जब भी ‘एवोकाडो’ शब्द कानों में पड़ता है तो दिमाग में एक ऐसा फल उभरता है, जो क्रीमी टेक्सचर, हेल्दी फैट्स और मॉडर्न लाइफस्टाइल का प्रतीक बन चुका है. कभी यह सिर्फ विदेशी रेसिपीज और फिटनेस प्रेमियों तक सीमित था, लेकिन आज भारतीय किचन, कैफे और रेस्तरां मेन्यू में भी इसने अपनी खास जगह बना ली है. जिसे कभी 'बटर फ्रूट' कहा जाता था और जो सिर्फ सलाद में गार्निश बनकर रह जाता था, वह अब एवोकाडो टोस्ट, स्मूदी, पास्ता, केक और यहां तक कि भारतीय पराठे में भी जगह बना रहा है. यही कारण है कि यह फल सुपरफूड्स की लिस्ट में टॉप पर गिना जाता है. दिल की सेहत सुधारने से लेकर स्किन को ग्लोइंग बनाने और वजन कंट्रोल करने तक, इसके फायदे इतने हैं कि यह आजकल हर हेल्थ और फूड ब्लॉग पर छाया हुआ है. सबसे दिलचस्प बात यह है कि जो फल कभी न्यूज़ीलैंड, तंज़ानिया या यूके से आयात होकर आता था, वह अब भारत की मिट्टी में भी खूब फल-फूल रहा है.
एवोकाडो की सबसे बड़ी खासियत उसका पोषण और वर्सेटाइल नेचर है. यह सिर्फ एक स्वादिष्ट फल नहीं बल्कि पोषक तत्वों का खजाना है. इसमें विटामिन ई, सी, के, पोटैशियम, मैग्नीशियम, ओमेगा-3 फैटी एसिड और फाइबर भरपूर मात्रा में पाया जाता है. हेल्दी फैट्स के कारण यह दिल को मज़बूत बनाता है और खराब कोलेस्ट्रॉल को कम कर अच्छे कोलेस्ट्रॉल को बढ़ाता है. आंखों के लिए भी यह उतना ही फायदेमंद है क्योंकि इसमें मौजूद ल्यूटीन और तियाजैथिन विजन को बेहतर बनाए रखते हैं. गर्भवती महिलाओं के लिए इसमें मौजूद फोलेट बच्चे के मस्तिष्क और स्पाइनल कॉर्ड के विकास में मदद करता है. वहीं वजन घटाने के इच्छुक लोगों के लिए इसमें मौजूद फाइबर लंबे समय तक भूख नहीं लगने देता और ओवरईटिंग से बचाता है. पोषण के लिहाज से देखें तो 100 ग्राम एवोकाडो में लगभग 160 कैलोरी, 15 ग्राम हेल्दी फैट्स, 9 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 7 ग्राम फाइबर और 2 ग्राम प्रोटीन होता है. शुगर की मात्रा बहुत कम होने के कारण डायबिटीज के मरीज भी इसे संतुलित मात्रा में खा सकते हैं। यही कारण है कि एवोकाडो को 'सुपरफूड' कहा जाता है – यह स्वाद, स्वास्थ्य और ट्रेंड तीनों का परफेक्ट कॉम्बिनेशन है.
जहां तक रसोई की बात है, तो एवोकाडो ने भारतीय किचन में भी एक नया रंग भर दिया है. नाश्ते में एवोकाडो टोस्ट, एवोकाडो पराठा या हेल्दी स्मूदी दिन की शानदार शुरुआत कर सकते हैं. स्टार्टर में इसका सबसे लोकप्रिय रूप ‘गुआकामोले’ है, जो मैक्सिकन डिश है और अब भारत में भी तेजी से लोकप्रिय हो रही है. मुख्य व्यंजनों में पास्ता, बर्गर, रैप्स और सैंडविच के साथ इसका फ्लेवर लाजवाब लगता है. डेज़र्ट्स में एवोकाडो आइसक्रीम, एवोकाडो ब्राउनी और एवोकाडो केक जैसी क्रिएटिव डिशेज अब सोशल मीडिया की भी शान बन चुकी हैं. ड्रिंक्स की बात करें तो एवोकाडो शेक और स्मूदी जिम-गोअर्स और हेल्थ लवर्स के लिए डेली रूटीन का हिस्सा बन गए हैं. इसकी यही बहुमुखी प्रतिभा इसे सबसे अलग बनाती है – एक ऐसा फल जिसे आप किसी भी कोर्स में जोड़ सकते हैं.
हालांकि, हर सिक्के के दो पहलू होते हैं और एवोकाडो भी इसका अपवाद नहीं. यह जितना फायदेमंद है, उतना ही इसका ओवरकंसम्प्शन नुकसानदेह हो सकता है. हेल्दी फैट्स के बावजूद अगर आप इसे ज्यादा खा लें तो वजन बढ़ सकता है. जिन लोगों को लेटेक्स एलर्जी है उन्हें इससे परहेज करना चाहिए. कुछ लोगों में यह माइग्रेन को ट्रिगर कर सकता है और पेट संबंधी दिक्कतें जैसे गैस, पेट फूलना और डायरिया पैदा कर सकता है. इसलिए विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि रोजाना आधा से एक एवोकाडो खाना ही पर्याप्त है. खासतौर पर गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को इसका सेवन डॉक्टर की सलाह से करना चाहिए. यानी यह सुपरफूड है, पर सुपर मात्रा में नहीं – संतुलन ही इसका मंत्र है.
अब बात करते हैं खेती की, क्योंकि भारत में एवोकाडो की बढ़ती लोकप्रियता के साथ-साथ इसकी बागवानी भी तेजी पकड़ रही है. दक्षिणी राज्यों जैसे केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, सिक्किम के पहाड़ी क्षेत्रों और अब राजस्थान के कुछ इलाकों में भी इसकी खेती के लिए अनुकूल परिस्थितियां मिल रही हैं. सफल खेती के लिए अच्छी जल निकासी वाली अम्लीय मिट्टी (pH 5-7) और पर्याप्त कार्बनिक पदार्थ जरूरी है. ड्रिप सिंचाई, जैविक खाद और अच्छी गुणवत्ता वाले पौधों का उपयोग करके किसान प्रति एकड़ अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं, जिससे एवोकाडो भारत में एक प्रमुख व्यावसायिक फसल बनने की क्षमता रखता है.
यह भी जानना रोचक है कि भारत में एवोकाडो के पौधे अधिकतर बीजों से उगाए जाते हैं. ये पौधे 8-12 महीनों बाद रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं. हालांकि इस तरीके से तैयार किए गए पेड़ों पर फल लगने में अधिक समय लगता है और पैदावार भी अलग-अलग होती है. इसलिए आजकल पसंदीदा किस्मों के प्रसार के लिए बीजों से या लेयरिंग द्वारा उगाए गए कलम का उपयोग किया जाता है. ग्रीनहाउस में लगभग एक वर्ष के बाद रूटस्टॉक्स को टर्मिनल या लेटरल ग्राफ्टिंग के जरिए ग्राफ्ट किया जाता है, जिसमें सॉफ्टवुड ग्राफ्टिंग सबसे लोकप्रिय तरीका है.
एवोकाडो लगाने का सही समय भी महत्वपूर्ण है. जुलाई से सितंबर तक का समय पौध लगाने के लिए सबसे अच्छा माना जाता है. एक बार रोपाई करने के बाद करीब तीन साल में पौधे फल देने लगते हैं. इसे उगाने के लिए लगभग 35 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान आदर्श है. इन बिंदुओं को ध्यान में रखकर अगर किसान आधुनिक तकनीकों और सही किस्मों का चयन करें तो इस फसल से अच्छी-खासी आय अर्जित कर सकते हैं.
(जयपुर से रिदम जैन की रिपोर्ट)
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