बिहार की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि है. समय के साथ राज्य की कृषि व्यवस्था में काफी बदलाव आए हैं. पहले जहां किसान पारंपरिक खेती पर निर्भर थे, वहीं अब वे पारंपरिक खेती के साथ-साथ विदेशी नकदी और उद्यानिक फसलों की ओर भी बढ़ रहे हैं. हाल के दिनों में राज्य में ड्रैगन फ्रूट की खेती बड़े पैमाने पर की जा रही है. इसे बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार ने ड्रैगन फ्रूट विकास योजना की शुरुआत की है. इस योजना के तहत दो वर्षों के लिए कुल 126.90 लाख रुपये की राशि स्वीकृत की गई है.
बिहार के उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा ने कहा कि राज्य सरकार ने वर्ष 2027 तक ड्रैगन फ्रूट की खेती को बढ़ावा देने के लिए 1 करोड़ 26 लाख 90 हजार रुपये की राशि स्वीकृत की है. इसके तहत वर्ष 2025-26 के लिए लगभग 76.14 लाख रुपये की राशि निर्गत कर खर्च की अनुमति दी गई है. हाल के समय में यह योजना राज्य के 23 जिलों में लागू की गई है. विशेष रूप से यह योजना लघु और सीमांत किसानों को ध्यान में रखकर तैयार की गई है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ किया जा सके.
कृषि मंत्री सिन्हा ने आगे बताया कि इस योजना का उद्देश्य राज्य में ड्रैगन फ्रूट की खेती को बढ़ावा देना, इसके उत्पादन क्षेत्र का विस्तार करना और किसानों की आय में निरंतर वृद्धि सुनिश्चित करना है.
कृषि मंत्री विजय कुमार सिन्हा ने बताया कि ड्रैगन फ्रूट विकास योजना के तहत किसानों को न्यूनतम 0.1 हेक्टेयर से लेकर अधिकतम 2.0 हेक्टेयर तक की खेती के लिए अनुदान दिया जाएगा. उन्होंने बताया कि एकीकृत बागवानी विकास मिशन (MIDH) के दिशा-निर्देशों के अनुसार 20x20 मीटर की दूरी पर प्रति हेक्टेयर 5000 पौधों की रोपाई की जाएगी. इसकी कुल इकाई लागत 6.75 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर निर्धारित की गई है, जिस पर 40 प्रतिशत यानी 2.70 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर अनुदान दिया जाएगा. यह अनुदान दो किस्तों में 60:40 के अनुपात में वितरित किया जाएगा. पहली किस्त के रूप में 1.62 लाख रुपये और दूसरी किस्त के रूप में 1.08 लाख रुपये किसानों को दिए जाएंगे.
बिहार सरकार द्वारा ड्रैगन फ्रूट की खेती को बढ़ावा देने के लिए चयन प्रक्रिया ऑनलाइन लॉटरी प्रणाली के माध्यम से की जाएगी. वहीं, कैमूर जिले के ड्रैगन फ्रूट की खेती करने वाले किसान अजय सिंह का कहना है कि सरकार द्वारा दिया जा रहा अनुदान सराहनीय पहल है. हालांकि, उनका यह भी कहना है कि अनुदान की राशि में वृद्धि की जरूरत है, क्योंकि वर्तमान लागत की तुलना में मिलने वाली राशि कम पड़ रही है. इसके अलावा, हर जिले के लिए सीमित क्षेत्रफल निर्धारित किया गया है, जिससे सभी इच्छुक किसानों को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है.