भारत में बटर की खपत बहुत बड़े स्तर पर होती है. एक रिपोर्ट की मानें तो हमारे देश में साल 2026 तक 1,80,000 मीट्रिक टन तक बटर की खपत पहुंचने की उम्मीद है. मगर सोचिए क्या हो अगर हम आपसे कहें कि अब ये बटर बनाने के लिए ना ही जानवरों के दूध की जरूरत होगी, ना ही किसी वनस्पति या किसी भी प्रकार के तेल की. जाहिर है आप हैरान होंगे कि बिना किसी फैट वाली चीज का उपयोग किए बटर कैसे बन सकता है. मगर अमेरिका के इलिनोइस स्थित बटाविया में एक कंपनी ऐसा ही मक्खन बना रही है. ये बटर बिना किसी जानवर, पौधे, या तेल के बनता है और इसे कहते हैं कार्बन बटर.
ये दिखने, महकने और स्वाद में एकदम पाकंपरिक मक्खन जैसा ही है, लेकिन इसे बिना खेत, उर्वरक या पारंपरिक प्रक्रिया से बनाया जाता है. इस बटर को बनाने में कोई उत्सर्जन भी नहीं होता. इसे बनाने का काम शिकागो के पश्चिमी उपनगरों में एक औद्योगिक पार्क में स्थित 'सेवर' नाम की कंपनी के प्लांट्स में होता है. CBS News में छपी एक रिपोर्ट में कार्बन बटर को लेकर 'सेवर' की सह-संस्थापक और सीईओ कैथलीन अलेक्जेंडर कहती हैं, "तो आप अभी अपना खाना पकाने के लिए गैस का उपयोग कर रहे हैं और हम प्रस्ताव दे रहे हैं कि हम सबसे पहले आपका खाना इसी गैस से बनाना चाहेंगे." कंपनी एक अनोखी तकनीक से कार्बन और हाइड्रोजन का उपयोग करके मक्खन की ऐसी छड़ें बनाती है जिन्हें कोई पहचान भी नहीं सकता कि ये असली नहीं है.
कार्बन बटर को लेकर 'सेवर' के खाद्य वैज्ञानिक जॉर्डन बेडेन-चार्ल्स ने कहा कि यह बहुत ही अनोखी बात है कि ऐसा भोजन बनाया जा सके जो देखने, स्वाद और अनुभव में बिल्कुल डेयरी मक्खन जैसा हो, लेकिन इसमें किसी भी प्रकार की डेयरी या कृषि का उपयोग नहीं किया गया है. उन्होंने आगे कहा कि यह मक्खन असल में वसा, थोड़ा पानी, थोड़ा सा लेसिथिन और कुछ प्राकृतिक स्वाद और रंग है.
इसके बनने की प्रक्रिया वैज्ञानिक रूप से बेहद जटिल है. दरअसल, फैट कार्बन और हाइड्रोजन की चेन से बना होता है. मगर इस कंपनी ने फैट बनाने के लिए जानवरों या पौधों के बिना इन फैट चेन को बनाने की तकनीक विकसित कर ली है. आसान भाषा में कहें तो, 'सेवर' का कहना है कि वे हवा से कार्बन डाइऑक्साइड और पानी से हाइड्रोजन लेते हैं. फिर उन्हें गर्म करते हैं, उनका ऑक्सीकरण करते हैं और अंतिम परिणाम के रूप में मोमबत्ती के मोम जैसा पदार्थ मिलता है. लेकिन ये वास्तव में वह फैट के अणु होते हैं, जो गोमांस, पनीर या वनस्पति तेलों में होते हैं.
खास बात है कि इस पूरी प्रक्रिया में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन का स्तर जीरो होता है. गायों को खिलाने के लिए किसी कृषि या भूमि का उपयोग नहीं होता है. कार्बन बटर एक औद्योगिक पदार्थ होने के बावजूद भी, इसे बनाने में काफी कम कार्बन फुटप्रिंट रहता है. अलेक्जेंडर ने कहा, "इस तरह की प्रक्रिया के लिए कार्बन फुटप्रिंट बहुत कम होने के अलावा, भूमि फुटप्रिंट भी पारंपरिक कृषि की तुलना में हजार गुना कम है."
अगर ये मक्खन बिना किसी जानवर या पौधों के बना रहा है तो जाहिर है स्वाद में कमी होगी, मगर हैरानी की बात तो ये है कि यह उसी डेयरी मक्खन जैसा स्वाद देता है जिसे हम रोज खाते हैं. कंपनी यह भी दावा करती है कि वे मक्खन में किसी भी प्रकार का पाम तेल इस्तेमाल नहीं करते हैं. पाम तेल वनों की कटाई और जलवायु परिवर्तन में महत्वपूर्ण योगदान देता है. फिलहाल, ये कंपनी रेस्टोरेंट, बेकरी और खाद्य आपूर्तिकर्ताओं के साथ सीधे काम कर रही है. वे 2025 के त्योहारी सीज़न से पहले अपने कार्बन मक्खन से बनी चॉकलेट लॉन्च करने की प्लानिंग में हैं. उन्हें उम्मीद है कि आने वाले समय में औसत उपभोक्ता भी कार्बन बटर खरीद सकेंगे.
दरअसल, इस कार्बन बटर के पीछे अमेरिकी बिजनेसमैन बिल गेट्स का हाथ है. बटाविया स्थित टीमों और कैलिफोर्निया के सैन जोस स्थित उनके घरेलू प्रयोगशाला केंद्र को अरबपति बिजनेसमैन बिल गेट्स से फंडिंग मिलती है. गेट्स ने अपने ब्लॉग में भी लिखा था, "प्रयोगशाला में निर्मित फैट और तेलों पर स्विच करने का विचार पहली बार में अजीब लग सकता है. लेकिन हमारे कार्बन फुटप्रिंट को महत्वपूर्ण रूप से कम करने की इसकी क्षमता अपार है."
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