
भारत और अमेरिका के बीच एक बार फिर ट्रेड एग्रीमेंट या जिसे बाइलैटरल ट्रेड एग्रीमेंट (बीटीए) के तौर पर भी जाना जा रहा है, चर्चा में है. पिछले दिनों ऐसी खबरें आई कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि उनकी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बातचीत मुख्य तौर पर व्यापार को लेकर हुई. उन्होंने कहा कि पीएम मोदी ने उन्हें भरोसा दिलासा है कि भारत रूस से तेल की खरीद सीमित करेगा. इसके साथ ही सूत्रों के हवाले से यहां तक कहा किया भारत, अमेरिका से नॉन-जीएम मक्का के आयात की भी मंजूरी दे सकता है. लेकिन अमेरिका जहां पर 90 से 95 फीसदी तक मक्का जीएम फसल के तौर पर उगता है, वहां से मक्का आयात की खबरों ने किसानों को परेशान कर दिया. आखिर क्यों ट्रंप चाहते हैं कि भारत, अमेरिका से मक्का और सोयाबीन खरीदे, अब इसकी वजह भी सामने आ गई है.
भारत और अमेरिकी के बीच ट्रेड वार्ता में मक्का और सोयाबीन का जिक्र खास तौर पर हो रहा है. अमेरिका इन दोनों खेती के प्रोडक्ट्स को भारत को बेचने के लिए उत्सुक है. भारत इथेनॉल प्रोडक्शन बढ़ाने के लिए तेजी से मक्का की तरफ मुड़ रहा है, लेकिन उसके नियम आयातित अनाज से बने इथेनॉल पर रोक लगाते हैं और जेनेटिकली मॉडिफाइड (GM) फूड फसलों की एंट्री भी बैन है. अमेरिका भारत पर मक्का इंपोर्ट की इजाजत देने के लिए दबाव डाल रहा है. उसका तर्क है कि अमेरिकी मक्का से बने इथेनॉल का इस्तेमाल सिर्फ गैसोलीन के साथ मिलाने के लिए किया जाएगा और यह भारतीय खेती में नहीं आएगा.
वॉशिंगटन और बीजिंग की तरफ से लगाए गए एक जैसे टैरिफ ने चीन में खरीदारों के लिए अमेरिकी सोयाबीन को बहुत महंगा बना दिया है, जो लंबे समय से दुनिया का सबसे बड़ा सोयाबीन इम्पोर्टर रहा है. सरप्लस स्टॉक से जूझ रहे अमेरिकी सोयाबीन किसानों की मदद करने के लिए, वाशिंगटन भारत को तिलहन बेचने के लिए उत्सुक है. ट्रंप एडमिनिस्ट्रेशन भारत पर अमेरिकन सोयामील खरीदने के लिए भी दबाव डाल रहा है, जो प्रोटीन से भरपूर जानवरों का चारा है.
ट्रंप के प्रशासन ने कुछ दिनों पहले दावा किया था कि इस बार अमेरिका के इतिहास की अब तक की सबसे बड़ी मक्के का उत्पादन होगा यानी इतनी ज्यादा उपज जिसने पिछले कई वर्षों से मक्के के दामों को निचले स्तर पर बनाए रखा है. लेकिन सैटेलाइट और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के जमाने में हाथ से मक्के की बालियों को मापना शायद पुरानी बात लगे. फिर भी, प्रो फार्मर क्रॉप टूर का सालाना सर्वे ऐसा लग रहा है जो वाशिंगटन के सारे अनुमानों को गलत बताने वाला है. बीमारी या किसी अनदेखी चीज की वजह से मक्का इस बार उतना नहीं होगा जितने का अनुमान लगाया गया था.
अमेरिका में इस साल खेती का कर्ज रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंचने वाला है क्योंकि दुनिया भर में अनाज का फ्लो बदल रहा है. इसकी वजह से देश के एग्रीकल्चर सेक्टर पर मंदी की आशंका गहराने लगी है. स्थिति ट्रंप के सत्ता संभालने के बाद आई ट्रेड पॉलिसी से और भी खराब हो गई है. चीन, जो आमतौर पर अमेरिकी सोयाबीन और मक्का का सबसे बड़ा खरीदार होता है, उसने इस साल की फसल से एक बुशल भी नहीं खरीदा है. पिछले साल, उसने अमेरिका से सोयाबीन एक्सपोर्ट का 45 फीसदी खरीदा था. मुश्किल की आशंका में, कई किसानों ने ज्यादा मक्का लगाया. उन्होंने शर्त लगाई कि मेक्सिको और कनाडा को एक्सपोर्ट, इथेनॉल प्रोडक्शन और जानवरों के चारे से कीमतें बनी रहेंगी.
वहीं इस साल अगस्त में अमेरिकी कृषि विभाग के गलत आंकड़ों ने किसानों की मुश्किलों को और बढ़ा दिया. अमेरिकी कृषि विभाग (USDA) ने देश में साल 1866 के बाद सबसे बड़ी मक्के की फसल का अनुमान लगाया: 16.7 बिलियन बुशेल, इतना मक्के का उत्पादन कि अमेरिका का हर खलिहान, डिब्बा और बाड़ा भर जाए और देश के जानवरों को आधे साल तक खिलाया जा सके. नतीजा हुआ कि मक्के की कीमतें गिर गईं. जबकि किसानों का कहना है कि USDA ने समस्याओं को नजरअंदाज कर दिया है. किसानों ने बताया कि पौधे आपस में ही उलझ गए हैं. साथ ही ओलों और तेज हवा ने भी इन्हें प्रभावित किया है.
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