पराली जलाने से उठने वाले धुएं को लेकर सुप्रीम कोर्ट सख्त है. मसलन, सुप्रीम कोर्ट ने पराली के धुएं से दिल्ली एनसीआर में हो रहे प्रदूषण को लेकर सख्ती दिखाई है. इसमें सुप्रीम कोर्ट ने पराली जला रहे किसानों को दंड देने का सुझाव दिया है, जिसके तहत सुप्रीम कोर्ट ने पराली जलाने वाले किसानों को फार्म सब्सिडी ना देने के साथ ही उनकी जमीन एक साल के लिए छीन लेने जैसे दंड देने की बात कही है.
सुप्रीम कोर्ट की इस सजा पर अगर अमल किया जाए तो पंजाब के 70 फीसदी से अधिक किसान दंड के पात्र होंगे, लेकिन सवाल ये है कि जिन किसानों ने इस भूख देश को अन्न भंडार में बदल दिया, उन किसानों की जमीन एक साल के लिए कुर्क करने की बात देश के शीर्ष अदालत में क्यों हुई. ये किसकी असफलता है.
पराली जलाने वाले किसानों के लिए सुप्रीम कोर्ट ने जिस तरह की सजा का सुझाव दिया है. क्या वह दर्दनाक नहीं है. साथ ही कई मायनों में बेहद ही शर्मनाक है. ये तो किसानों को पटक-पटक कर मारने की बात हो गई. सच में ये तो सूरज से रोशनी छीनने की बात हो गई है. किसानों से अगर जमीन ही छीन ली जाएगी तो वह खेती कैसे करेंगे, कैसे वह देश के नागरिकों का पेट भरेगा और कैसे अपने परिवार की जिम्मेदारी उठाएंगे.
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इन हालातों में तो किसान खेती छोड़ देंगे और ये तब होगा, जब देश में खेती छोड़ गांव से पलायन करने वाले लोगों की संख्या अपने पीक पर है.
पहले तो ये आत्मसात करना होगा कि पराली की समस्या हरित क्रांति का एक बड़ा साइड इफेक्ट है, जो बीते 5 से 6 दशकों में धीरे धीरे विकराल बनी है. तो वहीं ये भी आत्मसात करना होगा कि 5 दशक में धीरे-धीरे जन्मी पराली समस्या जो मौजूदा वक्त में अपने विकराल रूप दिखा रही है, उसका समाधान 5 साल में संभव नहीं है.
ऐसे में जरूरी है कि जिस गर्मजोशी से राजनीतिक दलों, नौकरशाहों, राज्य सरकारों और वैज्ञानिकों ने हरित क्रांति का श्रेय लिया था, वह पराली समस्या के समाधान के लिए भी आगे आए.
वहीं ये भी जरूरी है कि किसानों को इस मामले में शतरंज की बिसात का मोहरा ना बना जाएं. क्योंकि कृषि वैज्ञानिकों, सरकारों और नौकरशाहों ने कहने पर भी किसानों ने हरित क्रांति को सफल बनाया है, जिसका साइड इफेक्ट पराली है.
बेशक पराली से उठने वाला धुआं प्रदूषण का एक कारण है, लेकिन ये भी समझना होगा कि पराली जलाना किसानों की मजबूरी है. इसे इस साल के उदाहरण से पहले समझते हैं. इस साल जुलाई में आई बाढ़ ने पंजाब में अपना कहर बरपाया था.
ऐसे में किसानों की खड़ी धान की फसल खेत में ही बर्बाद हो गई थी. किसान चाहते थे कि वह दोबारा रोपाई ना करें और सरकार उनके लिए मुआवजे का ऐलान करे, जिससे उनका नुकसान कम हो सके, लेकिन पंजाब सरकार चाहती थी कि किसान दोबारा खेत में रोपाई करें, इसके लिए पंजाब सरकार ने किसानों को इंसेटिव देने की बात भी कहीं थी.
इसके बाद कई किसानों ने दाेबारा धान की रोपाई की, जिनकी फसल पक कर देर में तैयार हुई. मसलन, ऐसे किसानों के पास गेहूं की बुवाई के लिए खेत तैयार करने को कम समय है.
एक तो वैसे ही Punjab Preservation of Subsoil Water Act, 2009 के चलते पंजाब में धान की खेती जून 20 के बाद शुरू होती है. तो वहीं इस बार जुलाई 20 के बाद शुरू हुई. इस वजह से किसानों के पास खेत तैयार करने को बेहद ही कम वक्त है.
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दूसरी तरफ जलवायु परिवर्तन की चुनौती किसानों को परेशान कर रही है. 2022 में मार्च में गर्मी ने गेहूं की खड़ी फसल को नुकसान पहुंचाया था, तो वहीं 2023 में बैमाैसम बारिश ने खड़ी फसल गिरा दी थी. ऐसे में किसान समय पर गेहूं की बुवाई नहीं करेंगे तो नुकसान तय है. वहीं अगर किसान पराली को मैनेज करते हैं, जिसमें समय लगना तय है और इन हालातों में गेहूं की बुवाई पिछड़नी तय है.
पराली पर सुप्रीम कोर्ट, जिस तरीके से किसानों को दंडित करने की बात कर रह है, वह एक तरह से पंजाब की भगवंत मान सरकार की असफलता भी है. असल में पंजाब में भगवंत मान सरकार पराली मैनेजमेंट में असफल साबित हुई.
इसे इस साल के पराली जलाने के आंकड़ों से समझने की कोशिश करते हैं. 7 नवंबर तक पराली जलाने की कुल 22,644 घटनाएं दर्ज की गईं, जिनमें से 20978 (93 प्रतिशत) पंजाब में और 1605 (7 प्रतिशत) घटनाएं हरियाणा में हुईं, जबकि एक से दो साल पहले तक दोनों की राज्य पराली जलाने के मामले में अव्वल थे, लेकिन हरियाणा पराली मैनेजमेंट का मॉडल स्थापित करने में सफल रहा.
पराली मैनेजमेंट के लिए हरियाणा सरकार राज्य के किसानों को 1000 रुपये एकड़ के हिसाब से इंसेटिव दे रही है. तो वहीं खट्टर सरकार पराली मैनेजमेंट की मशीनें किसानों को उपलब्ध कराने में सफल रही है.
वहीं मान सरकार की तरफ से पराली मैनेजमेंट के लिए किसानों को कोई इंसेटिव नहीं दिया जाता है. हालांकि सीएम भगवंत मान ने खरीफ सीजन के आखिर में इस संबंध का एक प्रस्ताव केंद्र को दिया था, जिसमें इंसेटिव के तौर पर पंजाब, दिल्ली और केंद्र सरकार से हिस्सेदारी मांगी गई थी, लेकिन सवाल ये है कि अगर केंद्र ने प्रस्ताव को ठुकरा दिया तो पंजाब सरकार खुद के फंड से राज्य के किसानों को इंसेटिव नहीं दे सकती थी.
वहीं पंजाब सरकार दावा कर रही है कि राज्य में पराली मैनेजमेंट के लिए सवा लाख से अधिक मशीनें उपलब्ध कराई गई हैं, लेकिन दावा के इतर मशीनों की कमी किसी से छिपी नहीं है.
पराली एक दिन की समस्या नहीं है. अकेले ही पंजाब में 30 लाख हेक्टेयर से अधिक में धान बोया जाता है. ऐसे में इतने बड़े भूभाग में पराली मैनेजमेंट करना एक बड़ी चुनौती है. वहीं इस मामले में किसानों को जिस तरीके से लगातार दोषी ठहराने की कोशिशें की जा रही हैं वह भी बर्दाश्त से बाहर है.
ऐसे में जरूरी है कि पराली मैनेजमेंट पर गंभीरता से विचार हो. किसान तक ये ही समझता है कि पहले पराली की समस्या को जड़ से समझा जाए, फिर किसान की मजबूरियों पर विचार किया जाए. इसके बाद पराली मैनेजमेंट के लिए नीतियां तैयार की जाएं.