आपने कई बार सुना और महसूस भी किया होगा कि देश के राज्यों में पानी का संकट गहराता जा रहा है. यहां तक कि गर्मी के बीच देश की राजधानी दिल्ली के कुछ इलाकों में पानी की भारी किल्लत ने भीषण गर्मी के बीच शहर के लोगों की दिक्कतें बढ़ा दी हैं. यमुना में जलस्तर के कम होने से दिक्कतें और भी ज्यादा बढ़ सकती हैं. इस बीच देश के बड़े जलाशयों और नदियों में पानी का स्तर धीरे-धीरे घटता जा रहा है. गर्मी बढ़ने से पानी का संकट और बढ़ने की आशंका है. दरअसल, देश के कई हिस्सों में गर्मी बढ़ने के साथ ही पानी की खपत तेजी से बढ़ती जा रही है और इसके साथ ही पानी का संकट भी बढ़ रहा है.
एनडीटीवी की एक रिपोर्ट के अनुसार, 12 अप्रैल, 2024 को जारी की गई सेंट्रल वाटर कमीशन की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, देश के 150 बड़े जलाशयों में पानी का स्टोरेज लेवल घटकर उनकी कुल क्षमता का 33 फीसदी रह गया है. रिपोर्ट के अनुसार, पिछले साल के मुकाबले 12 अप्रैल, 2024 तक 150 बड़े जलाशयों में वाटर स्टोरेज लेवल 17 फीसदी कम है और पिछले दस साल के औसत से 5 फीसदी कम है. दक्षिण भारत के 42 बड़े जलाशयों में पानी का स्टोरेज लेवल घटकर 18 फीसदी तक पहुंच गया है. पिछले साल 12 अप्रैल को इन 42 बड़े जलाशयों में पानी का स्टोरेज लेवल 32 फीसदी था और पिछले दस साल के औसत से 8 फीसदी कम है. 'जल है तो जीवन है'. सामान्य तौर पर सुनने या महसूस करने के बाद भी, हम जल्द ही इस तथ्य को भुला कर, अपनी आम दिनचर्या में फिर से मशगूल हो जाते हैं. मीठे जल या पीने योग्य पानी के प्रति इसी लापरवाह रवैये ने धीरे-धीरे जल संकट की ऐसी भयावह स्थिति ला दी है कि आज दुनिया के डेढ़ अरब लोगों को पीने का शुद्ध पानी नहीं मिल पा रहा है.
अगर हम अपने देश की बात करें, तो एक तरफ दिल्ली, मुंबई जैसे महानगर हैं, जहां पानी की किल्लत तो है, लेकिन फिर भी पानी की समस्या उतनी विकराल नहीं है. जबकि देश के कुछ राज्य ऐसे हैं, जहां आज भी ना जाने कितने लोग साफ़ पानी की कमी के चलते या दूषित पानी से दम तोड़ रहे हैं. नदियां सिकुड़ती जा रही हैं, ताल -तलैया सूखते जा रहे हैं. राजस्थान,महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, ओडिशा जैसे राज्यों में समस्या गंभीर है. जैसलमेर और अन्य रेगिस्तानी इलाकों में तो पानी आदमी की जान से भी ज़्यादा क़ीमती है.
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विदर्भ और बुंदेलखंड में पानी की समस्या ने लोगों के जीवन को नरक बना रखा है. पीने का पानी इन इलाकों में बहुत मुश्किल से मिल पाता है. देश के कई इलाक़ों में महिलाएं, बच्चियां कई किलोमीटर दूर से पानी लाने को मजबूर हैं. उनके पूरे जीवन का एक अहम हिस्सा पानी की जद्दोजहद में ही बीत जाता है. पानी के लिए हिंसक झड़पों के वाक्ये बढ़ते जा रहे हैं. पिछले 50 सालों में पानी के लिए दर्जनों भीषण हत्याकांड हुए हैं. ज़ाहिर है, जानकार ये बात यूं हीं नहीं कहते कि अगर तीसरा विश्व युद्ध हुआ तो वो पानी के कारण ही होगा. ऐसा क्यों है ये जानने के लिए, आपको जल की उपलब्धता में लगातार आ रही कमी के बारे में समझना होगा.
स्वच्छ पीने लायक पानी हमारे लिए जीवन है, लेकिन इसकी उपलब्धता इतनी कम है कि जानकर आप हैरान रह जाएंगे. दरअसल धरती पर लगभग 1 अरब 40 करोड़ घन किलो लीटर पानी उपलब्ध है. लेकिन इनमें से साढ़े 97 प्रतिशत पानी समुद्र में है, जो खारा है, बाकि डेढ़ प्रतिशत पानी बर्फ़ के रूप में ध्रुवीय प्रदेशों में है. इसमें से बचा महज एक प्रतिशत पानी ही नदी, तालाब, झरनों, झीलों और कुओं में है जो पीने के लायक है. अब सोचिए खेती से लेकर हमारे पीने और दैनिक उपयोग तक के हर काम के लिए मात्र यही मीठा पानी उपलब्ध है. इस 1 प्रतिशत पानी का 80वां हिस्सा खेती और उद्योग कारखानों में खपत हो जाता है. बाकी का 20वां हिस्सा हम पीने, भोजन बनाने, नहाने, कपड़े धोने और साफ़-सफ़ाई में खर्च करते हैं. लेकिन प्रति व्यक्ति इस जल की उपलब्धता लगातार घट रही है.
इसे आंकड़े से आप ऐसे समझ सकते हैं कि 1951 में जहां एक व्यक्ति के लिए जल की उपलब्धता 5000 क्यूबिक घनलीटर से ज्यादा थी, वो 2001 तक घटकर महज 1,816 रह गई. आगे 2011 में ये और घटी और 1545 क्यूबिक घनलीटर तक कम हो गई. साल 2021 के लिए औसत वार्षिक प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता क्रमशः 1486 क्यूबिक मीटर और और 2031 के लिए 1367 क्यूबिक मीटर आंकी गई है. 1700 क्यूबिक मीटर से कम की वार्षिक प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता को जल संकट की स्थिति माना जाता है, जबकि 1000 क्यूबिक मीटर से कम की वार्षिक प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता को जल की कमी की स्थिति माना जाता है.
अगर हालात यही रहे तो आंकड़ों का अनुमान ये कहता है कि सन 2050 तक हर व्यक्ति को अभी मिल पा रहे जल का महज 6 प्रतिशत हिस्सा ही मिल पाएगा. और मीठे पानी की उपलब्धता इतनी कम हो जाने का मतलब है कि पीने के पानी से लेकर दूसरे दैनिक उपयोग तक के लिए इसकी भारी कमी होगी. ऐसे में भला खेतों की सिंचाई कैसे हो पाएगी और उसके अभाव में उपज कैसे होगी?
प्रकृति के आधार पर जल का समाधान सिर्फ़ एक उदाहरण भर से बिल्कुल साफ़ समझा जा सकता है. जैसे इज़राइल में औसतन मात्र 10 सेंटी-मीटर वर्षा होती है और इसी से वो इतना अनाज पैदा कर लेता है कि वह उसका निर्यात कर सकता है. दूसरी ओर भारत में औसतन 50 सेंटी मीटर से भी अधिक वर्षा होने के बावजूद, अनाज की कमी बनी रहती है. भू-जल स्तर का तेजी से गिरना, आज देश के सामने एक बड़ी चुनौती है. देश में लगभग 70 प्रतिशत सिंचाई और पीने का पानी भूजल पर निर्भर है. अगर इसी तरह से भूमिगत जल का बेतहाशा इस्तेमाल होता रहा तो भविष्य में ग्राउंड वाटर का स्तर इतना नीचे चला जाएगा कि इसे उपयोग में लाना असंभव होगा. अगर बारिश के जल की उपलब्धता का आकलन करें तो प्रति वर्ष औसतन 100 दिनों में 800 से 1000 मिमी पानी केवल 15 से 20 दिन में प्राप्त होता है. लेकिन अधिकांश पानी नदियों से होता हुआ समुद्र में चला जाता है जिसका कोई उपयोग नहीं हो पाता.
मीठे जल का 80 प्रतिशत से ज्यादा इस्तेमाल खेती में होता है. इसे आप ऐसे समझ सकते हैं कि 1 लीटर गाय का दूध प्राप्त करने के लिए 800 लीटर पानी खर्च करना पड़ता है, एक किलो गेहूं उपजाने के लिए 1 हजार लीटर और एक किलो चावल की उपज में 4 से 5 हजार लीटर पानी की जरूरत होती है. ज़ाहिर जल संरक्षण में किसानों की भूमिका काफी अहम हो जाती है. जहां आज भी भरपूर पानी उपलब्ध है, वहां के किसानों को उनके बारे में सोचना चाहिए, जहां सिंचाई के लिए काफी जद्दोजहद करनी पड़ती है. ग्राउंड वाटर हर साल लगभग 1.30 मीटर तक नीचे जा रहा है, लेकिन सिंचाई के नाम पर खेतों में इस तरह बेतहाशा पानी बहाया जा रहा है, जिससे पानी बर्बाद हो रहा है. यहां तक कि खेत की मिट्टी यानी मृदा के पोषक तत्व, पौधों को मिलने के बजाए बेवजह धरती में नीचे समा रहे हैं, और ये सब तब हो रहा है, जबकि कई पौधों को इतनी ज्यादा सिंचाई की ज़रूरत भी नहीं होती. लेकिन अपने देश में हम आज भी परंपरागत सिंचाई के तरीक़ों पर ही ज्यादा निर्भर हैं.
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अगर बचे हुए पानी का भी किसान ऐसे ही दोहन करते रहें, तो वो दिन दूर नहीं, जब किसान सिंचाई के अभाव में, अपने खेत को बंजर होते देखेंगे. ये चिंता यूं ही नहीं है. पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई ज़िले, जहां कभी हरियाली लोगों का मन मोह लेती थी. आज डार्क ज़ोन की श्रेणी में शामिल हो चुके हैं, जहां धरती से पानी निकालना मुश्किल है. और इसीलिए सिंचाई के ऐसे आधुनिक तरीक़ों पर अब ज्यादा ज़ोर दिया जा रहा है, जिनसे पानी की हर बूंद से आप ज्यादा से ज्यादा पैदावार ले पाएं.