी कहा जाता है. भारत में इसकी खेती अभी नहीं के बराबर है, लेकिन इसके लाभों को देखते हुए इसकी खेती के लिए अनुसंधान पर जोर देने की जरूरत है. मोमी मक्का सबसे पहले 1909 में चीन में खोजा गया था लेकिन इसका उपयोग बड़े पैमाने पर अमेरिका में किया जाता है. इसका दाना मोम जैसा दिखता है और इसमें 100 परसेंट एमिलोपेक्टिन स्टार्च होता है. मोमी मक्का मुख्य रूप से भोजन और औद्योगिक उद्देश्यों के लिए उपयोग किया जाता है. इस मक्के में तेजी से पाचन के गुण होने के कारण ग्लोबल मार्केट में इसकी मांग बढ़ती जा रही है.

मोमी मक्का का ग्लोबल बाजार में दायरा

इस मक्का की खासियत यह है कि इसमें 100 फीसदी एमिलोपेक्टिन स्टार्च होता है, जबकि सामान्य मक्का में 70 फीसकी एमिलोपेक्टिन और 30 फीसगी एमिलोज स्टार्च होता है. मोमी मक्का को 1909 में एशिया से संयुक्त राज्य अमेरिका लाया गया था और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, जब कसावा (टैपिओका) स्टार्च की आपूर्ति बंद हो गई, तब मोमी मक्का को स्टार्च के एक उपयुक्त विकल्प के रूप में अपनाया गया था. अभी अमेरिका में इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है. साल  2019 में मोमी मक्का के स्टार्च ग्लोबल बाजार का आकार 3.48 अरब अमेरिकी डॉलर था और 2023 में यह 3.68 अरब डॉलर हो गया है. अनुमान है कि 2031 तक यह 6.12 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा. इसका उपयोग फार्मास्युटिकल, टेक्सटाइल और खाद्य उद्योग में बढ़ता जा रहा है. 

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मोमी मक्के के उपयोग और फायदे

मोमी मक्का मुख्य रूप से भोजन और औद्योगिक उद्देश्यों के लिए उपयोग किया जाता है. इसमें चिपचिपाहट, तेजी से पाचन और अच्छा प्रकाश संश्वेषण का गुण होता है, जिससे यह भोजन में सुपाच्य और ऊर्जा प्रदान करने वाला होता है. सामान्य मक्का के स्टार्च की तुलना में मोमी मक्का का स्टार्च अधिक सुपाच्य होता है. सामान्य मक्का की तुलना में इसमें एमिलोज की मात्रा बहुत कम होती है, जिससे यह अधिक सुपाच्य होता है.

मोमी मक्का का उपयोग भोजन और औद्योगिक उद्देश्यों के लिए किया जाता है. मोमी मक्का स्टार्च का उपयोग सॉस को गाढ़ा करने, गोंद को आकार देने, घटकों को एक साथ बांधने आदि के लिए किया जाता है. यह ब्रेड बनाने में इमल्सीफायर के विकल्प के रूप में भी काम आता है. भारत में पेट्रोलियम आधारित ईंधन की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए बायो-इथेनॉल उत्पादन पर जोर दिया जा रहा है. मोमी मक्का जैव इथेनॉल उत्पादन के क्षेत्र में अहम भूमिका निभा सकता है. सामान्य मक्का की तुलना में मोमी मक्का में स्टार्च-इथेनॉल रूपांतरण की दक्षता अधिक होती है.

भारत में इसकी खेती की संभावनाएं

मोमी मक्का के उपयोग से न केवल ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोत के रूप में लाभ मिलता है, बल्कि यह खाद्य उद्योग में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. लुधियाना के मक्का अनुसंधान केंद्र के कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, भारत में मोमी मक्का सुधार कार्यक्रम अभी प्रारंभिक अवस्था में है. भारतीय जलवायु के लिए मोमी मक्का की उन्नत किस्में तैयार करने की संभावना है. मक्का अनुसंधान केंद्र लुधियाना के कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, मोमी मक्का और गैर-मोमी मक्का के क्रॉस करके भारतीय जलवायु के लिए उपयुक्त किस्में विकसित की जा सकती हैं जिससे यह मक्का प्रजनन में कुशलतापूर्वक और प्रभावी ढंग से उपयोग हो सके.

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अनुसंधान और सुधार कार्यक्रमों के माध्यम से इसे व्यावसायिक रूप से सफल बनाया जा सकता है. इसके आर्थिक, पोषण और औद्योगिक महत्व को देखते हुए, मोमी मक्का की खेती को प्रोत्साहन देने की जरूरत है. विशेषज्ञों के मुताविक, मोमी मक्का एक बहुउपयोगी फसल है, जिसका आर्थिक, पोषण और औद्योगिक महत्व अत्यधिक है. इसके उपयोग से किसानों की आय में वृद्धि हो सकती है और खाद्य उद्योग, ब्रेड निर्माण, और बायो-इथेनॉल उत्पादन में भी इसका व्यापक रूप से उपयोग हो सकता है. इसके लिए अनुसंधान और सुधार कार्यक्रमों पर जोर देने की जरूरत है, ताकि भारतीय जलवायु के लिए उपयुक्त किस्में विकसित की जा सकें.


 

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