
आज से लगभग दो महीने पहले तक, अरावली की पहाड़ियां, जो कई राज्यों से होकर गुजरती है, शायद आम जनता का ज़्यादा ध्यान आकर्षित नहीं करती थी. लेकिन हाल ही में कुछ ऐसा हुआ जिसने सभी का ध्यान अरावली की ओर खींचा. इतना ही नहीं, लोग अरावली को बचाने के लिए सड़कों पर भी उतर आए. अब आप सोच रहे होंगे कि इंसानों को अरावली को बचाने की ज़रूरत क्यों पड़ी, जिस पहाड़ी ने अब तक इंसानों की रक्षा की है. हम इस रिपोर्ट में अरावली की मौजूदा स्थिति और बाकी सभी चीज़ों के बारे में आपको बताएंगे. सबसे पहले बात करते हैं की सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से क्या पूछा और किन चीजों की मांग की.
चीफ जस्टिस की बेंच ने कहा कि नवंबर 2025 के फैसले की कई बातें गलत समझी जा रही हैं, इसलिए मामले में स्पष्टता जरूरी है. कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब मांगा और प्रस्ताव रखा कि एक हाई-पावर्ड एक्सपर्ट कमेटी बनाई जाए. इस कमेटी में पर्यावरण, भूविज्ञान और इकोलॉजी जैसे डोमेन एक्सपर्ट शामिल होंगे, ताकि फैसले को वैज्ञानिक और पारदर्शी आधार पर आगे बढ़ाया जा सके.
कोर्ट ने कई अहम सवाल उठाए हैं, जो इस फैसले की प्रभावशीलता और अरावली संरक्षण पर असर को लेकर महत्वपूर्ण हैं. बेंच ने यह स्पष्ट किया कि 500 मीटर की दूरी वाली नई परिभाषा से संरक्षण क्षेत्र कम तो नहीं होगा और कहीं ऐसा स्ट्रक्चरल पैराडॉक्स तो नहीं बन जाएगा. साथ ही यह भी सवाल उठाया गया कि क्या इससे गैर-अरावली क्षेत्रों का विस्तार होगा, जहां नियंत्रित खनन की अनुमति मिल सकती है. अगर दो 100 मीटर ऊंची हिल्स के बीच 700 मीटर या उससे ज्यादा गैप है, तो क्या बीच की जमीन में खनन की अनुमति दी जाएगी, यह भी जांच का विषय है. इसके अलावा अरावली की इकोलॉजिकल कंटिन्यूटी यानी पारिस्थितिक जुड़ाव को कैसे सुरक्षित रखा जाएगा, इस पर भी ध्यान देने की जरूरत है.
कोर्ट ने कहा कि अगर कोई बड़ा नियामक कमी पाई जाती है, तो रेंज की संरचनात्मक अखंडता को बचाने के लिए बड़ा मूल्यांकन जरूरी होगा. मीडिया में फैली आलोचना कि 11 हजार से ज्यादा पहाड़ियां खनन के लिए खुल जाएंगी, क्या सही है, इस पर भी पूरी वैज्ञानिक मैपिंग और जांच आवश्यक है. कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि खनन का कोई भी प्लान लागू करने से पहले निष्पक्ष और स्वतंत्र जांच अनिवार्य होगी. इसके लिए के. परमेश्वर को अमिकस क्यूरी नियुक्त किया गया है.
मामले की अगली सुनवाई 21 जनवरी 2026 को निर्धारित की गई है, जिसमें सभी सवालों और प्रस्तावित कदमों पर निर्णय लिया जाएगा.
अरावली पहाड़ियों की सुरक्षा पर एक बार फिर से बहस गरम हो गई है. सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में स्पष्ट किया कि अरावली क्षेत्र में 100 मीटर से कम ऊँचाई वाली पहाड़ियों को जंगल की श्रेणी में नहीं माना जाएगा. यानी, जो पहाड़ 100 मीटर से कम ऊँचे हैं, वे अरावली दायरे में शामिल नहीं होंगे. इस फैसले के बाद पर्यावरण विशेषज्ञों और कार्यकर्ताओं ने इसका विरोध शुरू कर दिया है. सोशल मीडिया पर युवा ‘सेव अरावली’ अभियान चला रहे हैं.
फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में लगभग 10 हजार पहाड़ियों को अरावली का हिस्सा माना गया था और उनके खनन पर रोक लगाने की सिफारिश की गई थी. इसके विरोध में राजस्थान सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची और कहा कि ऐसा होने पर राज्य में अधिकांश खनन गतिविधियां ठप हो जाएंगी. दलीलों को सुनने के बाद कोर्ट ने कहा कि इस मामले पर नया कानून बनाना जरूरी है. तब तक अरावली की सुरक्षा के लिए पुरानी व्यवस्था लागू रहेगी.
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